सूरजमुखी एक महत्वपूर्ण तिलहनी फसल है, यह पहले भारत में अलंकृत पौधे के रूप में उगाई जाती थी। सूरजमुखी (Sunflower) को तिलहनी फसल के रूप में 1969 में परिचय कराया गया। पिछले कुछ वर्षों से अपनी उत्पादन क्षमता और अधिक मूल्य के कारण यह देश के किसानों में दिनोंदिन लोकप्रिय होती जा रही है। सूरजमुखी को बड़े पैमाने पर अपनाने से न केवल खाद्य तेल उपलब्ध होगा। बल्कि विदेशी मुद्रा की भी बचत होगी।
सूरजमुखी (Sunflower) जल्दी पकने वाली फसल है, सूखा को सहन कर सकती है, तापमान और प्रकाश के प्रति असंवेदनशील है अतः इसे खरीफ, रबी एवं ज़ायद मौसम में उगा सकते हैं। लेकिन उत्तरी भारत के लिए सबसे सही मौसम ज़ायद का है, क्योंकि इस मौसम में मधुमक्खी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होती है, जो इसकी पैदावार के लिए बहुत महत्वपूर्ण होती है। इसके तेल से वनस्पति घी एवं बीमारियों के उपचार के लिए बहुत उपयोगी है।
सूरजमुखी की खेती के लिए जलवायु (Climate for Sunflower Farming)
सूरजमुखी की खेती (Sunflower Farming) करने के लिए शुष्क जलवायु होनी चाहिए। इसकी बुवाई करने के लिए 15 डिग्री तक का तापमान उपयुक्त होता है और इसकी खेती करने के लिए खेत की मिट्टी का पीएच मान 5 से 7 के बीच का होना चाहिए। सूरजमुखी (Sunflower) के बीजों के अंकुरण के लिए अधिक तापमान की जरूरत होती है साथ ही इसके पौधे की वृद्धि के लिए सामान्य तापमान की आवश्यकता होती है।
सूरजमुखी की खेती के लिए उपयुक्त भूमि (Land Suitable for Cultivation)
सूरजमुखी की खेती (Sunflower Farming) सभी प्रकार की भूमि में की जा सकती है। परन्तु अधिक जल रोकने वाली भारी भूमि उपयुक्त है। निश्चित सिचाई वाली सभी प्रकार की भूमि में अम्लीय और क्षारीय भूमि को छोडकर इसकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है| हालाँकि दोमट भूमि सर्वोतम मानी जाती है।
सूरजमुखी की खेती के लिए खेत की तैयारी (Preparation of Field for Farming)
खेत की तैयारी के लिए जायद के मौसम में पर्याप्त नमी न होने पर खेत को पलेवा करके तुरंत जुताई करनी चाहिए। एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा बाद में 2 से 3 जुताई देशी हल या कल्टीवेटर से करनी चाहिए, मिट्टी भूरभूरी कर लेना चाहिए। जिससे की नमी सुरक्षित बनी रह सके।
सूरजमुखी की खेती के लिए किस्में (Varieties for Sunflower Cultivation)
सूरजमुखी (Sunflower) की मुख्य रूप रूप से दो प्रकार की प्रजातियाँ पायी जाती है, एक तो सामान्य या संकुल प्रजातियाँ इसमें मार्डन और सूर्य पायी जाती है। दूसरा संकर प्रजातियाँ किसान भाई संकर किस्म की प्रजाति को अधिक पसंद करते है, क्योकि इसमें संकुल प्रजाति की तुलना में अच्छी पैदावार प्राप्त हो जाती है। सूरजमुखी (Sunflower) की कुछ किस्में इस प्रकार है, जैसे-
संकुल प्रजाति
यह किसानो द्वारा बहुत कम उगाई जाने वाली किस्में है, क्योकि इसमें पौधे छोटे होते है, तथा पैदावार भी कम प्राप्त होती है। मार्डन और सूर्या इस प्रजाति की मुख्य किस्में है, जिन्हें पैदावार के लिए उपयुक्त माना जाता है।
मार्डन: इस किस्म के पौधों को पूर्ण रूप से तैयार होने में 90 दिन का समय लग जाता है। जिसके बाद इसके पौधे तीन फीट तक लम्बे हो जाते है तथा इसके बीजों से 40 प्रतिशत तेल की मात्रा प्राप्त की जा सकती है। इसके पौधे बहुफसली जगहों से लिए उपयुक्त माने जाते है।
