Taramira Cultivation: तिलहनी फसलों में तारामीरा की फसल संरक्षित नमी और बारानी क्षेत्रों में ली जा सकती है। यह फसल कम लागत और कम सिंचाई सुविधा में भी अन्य फसलों की तुलना में सबसे अधिक लाभ प्रदान करती है। इस फसल को कम उपजाऊ तथा अनुपयोगी भूमि पर भी बोया जा सकता है। इसमें तेल की मात्रा लगभग 35 प्रतिशत पायी जाती है। तारामीरा (Taramira) रबी की सबसे पहले बोयी जाने वाली फसल है।
तारामीरा की फसल का उपयोग व्यवसायिक प्रयोगों में ज्यादा हो रहा है। इस फसल का इस्तेमाल जड़ी बूटी के रूप में ज्यादा होता है। इसके तेल से कमर दर्द और समय से पहले बालों का झड़ना तथा डैंड्रफ जैसी समस्याओं के लिए राम बाण सिद्ध होता है। तारामीरा (Taramira) की पत्तों को भूनकर खाने से हमारे शरीर में विटामिन ए और पोटेशियम की भरपूर मात्रा मिलती है। जिससे हमारे आंखों में रोशनी एवं हड्डियों में मजबूती मिलती है।
तारामीरा की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for cultivation of Tara mira)
तारामीरा रबी मौसम की फसल है, जिसे ठन्डे शुष्क मौसम और चटक धुप वाले दिन कि आवश्यकता होती है। अधिक वर्षा वाले स्थान इसकी खेती के लिए उपयुक्त नहीं है, अधिक तेल उत्पादन के लिए इसको ठंडा तापक्रम साफ खुला मौसम और पर्याप्त मृदा नमी की आवश्यकता पड़ती है।
फूल आने और बीज पड़ने के समय बादल और कोहरे भरे मौसम से तारामीरा की फसल (Taramira Crop) पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है। इस मौसम में कीटों और बीमारियों का प्रकोप अधिक होता है। तारामीरा की फसल पाले के प्रति अधिक संवेदी होती है।
तारामीरा की खेती के लिए भूमि का चयन (Selection of land for Tara mira cultivation)
तारामीरा (Taramira) के लिए हल्की दोमट मिट्टी अधिक उपयुक्त रहती है। तारामीरा की खेती सामान्यत: बारानी क्षेत्रों में होती है। अम्लीय और अधिक क्षारीय मृदा इसके लिये उपयुक्त नही है।
तारामीरा की खेती के लिए खेत की तैयारी (Field preparation for the cultivation of Taramira)
तारामीरा (Taramira) की खेती अधिकांशत: बारानी क्षेत्रों में ऐसे स्थानों में की जाती है जहाँ अन्य फसल सफलता पूर्वक पैदा नहीं की जा सकती है। खरीफ की चारे या उड़द, मूंग, चंवला आदि या मक्का, ज्वार की फसल लेने के बाद नमी हों, तो एक हल्की जुताई करके इसे सफलता पूर्वक बोया जा सकता है। जहाँ तक संभव हो वर्षा ऋतु में तारामीरा की बुवाई हेतु खेत खाली नहीं छोड़ना चाहिये।
खेत के ढेले तोड़कर पाटा लगाना भूमि की नमी को बचना लाभकारी रहता है। दीमक और जमीन के दीमक और जमीन के अन्य कीड़ों की रोकथाम हेतु बुवाई से पूर्व जुताई के समय क्यूनालफॉस 1.5 प्रतिशत चूर्ण 25 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर खेत में बिखेर कर जुताई करनी चाहिये।
तारामीरा की खेती के लिए किस्में (Varieties for cultivation of Taramira)
वल्लभ तारामीरा- 2: यह किस्म बारानी क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है। इसकी फसल अवधि 135 दिन है तथा उपज 13-14 क्विण्टल प्रति हैक्टेयर है। इस किस्म में तेल की मात्रा 38-39 प्रतिशत होती है।
