Sugarcane Farming: देश की कृषि अर्थ व्यवस्था में गन्ना फसल का एक महत्वपूर्ण योगदान है। देश के कुल गन्ना क्षेत्रफल का लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा उत्तर भारत के राज्यों में है। इन राज्यों में संस्तुत उन्नत गन्ना किस्मों और उन्नत उत्पादन तकनीकों को अपनाकर गन्ने की उत्पादकता को बढ़ाया जा सकता है, जिससे गन्ना किसानों को अधिक लाभ मिल सके। गन्ना (Sugarcane) उत्पादन बढ़ाने की उन्नत कृषि तकनीकों का वर्णन आगे किया गया है। जिसको किसान अपने खेतों में अपनाकर उत्पादन बढ़ाने के साथ गन्ना खेती से अधिक लाभ भी अर्जित कर सकते हैं।
गन्ने की खेती के लिए भूमि और जलवायु (Land and climate for sugarcane cultivation)
गन्ने की खेती (Sugarcane Cultivation) के लिए अच्छी जल निकासी वाली भारी मृदा उपयुक्त होती है। यह मध्यम और हल्की बनावट वाली मृदा पर भी सुनिश्चित सिंचाई के साथ सही तरह से उगाया जा सकता है। इसके साथ-साथ मृदा में 0.6 प्रतिशत कार्बन होना चाहिए और इसका पी-एच मान 6.5-7.5 होना चाहिए।
गन्ने की खेती के लिए खेत की तैयारी (Preparation of field for sugarcane cultivation)
गन्ने की खेती (Sugarcane Cultivation) हेतु खेत को तैयार करने के लिए एक बार मिट्टी पलटने वाले हल से जोतकर तीन बार हैरो से जुताई करनी चाहिये। देसी हल से 5 से 6 जुताइयां काफी होती हैं।
गन्ने की खेती के लिए उन्नत किस्में (Improved varieties for sugarcane cultivation)
शीघ्र पकने वाली प्रजातियां: कोशा 64, कोशा 8436, कोशा 88230, कोशा 13235, कोशा 03251, कोशा 95268, कोशा 95255, कोशा 17231, को 98014, को 0118, को 05009, को 0238, कोसे 95422 और कोसे 98231 आदि।
मध्य व देर से पकने वाली प्रजातियां: को 0124, को 05011, कोसे 13452, कोसे 1434, कोसे 11453, कोशा 767, कोशा 10239, कोशा 93278, कोशा 98432, कोशा 97264 और कोशा 96275 आदि।
लवणीय एवं क्षारीय मृदाओं के लिए प्रजातियां: कोशा 767, कोशा 8208, कोशा 7717, कोशा 85004, कोशा 85007, कोशा 6806, कोशा 86032, कोशा 87363, कोशा 87268, कोसे 671, यूपी 14234, बीओ 91 और कोएल 8102 आदि।
जल प्लावित क्षेत्रों के लिए संस्तुत प्रजातियां: यूपी 9529, यूपी 9530, कोशा 94636 व कोशा 8118 और कोसे 96436 आदि।
गन्ने की खेती के लिए बीज और बीज उपचार (Seed and seed treatment for sugarcane cultivation)
मृदा जनित और बीज जनित रोगों से फसल को बचाने हेतु गन्ने (Sugarcane) के टुकड़ों को नम वायु उपचार 54 डिग्री सेल्सियस तापमान पर 8 घंटे उपचारित करने से पेड़ी में बौनापन, उकठा रोग आदि नहीं होते हैं। बोने से पहले फफूंदनाशक दवाओं जैसे- एग्लाल 1.23 किग्रा, बैंगलाल 625 ग्राम दवा को 250 लीटर पानी में मिलाकर टुकड़ों को घोल में डुबोकर बोयें।
गन्ने की खेती के लिए बुआई का समय (Sowing time for sugarcane cultivation)
शरदकालीन बुआई: 15 सितंबर से 31 अक्टूबर तक
बसन्तकालीन बुआईः 1 फरवरी से 31 मार्च तक