सूर्या: सूर्या किस्म के पौधे बीज रोपाई के 80 से 85 दिन बाद पककर तैयार हो जाते है। इसका पूर्ण विकसित पौधा 3 से 4 फीट तक लम्बा होता है। इसकी बुवाई को पछेती किस्में के लिए किया जाता है । यह किस्म प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 12 क्विंटल की पैदावार देती है।
संकर प्रजाति
एसएच- 3322: सूरजमुखी (Sunflower) किस्म के पौधों को तैयार होने में 90 से 95 दिन का समय लग जाता है, जिसमे 25 क्विंटल तक की पैदावार प्राप्त हो जाती है, तथा इसके बीजों में 40 प्रतिशत तक तेल की मात्रा पाई जाती है।
केवीएसएच- 1: इस किस्म को पछेती फसल के रूप में उगाया जाता है, जिसमे पौधों को तैयार होने में 90 दिन का समय लग जाता है तथा इसके पौधे 5 फीट तक लम्बे होते है, जो प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 30 क्विंटल की पैदावार देते है।
ऍफएसएच- 17: सूरजमुखी (Sunflower) की यह किस्म 90 दिनों में पककर तैयार हो जाती है, जिसके पौधे 5 फीट तक लम्बे पाए जाते है, इसके बीजों से 35 से 40 प्रतिशत तक तेल की मात्रा प्राप्त हो जाती है, यह किस्म प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 25 क्विंटल की पैदावार देती है।
सूरजमुखी की खेती के लिए बीज की मात्रा (Seed Quantity for Farming)
बीज की मात्रा अलग-अलग पड़ती है, जैसे की संकुल या सामान्य प्रजातियों में 12 से 15 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर बीज लगता है और संकर प्रजातियों में 5 से 6 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज लगता है। यदि बीज की जमाव गुणवत्ता 70 प्रतिशत से कम हो तो बीज की मात्रा बढ़ाकर बुआई करना चाहिए।
सूरजमुखी की खेती के लिए बीज उपचार (Seed Treatment for Farming)
बुवाई के पूर्व बीज को 12 घण्टे पानी में भिगोने के बाद 3 से 4 घण्टे छाया में सुखायें, जिससे बीज की सुसुप्तावस्था समाप्त हो जाये तत्पश्चात 2.5 ग्राम थीरम या 2.0 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति किग्रा बीज की दर से शोधित करें। बीज शोधित करने के पश्चात बीजों को एक जूट के बोरे पर छाये में फैलाकर एजोटोबैक्टर तथा पीएसबी कल्चर से उपचारित निम्नलिखित विधि द्वारा करें।
आधा लीटर पानी में 200 ग्राम एजोटोबैक्टर का एक पैकेट मिला दें। इस मिश्रण को 10 किग्रा बीज के ऊपर छिड़क कर हल्के हाथ से मिलायें जिससे बीज के ऊपर एक हल्की परत बन जाये। इस बीज को छाया में 1-2 घण्टे तक सुखा लें और इसी तरह पीएसबी से उपचारित कर लें और बुवाई करें, बुवाई तेज धूप में न करें क्योंकि तेज धूप में कल्चर के जीवाणुओं के मरने की आशंका बनी रहती है।
सूरजमुखी की बुआई का समय और विधि (Sunflower Sowing Time and Method)
बुआई का समय: सूरजमुखी (Sunflower) की बुवाई खरीफ, रबी और जायद ऋतु में की जाती है। जायद ऋतु में बुवाई का उपयुक्त समय 15 फरवरी से 15 मार्च और रबी में 15 नवंबर से 30 दिसंबर तक होता है।
बुआई की विधि: सूरजमुखी (Sunflower) की संकुल प्रजातियों के लिये पंक्ति से पंक्ति की दूरी 40 से 45 सेमी व पौधे से पौधे के बीच की दूरी 20 सेमी रखनी चाहिए वहीं संकर प्रजातियों के लिये पंक्ति से पंक्ति की दूरी 60 सेमी व पौधे से पौधे के की दुरी 30 सेमी एवं बीज की गहराई 2 से 5 सेमी रखें।