टी- 27: यह किस्म सूखे के प्रति सहनशील तथा बारानी क्षेत्रों में बुवाई के लिये उपयुक्त है। इसकी उपज 5-6 क्विण्टल प्रति हैक्टेयर तथा फसल की अवधि 150 दिन है। इसमें तेल की मात्रा 36 प्रतिशत होती है।
आरटीएसए: तारामीरा (Taramira) की यह किस्म बारानी क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है। इसकी फसल अवधि 150 दिन है तथा उपज 6-7 क्विण्टल प्रति हैक्टेयर है। इस किस्म में तेल की मात्रा 35-36 प्रतिशत होती है।
आरटीएम (नरेन्द्रतारा): यह किस्म सामान्य और देरी से बुवाई के लिये उपयुक्त है। इसकी औसत उपज 12-14 क्विण्टल प्रति हैक्टेयर है। इस किस्म में तेल की मात्रा अधिक पायी जाती है तथा यह सफेद रोली, छाछ्या व तुलासिता के प्रति रोग रोधक है।
आरटीएम- 314: यह किस्म बारानी क्षेत्रों के लिये उपयुक्त है। इस किस्म की शाखाएं 90-100 सेन्टीमीटर उंची फैली हुई होती है। इसके 1000 दानों का वजन 3.5 ग्राम और तेल की मात्रा लगभग 37 प्रतिशत होती है। यह 130-140 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इसकी 12-15 क्विंटल प्रति हैक्टेयर उपज है।
तारामीरा के लिए बीज की मात्रा और उपचार (Seed quantity and treatment for Taramira)
तारामीरा की खेती (Taramira Farming) के लिए 5 किलोग्राम बीज प्रति हैक्टेयर पर्याप्त होता है। बुवाई से पहले बीज को 1.5 ग्राम मैंकोजेब द्वारा प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीज को उपचारित करें।
तारामीरा के लिए बुवाई का समय और विधि (Sowing time and method for Taramira)
बारानी क्षेत्रों में बुवाई का समय भूमि की नमी और तापमान पर निर्भर करता है। नमी की उपलब्धि के आधार पर तारामीरा (Taramira) की बुवाई 15 सितम्बर से 15 अक्टूबर तक कर देनी चाहिये। कतारों में 5 सेंटीमीटर गहरा बीज बोयें। कतार से कतार की दूरी 40 सेंटीमीटर रखें।
तारामीरा की फसल में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management in Tara mira Crop)
तारामीरा की फसल (Taramira Crop) में प्रथम सिंचाई 40 से 50 दिन में, फूल आने से पहले करें। तत्पश्चात आवश्यकता पड़ने पर दूसरी सिंचाई दाना बनते समय करें।
तारामीरा की फसल में खरपतवार नियंत्रण (Weed control in Taramira crop)
तारामीरा फसल (Taramira Crop) में खरपतवार नियंत्रण के लिए बुवाई के 20 से 25 दिन बाद निराई करें। पौधों की संख्या अधिक हो तो बुवाई के 8 10 दिन बाद अनावश्यक पौधों को निकालकर पौधे से पौधे की दूरी 8 से 10 सेन्टीमीटर कर दें।
तारामीरा की फसल में कीट नियंत्रण (Pest control in Taramira crop)
तारामीरा (Taramira) का मुख्य कीट मोयला है। कीट का प्रकोप होते ही मिथाइल पैराथियॉन 2 प्रतिशत या कार्बेरिल 5 प्रतिशत या मैलाथियॉन 5 प्रतिशत चूर्ण 20 से 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से फसल पर भुरके अथवा मैलाथियॉन 50 ईसी डायमिथोयेट 30 ईसी 875 मिलीलीटर या मिथाइल डिमेटॉन 25 ईसी 1 लीटर या कार्बेरिल 50 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण ढाई किलोग्राम को पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़कें।