विलम्ब या देर से की जाने वाली बुआई: 15 अप्रैल से 31 मई तक।
गन्ने की खेती के लिए बुआई की विधियां (Sowing methods for sugarcane cultivation)
समतल विधि: सामान्य रूप से शरदकालीन गन्ने (Sugarcane) में पंक्ति से पंक्ति की दूरी 90 सेंमी, बसंतकालीन में 75 सेंमी और ग्रीष्मकालीन गन्ने में 60 सेंमी रखी जाती है। कूंड ट्रैक्टर के द्वारा भी खोदे जा सकते हैं। इसके लिए कूंड़ों की गहराई 10-15 सेंमी होनी चाहिए। हल अथवा ट्रैक्टरचालित कटर प्लांटर से करते हैं। दोहरी पंक्ति बुआई विधि में शरद, बसंत एवं ग्रीष्मकालीन बुआई में पंक्तियां क्रमशः 90:30:90 :60:30:60 तथा 45:30:45 सेंमी रखते हैं।
ट्रैंच विधि से द्विपंक्ति में बुआई: ट्रैंच विधि में यू आकार के 25 सेंमी गहरे तथा 30 सेंमी चौड़े कूंड (ट्रैंच ) 90 सेंमी की दूरी पर ट्रैक्टर चालित ट्रैंचर सें खोदे जाते हैं। इस मशीन द्वारा एक बार में दो कूड़ (ट्रैंच) बनाये जाते हैं। तीसरे व चौथे ट्रैंच दूसरे चक्कर पर मशीन में लगे गाइडर की मदद से लगे निशानों पर समान दूरी पर बनाते हैं।
गन्ने (Sugarcane) के टुकड़े कूड़ के बीच में समान्तर अथवा क्रॉस डाले जाते हैं। दोहरी जुड़वां पंक्ति में गन्ना बुआई हेतु दोहरी पंक्ति प्लान्टिंगरिजर द्वारा बीच में 120 सेंमी चौड़ी क्यारी बनाकर उसके दोनों तरफ 30-30 सेंमी के अन्तराल पर कूंड़ निकाले जाते हैं। इस प्रकार दो जुड़वां कूड़ों के बीच की दूरी 120+30 या 150 सेंमी होती है।
गोल गड्ढा विधि: गोल गड्ढा विधि में लगभग 2700 गोल गड्ढे प्रति एकड़ बनाये जाते हैं। ये 90 सेंमी व्यास के जिनमें गड्ढों की आपस की दूरी 150 सेंमी और पंक्ति से पंक्ति की दूरी 180 सेंमी होती है, कुछ ट्रैक्टर चालित गड्ढे होते हैं और मशीन द्वारा बनाए जाते हैं। बुआई से पहले गड्ढों में 5 किग्रा गोबर की खाद, 100 ग्राम जिप्सम व 125 ग्राम सुपर फॉस्फेट भर दिया जाता है। इसके बाद दो आंख वाले बीज टुकड़े डालने चाहिए।
पॉलीबैग नर्सरी: नर्सरी के लिए रोगरहित बीज गन्ना (Sugarcane) लिया जाता है। हाथ से एक आंख के बीज टुकड़े काटकर 0.1 प्रतिशत कार्बेन्डाजिम के घोल में 10 मिनट के लिए डुबो लें। इसके बाद छोटे-छोटे छिद्र किए गए 12 x 8 सेंमी पॉलीबैग में रोपाई की जा सकती है। इस विधि से जड़ों को कोई नुकसान नहीं होता है। इसलिए पौध भी बहुत कम लगती है। पॉलीबैग विधि में पौधे में अधिक टिलर निकलते हैं। पॉलीबैग से निकले अंकुर वाटरलोगिंग क्षेत्र में भी लगाये जा सकते हैं।
बड चिप तकनीक: इस विधि में बड चिप की सहायता से नर्सरी लगायी जाती है और फिर पौध को मुख्य खेत में लगा दिया जाता है। बड चिपिंग मशीन की सहायता से गन्ने (Sugarcane) की आंख को गांठ के भाग से बाहर निकाल लें। एक एकड़ क्षेत्र में बिजाई के लिए 6 क्विंटल बड चिप की जरूरत पड़ती है और बाकी गन्ना मिल में पेराई के लिए भेज दिया जाता है।
गन्ने की फसल में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management in Sugarcane Crop)
