Sweet Potato Farming: शकरकंद एक प्रमुख कन्दीय फसल है। यह बीटा कैरोटिन का समृद्ध स्रोत है और इसे एंटीऑक्सीडेंट तथा अल्कोहल के रूप में भी उपयोग किया जाता है, यह एक बारहमासी बेल है। शकरकंद को उबालकर और भूनकर ऐसे ही खाया जाता है। इसके अलावा इसे सब्जी बनाकर भी खाते हैं। आलू की अपेक्षा शकरकंद में स्टार्च और मिठास अधिक मात्रा में पाई जाती है।
इसमें पर्याप्त मात्रा में विटामिन पाया जाता है, जिस वजह से शकरकंद का सेवन करने से चेहरे पर चमक और बालों में भी वृद्धि होती है। शकरकंद (Sweet Potato) के लोब या दिल के आकार वाले पत्ते होते हैं। भारत में लगभग 2 लाख हैक्टर क्षेत्रफल में शकरकंद की खेती की जाती है।
बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और ओडिशा इसके प्रमुख उत्पादक राज्य हैं। पूरे विश्व में शकरकंद का सबसे ज्यादा उत्पादन करने वाला देश चीन है। भारत का शकरकंद उत्पादन में छठा स्थान है। इस लेख में शकरकंद की वैज्ञानिक खेती कैसे करे, जिससे अधिकतम उत्पादन प्राप्त हो सके का उल्लेख किया गया है।
शकरकंद की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for sweet potato cultivation)
शकरकंद की खेती विभिन्न प्रकार की जलवायु में की जा सकती है, परन्तु अधिकतम और आर्थिक रुप से लाभप्रद उत्पादन हेतु एक विशेष प्रकार की जलवायु की आवश्यकता होती है। फसल की अच्छी बढ़वार के लिए औसतन 20-27° सेंटीग्रेड तापमान जबकि कन्दीकरण हेतु 20-25° सेंटीग्रेड तापमान और दिन का छोटा होना आवश्यक है।
वायुमंडलीय तापमान का 10 सेंटीग्रेड से कम या 35 – 40° सेंटीग्रेड से अधिक होने पर इसकी उत्पादकता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। फसल अवधि में 750 मिमी या उससे अधिक वर्षा इसकी खेती के लिए लाभप्रद पाई गयी है। शकरकंद (Sweet Potato) की फसल हल्की से मध्यम छाया के प्रति सहिष्णु है।
शकरकंद की खेती के लिए मिट्टी का चयन (Selection of soil for sweet potato cultivation)
शकरकंद (Sweet Potato) की अच्छी उपज और सर्वोत्तम विकास के लिए उत्तम जल निकास युक्त उपजाऊ, बलुई से लेकर हल्की दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है। इसके कंद बहुत हल्की मिट्टी में पतले रह जाते हैं तथा बहुत भारी मिट्टी में जल जमाव तथा खुदाई आदि की समस्याओं के कारण इसकी खेती लाभप्रद नहीं हो पाती है। बहुत अम्लीय एवं क्षारीय मिट्टियों के प्रति भी यह संवेदनशील है। अच्छे उत्पादन के लिए भूमि का पीएच मान 5.2 से 6.7 के बीच उपयुक्त होता है।
शकरकंद की खेती के लिए खेत की तैयारी (Preparation of field for sweet potato cultivation)
शकरकंद (Sweet Potato) की रोपाई के पूर्व यह आवश्यक है कि खेत की तैयारी अच्छी तरह की जाए। खेत की तैयारी के लिए प्रथम जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से और दो जुताई देशी हल से करें। प्रत्येक जुताई के बाद खेत में पट्टा चला दें जिससे मिट्टी हल्की एवं भूरभूरी हो जाए ताकि कन्दों के विकास में कोई बाधा न हो।
शकरकंद की खेती के लिए किस्में (Sweet Potato Varieties for Cultivation)