तारामीरा की फसल में रोग नियंत्रण (Disease control in Taramira crop)
तारामीरा (Taramira) में सफेद रोली, झुलसा और तुलासिता – रोगों के लक्षण दिखाई देते ही मैंकोजेब डेढ़ किलोग्राम का 0.2 प्रतिशत पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। यदि प्रकोप ज्यादा हो तो यह छिड़काव 20 दिन के अंतर पर दोहरायें।
तारामीरा फसल का पाले से बचाव (Protection of taramira crop from frost)
तारामीरा (Taramira) को पाले से बचाने के लिये 0.1 प्रतिशत गन्धक के अम्ल का खड़ी फसल पर पाला पड़ने की सम्भावना होने पर एक दो बार छिड़काव करें। लगभग 0.1 प्रतिशत थायो यूरिया और 0.4 पीपीएम ब्रासीर्नास्टेरोराइड का छिड़काव भी किसी तरह के जलवायु दबाव से बचने के लिये प्रयोग कर सकते हैं।
तारामीरा फसल की कटाई और उपज (Taramira Crop Harvesting and Yield)
तारामीरा फसल (Taramira Crop) के जब पत्ते झड़ जायें और फलियां पीली पड़ने लगे तो फसल काट लेनी चाहिए अन्यथा कटाई में देरी होने पर दाने खेत में झड़ जाने की आशंका रहती है। उपरोक्त तकनीक और अनुकूल स्थितियों में 12 से 17 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पैदावार प्राप्त हो जाती है।
तारामीरा खेती के लाभ (Benefits of Taramira Farming)
- यह किसानों के लिए आय बढ़ाने में मदद करेगा।
- यह भारत के लोगों के लिए खाद्य सुरक्षा को स्थिर करने में मदद करेगा।
- यह किसानों के लिए प्रति हेक्टर उत्पादन बढ़ाएगा।
- इसके तेल का औद्योगिक उपयोग अधिक होने के कारण औद्योगिकरण को बढ़ावा देगा।
- यह अधिक किसानों को तारामिरा में खेती के लिए प्रेरित करेगा।
- तारामीरा (Taramira) फसल को कम पानी वाले क्षेत्रों में भी उगाया जा सकता हैं।
- यह सरकार को विभिन्न योजनाओं के साथ आने के लिए प्रोत्साहित करेगा।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
तारामीरा (Taramira) उत्तर-पश्चिमी भारत के शुष्क क्षेत्रों की एक महत्वपूर्ण तिलहन फसल है। इसका तेल सीधे नहीं खाया जाता है, हालाँकि बाद में तीखापन बढ़ाने के लिए इसे सरसों के तेल में मिलाया जाता है। इसकी उत्पत्ति भूमध्यसागरीय क्षेत्र में हुई थी।
सरसों, तारामीरा (Taramira) और अलसी रबी मौसम की मुख्य तिलहनी फसलें हैं। खरीफ तिलहनी फसलों में मूंगफली, सोयाबीन, तिल और अरंडी प्रमुख हैं।
नमी की उपलब्धता के आधार पर तारामीरा (Taramira) की बुवाई 15 सितम्बर से 15 अक्टूबर तक कर देनी चाहिए।
औसत उपज 15.79 क्विंटल प्रति हेक्टेयर (6.39 क्विंटल प्रति एकड़) है, और तारामीरा (Taramira) को केवल वर्षा आधारित फसल के रूप में उगाया जाता है।
भारत में, तेल का उपयोग अचार बनाने, तीखेपन को कम करने के लिए, सलाद या खाना पकाने के तेल के रूप में किया जाता है। तेल का उपयोग मालिश तेल के रूप में और त्वचा को आराम देने के लिए भी किया जाता है। तेल उत्पादन का एक उपोत्पाद, बीज केक, पशु आहार के रूप में भी उपयोग किया जाता है।
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