सूरजमुखी की खेती में उर्वरक का प्रयोग (Use of Fertilizer in Sunflower Cultivation)
सामान्य उर्वरकों का प्रयोग मृदा परिक्षण के आधार पर ही करना चाहिए फिर भी नत्रजन 80 किलोग्राम, 60 किलोग्राम फॉस्फोरस और पोटाश 40 किलोग्राम तत्व के रूप में प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है। नेत्रजन की आधी मात्रा और फॉस्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा बुआई के समय कुडों में प्रयोग करना चाहिए, इसका विशेष ध्यान देना चाहिए। अंतिम जुताई में खेत तैयार करते समय 250-300 क्विंटल सड़ी गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद लाभदायक पाया गया है।
सूरजमुखी की फसल में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management in Sunflower Crop)
पहली सिंचाई बुआई के 20 से 25 दिन बाद हल्की या स्प्रिंकलर से करनी चाहिए। बाद में आवश्यकतानुसार 10 से 15 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए। कुल 5 से 6 सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। फूल निकलते समय दाना भरते समय बहुत हल्की सिंचाई की आवश्यकता होती है। जिससे पौधे जमीन में गिरने न पाए क्योंकि जब दाना पड़ जाता है तो सूरजमुखी (Sunflower) के फूल के द्वारा बहुत ही पौधे पर वजन आ जाता है जिससे की गिर सकता है गहरी सिंचाई करने से।
सूरजमुखी की फसल में निराई और गुड़ाई (Weeding and Hoeing in Sunflower Crop)
सूरजमुखी (Sunflower) में बुवाई के 20 से 25 दिन बाद पहली सिंचाई के बाद निराई गुड़ाई करना अति आवश्यक है। रसायनों द्वारा खरपतवार प्रबंधन हेतु पेंडीमेथिलिन 3 प्रतिशत ईसी 3.3 लीटर मात्रा 600 से 800 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से बुआई के 2 दिनों के अन्दर छिड़काव करने से खरपतवारों का जमाव नहीं होता है।
सूरजमुखी की फसल में परागण की क्रिया (Pollination Process in Sunflower Crop)
सूरजमुखी (Sunflower) एक परिषेचित फसल है इसमें परिषेचन क्रिया अति आवश्यक है। यदि परिषेचन क्रिया नहीं हो पाती है, तो पैदावार बीज न बनने के कारण कम हो जाती है। इसलिए परिषेचन क्रिया स्वतः भवरों मधुमक्खियों तथा हवा आदि के द्वारा होती रहती है । फिर भी अच्छी पैदावार हेतु फुल आने के बाद हाथ से दस्ताने पहन कर या रोएदार कपड़ा लेकर फूलों पर चारों ओर धीरे-धीरे से धुआ देने से परिषेचन की क्रिया हो जाती है। यह क्रिया प्रातः 7 से 8 बजे के बीच में करनी चाहिए।
सूरजमुखी की फसल में रोग नियंत्रण (Disease Control in Sunflower Crop)
वर्षा ऋतु में झुलसा या अंगमारी रोग का प्रकोप अधिक होता है, जिसके फलस्वरूप सूरजमुखी (Sunflower) की उपज में बहुत कमी हो जाती है। पौधे पर गहरे भूरे और काले रंग के धब्बों के प्रकट होने के शीघ्र बाद फसल पर 0.3 प्रतिशत डाइथेन एम-45 या ड्यूटर का छिड़काव कर देना चाहिए। 10 दिनों के अन्तर पर चार-पाँच बार छिड़काव करना चाहिए।