गन्ना फसल (Sugarcane Crop) की जल मांग अधिकतम 1400 से 1800 मिमी है। गन्ने में 6 से 8 सिंचाइयों की आवश्यकता पड़ती है। सिंचाई की सुविधा यदि सीमित हो, तो गन्ने की क्रान्तिक संवेदनशील अवस्थाओं तथा गन्ने के जमाव, कल्लों का प्रस्फुटन, शीघ्र बढ़वार और पकने की अवस्था में सिंचाई अवश्य करें। वर्षा ऋतु पूर्व 10-15 दिनों के अन्तर पर मौसम के अनुसार एवं 1-2 सिंचाई वर्षा ऋतु के बाद करें।
गन्ने की फसल में खाद और उर्वरक की मात्रा (Amount of Manure and Fertilizer in Sugarcane Crop)
गन्ने में पोषक तत्वों के लिए 150 किग्रा नाइट्रोजन, 60 से 80 किग्रा फॉस्फोरस और 60 किग्रा पोटाश की दर से प्रयोग करना चाहिए। फसल में फॉस्फोरस व पोटाश की सम्पूर्ण मात्रा तथा नाइट्रोजन की एक तिहाई मात्रा बुआई के समय कूंड़ों में गन्ना (Sugarcane) बीज के नीचे या बीज कूंड़ के साथ खोले गये खाली कूंड़ में डालनी चाहिये। नाइट्रोजन की शेष मात्रा दो बार में सिंचाई सुविधा के अनुसार वर्षा प्रारम्भ होने से पूर्व डाल दें। 20 – 25 किग्रा जिंक सल्फेट एवं 20 किग्रा गंधक का बोते समय प्रयोग करना चाहिए।
गन्ने की फसल में खरपतवार नियंत्रण (Weed control in sugarcane crop)
समय-समय पर खरपतवारों के नियंत्रण हेतु निराई-गुड़ाई करते रहना चाहिये। सामान्यतः 5 से 6 बार निराई-गुड़ाई करना अति आवश्यक है। श्रमिकों के अभाव में खरपतवारों के नियंत्रण हेतु एट्राजीन (50 प्रतिशत डब्लूपी) की 2.00 किग्रा दवा को 1150 लीटर पानी में घोल बनाकर गन्ना (Sugarcane) बुआई के बाद तीन दिनों के अन्दर खेत में सतह पर नमी बने रहने तक छिड़काव करें।
चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के नियंत्रण हेतु 2, 4-डी सोडियम साल्ट दवा की 1.00 किग्रा सक्रिय तत्व मात्रा को 1150 लीटर पानी में घोल बनाकर गन्ना बुवाई के 30-40 दिन बाद छिड़काव करें। गन्ने (Sugarcane) की सूखी पत्तियों को न जलायें तथा उन्हें गन्ने की पंक्तियों के मध्य बिछाएं जिससे खरपतवारों का आपतन कम होता है, मृदा स्वास्थ्य में सुधार के साथ मृदा नमी भी संरक्षित रहती है।
गन्ने की फसल के साथ सहफसली खेती (Co-cropping with sugarcane crop)
शरदकालीन: शरदकालीन गन्ने के साथ आलू, फूलगोभी, पातगोभी, गाँठ गोभी, मूली, शलजम, गाजर, राई, लाही, मटर, मसूर, राजमा, चना, गेहूं, मसाले वाली फसलों की सहफसली खेती सफलतापूर्वक करके प्रति इकाई क्षेत्रफल और समय में अतिरिक्त आय प्राप्त करें।
बसन्तकालीन: गन्ने (Sugarcane) के साथ मूँग, उर्द, लोबिया, प्याज, धनिया तथा कद्दूवर्गीय सब्जियों की सहफसली खेती करें तथा अधिक लाभ प्राप्त करें।
गन्ने की फसल में कीट और रोग नियंत्रण (Pest and disease control in sugarcane crop)
- मार्च से मई तक प्ररोह तथा चोटी बेधक कीटों के अण्ड समूहों व ग्रसित प्ररोहों को निकालकर नष्ट करते रहें। यदि प्रकोप अधिक हो तो क्लोरेन्ट्रानिलिप्रॉल 18.5 एससी के 325 मिलीलीटर को 1000 लीटर पानी में घोलकर ड्रेचिंग करें।