आमतौर पर, शकरकंद (Sweet Potato) की किस्में आकार, पत्तियों के रंग, कंद और कंद के गूदे की प्रकृति में भिन्न होती हैं। कई स्थानीय रूप से उगाई जाने वाली किस्में उपलब्ध हैं लेकिन महत्वपूर्ण उच्च उपज देने वाली संकर किस्म – वर्षा, श्रीनंदिनी, श्री वर्धिनी, श्रीरत्न, क्रॉस – 4, कालमेघ, राजेंद्र शकरकंद – 5, श्रीवरुण, श्री अरुण, श्रीभद्र, कोंकण अश्विनी, पूसा सफेद, पूसा सुनहरी, गौरी, श्री कनका, एस टी – 13 और 14, सिपस्वा – 2, एच – 41 और 42 आदि मुख्य हैं।
शकरकंद की खेती के लिए बुआई का समय (Sowing time for sweet potato cultivation)
सिंचित स्थितियों में शकरकंदी – धान का फसलचक्र अपनाया जाता है। सामान्य तौर पर इसके पौधों की रोपाई किसी भी मौसम में की जा सकती है, किन्तु शकरकंद (Sweet Potato) की अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए गर्मी और बारिश का मौसम सबसे अच्छा माना जाता है । जायद के मौसम में इसके पौधों की रोपाई जून से अगस्त माह के मध्य में की जाती है। इसके बाद इसकी फसल खरीफ की फसल के साथ तैयार हो जाती है।
शकरकंद लिए बीज की मात्रा और उपचार (Seed quantity and treatment for sweet potato)
एक एकड़ खेती के लिए 250 से 340 किलो बेल (लता) की आवश्यकता होती है। इसके लिए बेल के शीर्ष और मध्य भाग की ही कटिंग रोपाई के लिए उपयोग में ली जाती है। इसकी जड़ों की कटिंग के दौरान प्रत्येक कटिंग में चार से पांच गांठें होनी चाहिए। जड़ों की कटिंग के दौरान उनकी लम्बाई 20 से 25 सेंटीमीटर होनी चाहिए। शकरकंद (Sweet Potato) की तैयार की गई कटिंग को उपचारित करने के लिए मानोक्रोटोफॉस या सल्फ्यूरिक एसिड की उचित मात्रा के घोल में डुबोकर रखना चाहिए।
शकरकंद की खेती के लिए रोपाई की विधि (Transplanting method for sweet potato cultivation)
शकरकंद (Sweet Potato) की नर्सरी में तैयार की गई कटिंग की रोपाई खेत में मेड़ों पर की जाती है। मेड़ पर रोपाई के दौरान प्रत्येक कटिंग के बीच लगभग एक फुट की दूरी होनी चाहिए। इसकी कटिंग की रोपाई के दौरान प्रत्येक जगह दो कटिंग एक साथ लगानी चाहिए। इसकी कटिंग को भूमि में लगभग 20 सेंटीमीटर की गहराई में लगाना चाहिए।
इस विधि से रोपाई के बाद पौधों के विकास के दौरान उन पर बार-बार मिट्टी चढ़ाने के लिए अधिक मेहनत नहीं करनी पड़ती। समतल भूमि में लगाने के दौरान इन्हें क्यारियों में कतारों के रूप में लगाते हैं। इस दौरान कतारों के बीच दो फुट की दूरी होनी चाहिए। पौधे से पौधे के बीच 30 से 40 सेंटीमीटर की दूरी होनी चाहिए। समतल भूमि में रोपाई के दौरान इसके पौधों पर कई बार मिट्टी चढ़ानी पड़ती है।
शकरकंद की खेती के लिए खाद और उर्वरक (Manure and fertilizers for sweet potato cultivation)
भूमि की तैयारी के समय अच्छी तरह सड़ी हुई 25 टन गोबर की खाद को मिट्टी में मिला दें। एनपीके उर्वरकों को 60:60:120 किग्रा प्रति हैक्टर के अनुपात में डालना चाहिए। पौध रोपण के समय ‘पी’ और ‘के’ की पूरी तथा ‘एन’ की आधी खुराक देनी चाहिए। शकरकंद की बिजाई के 1 महीने बाद ‘एन’ की बची हुई 1/2 मात्रा डालें।