इस रोग के अलावा जुलाई और अगस्त में बोई गई फसल में स्क्लेरोशियम म्लानि, शीतकालीन फसल में स्क्लेरोटिनिया ग्लानि और मार्च में बोई गई फसल में चारकोल विगलन नामक बीमारियों का प्रकोप भी होता है। इन बीमारियों से बचाव के लिए खेत में से रोगी पोधों को उखाड़कर जला देना चाहिए तथा सूरजमुखी (Sunflower) को दीर्घकालीन फसल चक्रों में उगाना चाहिए। फसल को रोगमुक्त रखने के लिए जिनेब (डाइबेन जैड – 78) की 2.5 किग्रा मात्रा 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रभावित फसल पर छिड़काव करें। आवश्यकता पड़ने पर 10-15 दिन के अन्तर पर छिड़काव करते रहें।
सूरजमुखी की फसल में कीट नियंत्रण (Pest Control in Sunflower Crop)
सूरजमुखी (Sunflower) पर हानिकारक कीडों का अधिक प्रकोप नहीं होता, फिर भी अंकुरण की अवस्था में अंकुर को कुछ कीड़े काटते हैं, जिससे नुकसान हो सकता है। फूल खिलने की अवस्था में सिरा वेधक हानि पहुँचा सकते हैं। इसके अतिरिक्त जैसिड के आक्रमण से भी हर समय फसल की रक्षा की जानी चाहिए।
बोआई से पहले खेत में 15 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से हेप्टाक्लोर (5 प्रतिशत धूल) मिलाकर इनकी रोकथाम की जा सकती है। मैटासिस्टॉक्स या डाइमन (25 ईसी) एक मिली दवा को एक लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
सूरजमुखी फसल की कटाई और मड़ाई (Sunflower Crop Harvesting and Threshing)
जब सूरजमुखी (Sunflower) के बीज कड़े हो जाए तो मुण्डकों की कटाई करके एकत्र कर लेना चाहिए तथा उनकों छाया में सुखा लेना चाहिए। इसके बाद डंडे से पिटाई करके बीज निकाल लेना चाहिए साथ ही सूर्यमुखी थ्रेशर का प्रयोग करना उपयुक्त होता है। संकुल का उपज 12 से 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और संकर की उपज 20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
सूरजमुखी (Sunflower) की फसल प्रकाश संवेदी है, अत: इसे वर्ष में तीन बार रबी, खरीफ और जायद सीजन में बोया जा सकता है। जायद मौसम में सूरजमुखी को फरवरी के प्रथम सप्ताह से फरवरी के मध्य तक बोना सबसे उपयुक्त होता है, जायद मौसम में कतार से कतार की दूरी 4-5 सेमी व पौध से पौध की दूरी 25-30 सेमी की दूरी पर बुवाई करें।
कुल मिलाकर, सूरजमुखी (Sunflower) की खेती भारतीय किसानों के लिए एक लाभदायक फसल हो सकती है, लेकिन इसमें शामिल सभी लागतों और जोखिमों को ध्यान में रखना महत्वपूर्ण है।
कर्नाटक वह राज्य है जो भारत में सबसे ज़्यादा सूरजमुखी (Sunflower) पैदा करता है। देश के छह राज्य सूरजमुखी का उत्पादन करते हैं, जिसमें कर्नाटक सबसे आगे है।
सूरजमुखी (Sunflower) को सितंबर से नवंबर के अंत तक बोया जा सकता है। गैर-पारंपरिक क्षेत्रों में, इसे वसंत ऋतु में जनवरी से फरवरी के अंत तक बोया जा सकता है। बीज दर और अंतराल: वर्षा आधारित फसल के लिए 5-6 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर और सिंचित फसल के लिए 4-5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज का उपयोग करें।
सूरजमुखी (Sunflower) मौसम से बंधी हुई फसल नहीं है। इसकी 90-125 दिनों की छोटी अवधि इसे एक आदर्श कैच फ़सल बनाती है।
सूरजमुखी (Sunflower) की फसल 90-105 दिन में पककर तैयार हो जाती है व उन्नत विधि से उत्पादन करने पर 18-25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज प्राप्त की जा सकती है।
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