- चोटी बेधक कीट के जैविक नियंत्रण हेतु अप्रैल माह में ट्राइकोग्रामा जैपोनिकम के 2 ट्राइकोकार्ड (40 स्ट्रिप्स में 50,000 अण्डे) साप्ताहिक अन्तराल पर गन्ने की फसल में प्रयोग करें।
- चोटी बेधक कीट के रासायनिक नियंत्रण हेतु जून माह के दूसरे सप्ताह के बाद जब भी मॉथ (सफेद रंग का कीट) दिखाई दे, तब कार्बोफ्यूरान 3 जी के 33 किग्रा प्रति हेक्टेयर दाने पौधों की जड़ों के समीप भूमि में डालें। ध्यान रहे कि खेत में मृदा नमी प्रचुर हो, बुरकाव प्रातः काल ही करें।
- जुलाई से अक्टूबर तक तना बेधक, पोरी बेधक, प्लासी बेधक, गुरदासपुर बेधक आदि कीटों के जैविक नियंत्रण हेतु ट्राइकोग्रामा किलोनिस के 2 ट्राइकोकार्ड (40 स्ट्रिप्स में 50,000 अण्डे) प्रति हेक्टेयर 10 दिन के अन्तराल पर गन्ने (Sugarcane) की फसल में छोड़ें। पायरिला कीट के नियंत्रण हेतु एपिरीकेनिया मिलानेल्यूका परजीवी कीट के 4-5 लाख अण्डे तथा 4-5 हजार ककून प्रति हेक्टेयर खेत में निर्मुक्त करें।
- गन्ने में रोगों के प्रबंधन हेतु रोग-रोधी गन्ना प्रजातियों की ही बुवाई करनी चाहिए। यदि किसी खेत के गन्ने में उकठा, कंडुआ, लाल सड़न आदि में से किसी रोग का आपतन हो जाता है, तो उक्त प्रजाति को बदल दें और उस खेत में उस वर्ष गन्ना न लेकर हरी खाद वाली फसल उगाएं।
- ट्राइकोडरमा नामक फफूंद का प्रयोग करके गन्ने (Sugarcane) में लगने वाले रोगों को कम किया जा सकता है।
गन्ना फसल में मिट्टी चढ़ाना व बंधाई करना (Earthing up and binding of cane crop)
- जून-जुलाई में मिट्टी चढ़ाएं, वर्षा न होने पर सिंचाई करें।
- प्रथम बंधाई जुलाई के अन्तिम सप्ताह में गन्ना (Sugarcane) थानों की करें।
- द्वितीय बंधाई अगस्त से सितम्बर के प्रथम सप्ताह तक आमने-सामने की थानों को मिलाकर कैंचीनुमा बंधाई करें।
गन्ना फसल की कटाई एवं कटाई प्रबंधन (Harvesting management of cane crop)
- गन्ना (Sugarcane) फसल की बुवाई का समय, किस्म एवं उसकी आयु व परिपक्वता के अनुसार भूमि की सतह से कटाई करें
- अधिक परता सुनिश्चित करने के लिए फसल की कटाई कम से कम 10 माह के बाद करनी चाहिए।
- कटाई के 48 घंटे के अन्दर साफ गन्ना पेराई के लिए चीनी मिल या गुड़ इकाई भेजें।
- गन्ना (Sugarcane) भेजने में विलम्ब होने की दशा में गन्ना ढेर बनाकर सूखी पत्ती से ढक कर पानी का छिड़काव कर दें।
गन्ने की फसल से उपज (Yield from sugar cane crop)
गन्ने (Sugarcane) की वैज्ञानिक विधि से खेती करने से 70 से 90 टन उपज प्रति हैक्टर ली जा सकती है।
गन्ने के रस से गुड़ उत्पादन (Production of Jaggery from Sugarcane Juice)
- कटाई के बाद गन्ने (Sugarcane) को टाट अथवा अन्य खुरदुरी चीज से रगड़कर साफ कर लें।
- कटाई के तुरंत बाद 60 प्रतिशत से अधिक निष्कासन क्षमता वाले कोल्हू में पेराई कर रस निकालें।
- रस को तीन या पाँच जाली वाली छन्नी से छान लें तथा 15-20 मिनट तक सेटलिंग टैंक में रखने के बाद पाइप द्वारा भट्ठी में ले जाएँ तथा गर्म करें।