शकरकंद (Sweet Potato) की फसल में साइकोसेल के 500 पीपीएम का छिड़काव रोपाई के 30 से 45 दिनों बाद करना अच्छी उपज प्राप्त करने में श्रेयस्कर पाया गया है। यदि भूमि में जिंक या मैग्नीज की कमी के लक्षण दिखलाई पड़े तो जिंक सल्फेट या मैग्नीज सल्फेट का छिड़काव करने की अनुशंसा की गई है।
शकरकंद की खेती के लिए खरपतवार नियंत्रण (Weed control for sweet potato cultivation)
रोपाई के 30 दिनों बाद प्रथम निकाई-गुड़ाई करने की अनुशंसा की गई है। यदि खेत में पुनः खरपतवार उग आए तो आवश्यकतानुसार दूसरी निकाई-गुड़ाई 60-65 दिनों बाद करें। इसी समय लताओं को मिट्टी की सतह से एक बार उलट-फेर कर दें, ताकि गाँठों से आनावश्यक जड़ों का जमाव न हो तथा लताओं का समुचित विकास हो सकें।
ऐसा करने से यह पाया गया है कि मुख्य जड़ों में विकसित होने वाले कन्दों का समुचित विकास होता है। शकरकंद (Sweet Potato) की फसल में रासायनिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण के लिए कंदों के अंकुरण से पहले मेट्रीबिजाइन और पैराक्वाट की उचित मात्रा का छिड़काव खेत में कर देना चाहिए।
शकरकंद की फसल में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management in Sweets Potato Crop)
गर्मी के मौसम में शकरकंद (Sweet Potato) की रोपाई करने के दौरान इसके पौधों को सिंचाई की ज्यादा जरूरत होती है। इस दौरान इसके पौधों कीरोपाई के तुरंत बाद उन्हें पानी दे देना चाहिए । उसके बाद पौधों के विकास के दौरान इसके पौधों को सप्ताह में एक बार पानी देते रहना चाहिए।
खरीफ की फसल के साथ इसकी रोपाई के दौरान इसके पौधों को सिंचाई की ज्यादा जरूरत नही होती। क्योंकि इस दौरान इसकी रोपाई बारिश के मौसम में की जाती है। इसलिए पौधों को सिंचाई की कम जरूरत होती है। हालंकि आवश्यकतानुसार 15 से 20 दिनों के अन्तराल पर तथा मिट्टी में मौजूद नमी को ध्यान में रखते हुए सिंचाई करें।
शकरकंद की फसल में कीट और रोग नियंत्रण (Pest and disease control in sweets potato crop)
अगेती झुलसा: शकरकंद (Sweet Potato) के पौधों में यह रोग फफूंद की वजह से फैलता है। इसकी फफूंद मौसम परिवर्तन के दौरान मौसम में अधिक नमी और उमस के कारण होती है। इस रोग के लगने पर पौधों की पत्तियों पर भूरे पीले रंग के धब्बे दिखाई देने लगते हैं।
रोग के उग्र होने की स्थिति में इन धब्बों का आकार बढ़ जाता है और पौधे की पत्तियां सूखकर गिरने लगती हैं। इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर मैन्कोजेब या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड की उचित मात्रा का छिड़काव रोग दिखाई देने के बाद तुरंत कर देना चाहिए।
माहूं: शकरकंद (Sweet Potato) की खेती में रोग माहूं कीट की वजह से फैलता है। कीटों का आकार छोटा और रंग पीला, काला, लाल और हरा दिखाई देता है। इस रोग के कीट पौधे की पत्तियों और उसके कोमल भागों पर आक्रमण कर पौधे का रस चूसते हैं, जिससे पौधे विकास करना बंद कर देते हैं।
रोग बढ़ने की स्थिति में सम्पूर्ण पौधा नष्ट हो जाता है। इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर इमिडाक्लोप्रिड की उचित मात्रा का छिड़काव करना चाहिए। इसके अलावा पौधों पर नीम के तेल का छिड़काव रोग दिखाई देने के तुरंत बाद 10 दिनों के अंतराल में दो से तीन बार करना चाहिए।
