पालक की खेती (Spinach Cultivation) का हरी सब्जी फसलों में विशेष स्थान है। देश के लगभग सभी भागों में रबी, खरीफ और जायद तीनों मौसम में इसकी खेती की जाती है। देसी तथा विलायती दो प्रकार की पालक को अलग-अलग क्षेत्रों में उगाया जाता है। देसी पालक की पत्तियाँ चिकनी, अंडाकार, छोटी एवं सीधी होती हैं, जबकि विलायती की पत्तियों के सिरे कटे हुए होते हैं। देसी पालक में दो किस्में हैं, एक लाल और दूसरी हरे सिरे वाली, जिसमें हरे सिरे वाली अधिक पंसद की जाती है।
विलायती पालक (Spinach) में कंटीले बीज वाली और गोल बीज वाली किस्में पायी जाती हैं। कंटीले बीज वाली किस्में पहाड़ी एवं ठण्डे क्षेत्रों के लिए उपयुक्त हैं, जबकि गोल बीज वाली किस्म मैदानी क्षेत्रों के लिये। पालक विटामिन ‘ए’, प्रोटीन, एस्कार्बिक अम्ल, थाइमिन, रिबोफ्लेविन एवं नियासिन का अच्छा स्रोत है। इस लेख में पालक (Spinach) की वैज्ञानिक तकनीक से खेती कैसे करें का उल्लेख किया गया है।
पालक की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for spinach cultivation)
पत्ती वाली सब्जियों में पालक का महत्वपूर्ण स्थान है। पालक की सफलतापूर्वक खेती के लिए ठण्डी जलवायु की आवश्यकता होती है। ठण्ड में पालक की पत्तियों की बढ़वार अधिक होती है जबकि तापमान अधिक होने पर इसकी बढ़वार रुक जाती है। इसलिए पालक की खेती मुख्यत: शीतकाल में करना अधिक लाभकारी होता है। पालक की खेती (Spinach Farming) मध्यम जलवायु में भी वर्षभर की जा सकती है।
पालक की खेती के लिए मिट्टी का चयन (Selection of soil for spinach cultivation)
पालक की खेती (Spinach Farming) के लिए खेत समतल हो और उसमें जल निकासी का अच्छा प्रबंध हो। इसकी खेती लगभग सभी प्रकार की मृदाओं में की जा सकती है, लेकिन सबसे उत्तम बलुई दोमट मिट्टी होती है। पालक का उत्पादन हल्की अम्लीय मृदा में भी किया जा सकता है। भूमि का पीएच मान 6.0 से 6.7 के बीच का अच्छा होता है।
पालक की खेती के लिए खेत की तैयारी (Preparation of field for spinach cultivation)
पालक (Spinach) की बुआई से पहले खेत की अच्छी तरह से 2-3 बार जुताई कर के मिट्टी को भुरभुरी बना लेना चाहिए। इसके लिए हैरो या कल्टीवेटर से 2-3 बार जुताई की जानी चाहिए। जुताई के समय ही खेत से खरपतवार भी निकाल देने चाहिए। अच्छी पैदावार लेने के लिए खेत में पाटा लगाने से पहले 25 से 30 टन प्रति हेक्टेयर की दर से गोबर की सड़ी खाद व 1 क्विंटल नीम की खली या नीम की पत्तियों से तैयार की गई खाद को खेत में बिखेर देना चाहिए। इस प्रकार से खेत को अच्छी तरह से तैयार करके खेत में क्यारियां बना लेनी चाहिए।
पालक की खेती के लिए उन्नत किस्में (Improved varieties for spinach cultivation)
पालक की खेती (Spinach Farming) से अधिकतम उत्पादन के लिए अपने क्षेत्र और जलवायु के आधार पर किस्मों का चयन करना चाहिए। पालक की कुछ प्रचलित किस्में इस प्रकार हैं, जैसे-
ऑल ग्रीन: इस किस्म के पौधे एक समान हरे पत्ते मुलायम और 15 से 20 दिनों के अन्तराल पर कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं। इसकी 6 से 7 कटाईयां आसानी से की जा सकती हैं। यह एक अधिक उपज देने वाली किस्म है। इसमें सर्दी के दिनों में करीब ढाई महीने बाद बीज और डंठल आते हैं।