- रस गर्म करते समय रस की सफाई वानस्पतिक शोधकों जैसे देवला, भिण्डी, फालसा, सेमल इत्यादि से करें।
- सांन्द्रीकृत रस (चासनी) को कड़ाह से बाहर निकालकर ठंडा होने पर वांछित आकारों में ढाल लें।
गन्ने की पेड़ी फसल (Ratoon crop of sugar cane)
- अच्छी पेड़ी फुटाव के लिए बावक गन्ने की कटाई जमीन की सतह से 15 फरवरी – 15 मार्च के मध्य करें।
- पेड़ी से अच्छी उपज प्राप्त करने हेतु सभी अनुशंसित शस्य क्रियाओं को अपनाना चाहिए।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
उत्तर प्रदेश न केवल भारत में गन्ने (Sugarcane) का सबसे बड़ा उत्पादक है, बल्कि भारत में खाद्यान्न का भी सबसे बड़ा उत्पादक है।
सामान्य रोपण का मौसम अक्टूबर-दिसंबर है। रोपण में देरी से गन्ने की उपज कम हो जाती है। मैदानी इलाकों में फरवरी से आगे रोपण में देरी नहीं करनी चाहिए। पहाड़ी इलाकों में जहाँ बारिश आधारित परिस्थितियों में गन्ने की खेती (Sugarcane Cultivation) की जाती है, वहाँ भारी बारिश के कम होने के बाद रोपण करना चाहिए।
भारत के महाराष्ट्र राज्य में कोल्हापुर शहर को भारत के “चीनी शहर” के रूप में जाना जाता है। कोल्हापुर पश्चिमी महाराष्ट्र के गन्ना-समृद्ध क्षेत्र में स्थित है और भारत में चीनी उत्पादन का एक प्रमुख केंद्र है।
एनपीके उर्वरक गन्ने (Sugarcane) के लिए सबसे अधिक इस्तेमाल किए जाने वाले उर्वरक हैं। इन उर्वरकों में नाइट्रोजन (एन), फॉस्फोरस (पी), और पोटेशियम (के) होते हैं, जो पौधे के विकास के लिए आवश्यक मैक्रोन्यूट्रिएंट हैं।
गन्ना (Sugarcane) एक उष्णकटिबंधीय फसल है, साथ ही यह उपोष्णकटिबंधीय फसल भी है। यह 21°C से 27°C के तापमान और 75 सेमी के बीच वार्षिक वर्षा वाले गर्म और गीले वातावरण में अच्छी तरह से पनपता है।
यह लगभग किसी भी तरह की मिट्टी में उग सकता है जो नमी बनाए रख सके। इसके विकास के लिए गहरी, उपजाऊ दोमट मिट्टी की ज़रूरत होती है। मिट्टी में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और कैल्शियम भरपूर मात्रा में होना चाहिए। यह न तो बहुत ज़्यादा अम्लीय होनी चाहिए और न ही बहुत ज़्यादा क्षारीय।
गन्ने की अधिक पैदावार लेने के लिए सर्वोत्तम समय अक्टूबर से नवम्बर है। बसंत कालीन गन्ना फरवरी से मार्च में लगाना चाहिए। गन्ने (Sugarcane) के लिए काली भारी मिट्टी, पीली मिट्टी, तथा रेतेली मिट्टी जिसमें पानी का अच्छा निकास हो गन्ने हेतु सर्वोत्तम होती है।
समतल विधि इस विधि में 90 सेमी के अन्तराल पर 7-10 सेंमी गहरे कुंड डेल्टा हल से बनाकर गन्ना(Sugarcane) बोया जाता है। वस्तुतः यह विधि साधारण मृदा परिस्थितियों में उन कृषकों के लिये उपयुक्त हैं, जिनके पास सिंचाई, खाद तथा श्रम के साधन सामान्य हों।
खेत मे खड़े गन्ने (Sugarcane) के पौधों का समूह ईख कहलाता है, ईख का वह भाग जिससे चीनी बनती है अर्थात ईख के पौधे का वह भाग जिसकी जड़ तथा पत्तियाँ अलग करके ताना रूपी जो भाग बचता है वह गन्ना कहलाता है।
Leave a Reply