शकरकंद के कंदों की खुदाई और सफाई (Digging and cleaning of sweet potato tubers)
शकरकंद के पौधे रोपाई के लगभग 110 से 120 दिनों बाद खुदाई के लिए तैयार हो जाते हैं। इस दौरान पौधे की पत्तियां पीली पड़कर गिरने लग जाती हैं, तब इसके कंदों की खुदाई कर लेनी चाहिए। शकरकंद (Sweet Potato) कंदों की खुदाई के बाद उनकी सफाई की जाती है, जिसमें इसके कंदों को पानी में साफ कर कुछ वक्त छायादार जगह में सुखा देते हैं।
शकरकंद की फसल से उपज (Yield from sweets potato crop)
शकरकंद (Sweet Potato) की पैदावार किस्मों के अनुसार अलग-अलग होती है। सामान्य रूप से औसत पैदावार 15 से 25 टन प्रति हैक्टर तक देखी गयी है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
शकरकंद की खेती के लिए 21 से 27 डिग्री तापमान उपयुक्त माना जाता है। इसकी फसल शीतोष्ण और समशीतोष्ण जलवायु वाले स्थानों पर सफलतापुर्वक उगाई जाती है, और जहां पर 75 से 150 सेंटीमीटर वार्षिक वर्षा होती है वहां शकरकंद (Sweet Potato) को आसानी से उगाया जा सकता है।
शकरकंद (Sweet Potato) अच्छी जल निकासी वाली, हल्की, रेतीली दोमट या गाद वाली दोमट मिट्टी में सबसे अच्छी उपज देते हैं। समृद्ध, भारी मिट्टी कम गुणवत्ता वाली जड़ों की उच्च उपज देती है, और बेहद खराब, हल्की रेतीली मिट्टी आम तौर पर उच्च गुणवत्ता वाली जड़ों की कम उपज देती है। खेत का चयन करते समय सतही और आंतरिक जल निकासी दोनों महत्वपूर्ण हैं।
शकरकंद (Sweet Potato) की खेती किसी भी मौसम में की जा सकती है। लेकिन अच्छी पैदावार पाने के लिए गर्मी और बारिश का मौसम सबसे अच्छा माना जाता है। जायद के मौसम में इसके पौधों की रोपाई जून और अगस्त महीने के बीच में की जा सकती है।
शकरकंद (Sweet Potato) आम तौर पर 85 से 120 दिनों में पक जाते हैं। 80 से 85 दिनों के बाद जड़ों के आकार की जाँच करें क्योंकि वे बढ़ना बंद नहीं करते हैं और जब वे बहुत बड़े हो जाते हैं तो वे विभाजित होने लगते हैं। अगर आप पहले बेलों को काट दें तो खुदाई करना आसान होता है।
शकरकंद (Sweet Potato) की नर्सरी में तैयार की गई कटिंग की रोपाई खेत में मेड़ों पर की जाती है। इसकी रोपाई या बुवाई अप्रैल से जुलाई के महीने में गर्मी और बारिश के मौसम में कि जाती हैं, और इसकी खेती के लिए नर्सरी जनवरी से फरवरी महीने में तैयार की जाती है। इसकी रोपाई के लिए 30 से 35 हजार कटिंग कर हुई बेल या 300 से 320 किलो कंदों की प्रति हेक्टेयर आवश्यकता होती है।
यदि शकरकंद पौधों की रोपाई गर्मी के मौसम में की है, तो पौधे की रोपाई करने के तुरंत बाद उन्हें पानी देना चाहिए। इसके बाद इसके पौधों की सिंचाई सप्ताह में एक बार की जाती है। इस अंतराल पर सिंचाई करने से खेत में पर्याप्त मात्रा में नमी बनी रहती है और शकरकंद (Sweet Potato) के कंदों का विकास अच्छे से होता है। बारिश के मौसम में इसको सिंचाई की आवश्यकता नही होती।
शकरकंद की उपज किस्मों के अनुसार अलग-अलग होती है। सामान्य रूप से शकरकंद (Sweet Potato) की औसत पैदावार 15 से 25 टन प्रति हैक्टर तक प्राप्त की जा सकती है।
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