पूसा पालक: इस पालक (Spinach) किस्म को ‘स्विसचार्ड’ से संकरण करवाकर विकसित किया गया है। इसमें एक समान हरे पत्ते आते हैं। इसमें जल्दी से फूल वाले डंठल बनने की समस्या नहीं आती है।
पूसा हरित: इस किस्म को पहाड़ी इलाकों में पूरे वर्ष उगाया जा सकता है। इसके पौधे ऊपर की तरफ बढ़ने वाले, ओजस्वी, गहरे हरे रंग के और बड़े आकार वाले होते हैं। इसकी कई बार कटाईयां की जा सकती हैं। इसमें बीज बनाने वाले डंठल देर से निकलते हैं। इस किस्म को विभिन्न प्रकार की जलवायु और क्षारीय भूमि में भी आसानी से उगाया जा सकता है।
पूसा ज्योति: यह एक प्रभावी किस्म है। जिसमें काफी संख्या में मुलायम, रसीली तथा बिना रेशे की हरी पत्तियां आती हैं। पौधे काफी बढ़ने वाले होते हैं, जिससे कटाई बहुत कम अन्तराल पर की जा सकती है। इस किस्म में ऑल ग्रीन की अपेक्षा पोटेशियम, कैल्शियम, सोडियम तथा एस्कार्बिक अम्ल की मात्रा अधिक पाई जाती है। इस किस्म की कुल 6 से 7 कटाइयां आसानी से की जा सकती हैं।
जोबनेर ग्रीन: इस पालक (Spinach) किस्म में एक समान हरे, बड़े, मोटे, रसीले तथा मुलायम पत्ते आते हैं। पत्ती पकाने पर आसानी से गल जाती है। इस किस्म को क्षारीय भूमि में भी उगाया जा सकता है।
हिसार सलेक्शन 23: इसकी पत्तियां बड़ी, गहरे हरे रंग की मोटी, रसीली और मुलायम होती हैं। यह एक कम समय में तैयार होने वाली किस्म है। इसकी पहली कटाई बुआई के 30 दिनों बाद शुरू की जा सकती है और 6 से 8 कटाइयां 15 दिनों के अंतर पर आसानी से की जा सकती हैं।
बनर्जी जाइंट: इस पालक (Spinach Farming) किस्म के पत्ते काफी बड़े, मोटे तथा मुलायम होते है। इसके तने और जड़ें भी काफी मुलायम होती है।
पालक न 51-16: इस किस्म कि पत्तियां हरे रंग कि होती है तथा इसमें बीज के डंठल देर से निकलते है। इसकी पत्तियों कि कटाई कई बार कि जा सकती है।
लाग स्टैंडिंग: इसकी पत्तियां गहरे हरे रंग कि, मोटी व लम्बी होती है। इस किस्म में फुल धीरे-धीरे निकलते है, यह अधिक उपज देने वाली किस्म है। इस किस्म की उत्तर प्रदेश, बिहार और उत्तर पूर्वी पर्वतीय क्षेत्रों में उगाने के लिए संस्तुति कि गई है। यह किस्म शुष्क तथा उचाई वाले पर्वतीय क्षेत्रों के लिए उपुयुक्त है।
पन्त का कम्पोजीटी 1: यह पालक (Spinach) की काफी उपजाऊ किस्म है और इसकी पत्तियों पर सर्कोस्पोरा पत्ती धब्बा रोग का प्रकोप कम होता है।
पालक की खेती के लिए बुआई का समय (Sowing time for spinach cultivation)
वैसे तो पालक की खेती किसानों द्वारा पूरे साल की जा सकती है, लेकिन फरवरी से मार्च व नवंबर से दिसंबर के महीनों में इसकी बुआई करना ज्यादा फायदेमंद रहता है। पहाड़ी क्षेत्रों में देशी पालक की मार्च मध्य से मई के अंत तक बुवाई की जाती है और विलायती पालक (Spinach) के लिए मध्य अगस्त में वुबाई कर देनी चाहिए।
पालक के लिए बीज की मात्रा और बुआई (Seed quantity and sowing for palak)
पालक की उन्नत प्रजातियों के 25-30 किलोग्राम बीज प्रति हैक्टर की दर से बुआई की जाती है। अच्छे जमाव के लिए बुआई से पहले बीजों को 5-6 घंटे तक पानी में भिगोकर रखा जाता है। बुआई के समय खेत में नमी का होना जरूरी है। अगर पालक (Spinach) को पंक्तियों में बोया जा रहा है, तो पंक्ति से पंक्ति की दूरी 20 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी भी 20 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। यदि आप छिटकवां विधि से बुआई करते हैं, तो यह ध्यान रखें कि बीज ज्यादा पास – पास न गिरने पाएं।
पालक की फसल में खाद और उर्वरक (Manure and fertilizer in spinach crop)
प्रति हैक्टर 25 से 30 टन गोबर की अच्छी सड़ी हुई खाद 1 क्विंटल नीम की खली या नीम की पत्तियों की सड़ी खाद को बुआई से पहले खेत में बिखेरकर हल से जुताई कर अच्छी तरह से मिला दें। यदि रासायनिक खाद का प्रयोग करें तो 100 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम, फॉस्फोरस तथा 60 किलोग्राम, पोटाश का उपयोग पालक (Spinach) की फसल में करना चाहिए।
फॉस्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा तथा नाइट्रोजन की 20 किलोग्राम मात्रा को भी खेत की अंतिम जुताई के समय खेत में एक समान रूप से फैलाकर मिट्टी में मिला देना चाहिए। नाइट्रोजन की शेष 80 किलोग्राम मात्रा चार बराबर भागों में बांटकर, पालक की फसल की प्रत्येक कटाई के बाद खड़ी फसल में डालनी चाहिए।
यह भी ध्यान देना आवश्यक है कि उर्वरक के छिड़काव के दूसरे दिन खेत की सिंचाई अवश्य करनी चाहिए, जिससे पालक (Spinach) पौधों की जड़ों द्वारा पोषक तत्वों को सुगमता से ग्रहण कर लिया जाए और दूसरी कटाई के लिए फसल जल्दी तैयार हो सके।
पालक की फसल में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management in Spinach Crop)
यदि बुआई के समय क्यारी में नमी की कमी हो तो बुआई के तुरंत बाद एक हल्की सिंचाई कर दें। पालक को अधिक पानी की आवश्यकता होती है, अतः समय-समय पर सिंचाई करते रहें। जाड़ों की फसल के लिए 8-10 दिनों के बाद तथा जायद की फसल की सिंचाई हल्की-हल्की, 2-3 दिन में करते रहना अति आवश्यक है।
पालक (Spinach) की अच्छी उपज के लिये सिंचाई का बहुत ही योगदान होता है। गमलों में नमी के अनुसार 2-3 दिन के बाद तथा जायद की फसल के लिए रोज शाम को ध्यान से पानी देते रहना चाहिए। पानी देते समय ध्यान रहे कि गमलों में लगे पौधे टूटे नहीं और फव्वारे से ऊपर की तरफ से पानी नहीं देना चाहिए।
पालक की फसल में खरपतवार नियंत्रण (Weed control in palak crop)
यदि क्यारी में कुछ खरपतवार हों तो से उखाड़ देना चाहिए। यदि पौधे या उन्हें जड़ कम उगे हों तो, उस अवस्था में खुरपी- कुदाल के जरिये गुड़ाई करने से पौधे की बढ़वार अच्छी हो जाती है। पालक (Spinach ) की फसल में रबी फसल के खरपतवार अधिक हो जाते हैं।
इनको पहली और दूसरी सिंचाई के तुरन्त बाद खेत में निराई-गुड़ाई करते समय फसल से शीघ्र उखाड़ या निकाल देना चाहिए। इस प्रकार से 2-3 निराइयां फसल में करनी अति आवश्यक है। ऐसा करने से पालक फसल (Spinach Crop) की उपज अधिक होती है।
पालक की फसल में रोग और कीट नियंत्रण (Disease and Pest Control in Palak Crop)
साधारणता पालक की फसल (Spinach Crop) में रोगों का प्रभाव नहीं होता है। यदि होता है तो बीज को उपचारित कर के बोना चाहिए। रोकथाम के लिए 0.2 प्रतिशत ब्लाइटॉक्स का 2 किलोग्राम प्रति हैक्टर के हिसाब से हर 15 दिन के अन्तराल पर 2 से 3 छिड़काव करने चाहिए।
पालक में माहूं, बीटल और कैटरपिलर कीट फसल को नुकसान पहुंचाते हैं। इनकी रोकथाम के लिए 1 लीटर मैलाथियान को 700 से 800 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हैक्टर में छिड़काव करना चाहिए। इसके साथ – साथ मिथाइल पैराथियान 50 ईसी 1.5 लीटर को 700 से 800 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हैक्टर छिड़काव करना चाहिए।
पालक फसल की कटाई (Harvesting of Spinach Crop)
लगभग 20 से 25 दिनों के बाद पालक (Spinach) की पहली कटाई कर सकते हैं। इसके बाद 10 से 15 दिनों के अंतराल पर 6 से 7 कटाईयां कर सकते हैं।
पालक की फसल से पैदावार (Yield from spinach crop)
पालक की खेती यदि उपरोक्त तकनीक से तथा फसल की सही देख-रेख में की जाए तो लगभग 100 से 125 क्विंटल हरी पालक प्रति हैक्टर प्राप्त की जा सकती है। पालक की खेती (Spinach Farming) यदि बीज उत्पादन के लिए की जा रही है तब 10 से 17 क्विंटल बीज प्रति हैक्टर उपज मिलती है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
पालक को ठंडी जलवायु पसंद है। बीज के अंकुरण के लिए न्यूनतम तापमान 2 डिग्री सेल्सियस है, जबकि अधिकतम अंकुरण तापमान 30 डिग्री सेल्सियस और इष्टतम सीमा 7 से 24 डिग्री सेल्सियस है। युवा पौधे 9 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान को सहन कर सकते हैं। सबसे अच्छी पालक (Spinach) फसल वृद्धि 15 से 20 डिग्री सेल्सियस पर होती है, जिसमें न्यूनतम तापमान 10 डिग्री सेल्सियस और अधिकतम तापमान 32 डिग्री सेल्सियस होता है।
वैसे इसकी खेती के लिए सबसे अच्छा महीना दिसंबर होता है। उचित वातावरण में पालक की बुवाई वर्ष भर की जा सकती है। पालक की फसल से अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए बुवाई जनवरी-फरवरी, जून-जुलाई और सितंबर-अक्टूबर में की जा सकती है, जिससे पालक (Spinach) की अच्छी पैदावार प्राप्त होती है।
पालक (Spinach) के बीज मिट्टी के 40 डिग्री फ़ारेनहाइट तक पहुँचने के बाद बोए जा सकते हैं। बीज 55-65 डिग्री फ़ारेनहाइट पर सबसे अच्छे से अंकुरित होते हैं और उन्हें उगने में 7-10 दिन लगते हैं।
पालक बोने के 6-10 सप्ताह बाद कटाई के लिए तैयार हो जाता है। एक सामान्य नियम के रूप में, आप मई से अक्टूबर के बीच गर्मियों की किस्मों और अक्टूबर से अप्रैल के बीच सर्दियों की किस्मों को चुन सकते हैं। लेकिन अपनी फसल पर नज़र रखें क्योंकि पालक (Spinach) आमतौर पर गर्म मौसम में तेज़ी से बढ़ता है।
बीज बोने या रोपे गए पालक को पंक्ति में पौधों के बीच 3 इंच की दूरी पर और पंक्तियों के बीच 12 इंच की दूरी पर रखना चाहिए। सघन रोपण से खरपतवार का दबाव कम होगा। पालक (Spinach) तब सबसे अच्छा बढ़ता है जब तापमान 75°F से अधिक न हो।
पालक (Spinach) जैसी पत्तेदार सब्जियों से अच्छा उत्पादन लेने के लिए जरूरी है कि अच्छी मात्रा में जैविक खाद या वर्मी कंपोस्ट का इस्तेमाल किया जाए। वैसे तो पालक की फसल में नाइट्रोजन का इस्तेमाल करने पर भी अच्छे परिणाम सामने आते हैं, लेकिन जैविक खेती करने वाले किसान नाइट्रोजन की जगह जीवामृत का इस्तेमाल भी कर सकते हैं।
गर्मी के महीने में, 4-6 दिनों के फासले पर सिंचाई करें जब कि सर्दियों में 10-12 दिनों के फासले पर सिंचाई करें। ज्यादा सिंचाई करने से परहेज़ करें। ध्यान रखें की पत्तों के ऊपर पानी ना रहे क्योंकि इससे बीमारी का खतरा और गुणवत्ता में कमी आती है। ड्रिप सिंचाई पालक की खेती (Spinach Farming) के लिए लाभदायक सिद्ध होती है।
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