Taro Farming: अरबी (घुइयां) मुख्यत: कन्द के रूप में उपयोग की जाने वाली सब्जी फसल है। इसकी खेती खरीफ और ग्रीष्म दोनों मौसम में सफलतापूर्वक की जाती है, परन्तु ग्रीष्म कालीन अरबी का बाजार मूल्य खरीफ कालीन अरबी से अधिक मिलता है। इसके पत्तियों तथा कन्दों में कैल्शियम ऑक्जीलेट पाया जाता है, जिसके कारण खाते समय गले में खुजलाहट होती है। अरबी के पत्तियों में विटामिन ‘ए’ फास्फोरस, कैल्शियम, आयरन और बीटा कैरोटिन साथ ही कन्दों में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन एवं स्टार्च प्रचुर मात्रा में पायी जाती है।
अरबी की कोमल और हरी पत्तियों के साग, पकौड़े तथा बेसन और अन्य मसालों के साथ पका कर खाया जाता है, साथ ही कन्दों को उबाल कर छिलका निकालने के पश्चात् तेल में भून कर व्यंजन तैयार किया जाता है। अरबी की पत्तियों के डंठल को टुकड़ों में काट एवं सुखाकर सब्जी के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। इस लेख में अरबी की खेती (Taro Cultivation) वैज्ञानिक तकनीक से कैसे करें का उल्लेख किया गया है।
अरबी की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for the cultivation of taro)
अरबी गर्म और आर्द्र जलवायु की फसल है, अधिक गर्म और सूखा मौसम इसकी उपज को प्रभावित करता है। जिन क्षेत्रों में औसत वर्षा 900-1000 मिमी तक होती है, उन स्थानों पर इसकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है। इसके लिए 21-27 डिग्री सेंटीग्रेड तापक्रम की आवश्यकता पड़ती है। पुराने फलदार पौधों जैसे- अमरूद, आंवला आदि के बीच अर्न्तवर्तीय फसल के रूप में अरबी की (Taro)अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है।
अरबी की खेती के लिए भूमि का चयन (Selection of land for taro cultivation)
अरबी खरीफ एवं जायद (गर्मी) ऋतु की फसल है। इसके सर्वोत्तम विकास तथा अच्छी उपज हेतु जल निकास की अच्छी व्यवस्था, प्रचुर जीवांश पदार्थ युक्त उपजाऊ तथा हल्की बलुई दोमट मिट्टी सबसे अधिक उपयुक्त है। अरबी की खेती (Taro Cultivation) के लिए 5.5-7.0 पीएच मान वाली भूमि उपयुक्त मानी गयी है।
अरबी की खेती के लिए भूमि की तैयार (Preparation of land for cultivation of taro)
रोपाई के पूर्व खेत को अच्छी तरह तैयार कर लें, इसके लिए आवश्यक है कि खेत की प्रथम जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से और 2 से 3 बार गहरी जुताई करनी चाहिए। प्रत्येक जुताई के बाद पट्टा चला दें जिससे खेत समतल हो जाए तथा नमी बरकरार रहे। अरबी की खेती के लिए भूमि तैयार करते समय 200 से 250 क्विंटल गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर की दर से घुइयां (Taro) की बुवाई के 15 से 20 दिन पहले खेत में मिला देनी चाहिए। अरबी की बुवाई समतल या मेड़ पर की जाती है।
अरबी की खेती के लिए उन्नत किस्में (Advanced varieties for cultivation of taro)
इंदिरा अरबी 1: इस घुइयां (Taro) किस्म के पत्ते मध्यम आकार और हरे रंग के होते हैं। तने (पर्णवृन्त) का रंग ऊपर- नीचे बैंगनी तथा बीच में हरा होता हैं। इस किस्म में 9 से 10 मुख्य पुत्री धनकंद पाये जाते है। इसके कंद स्वादिष्ट खाने योग्य होते हैं और पकाने पर शीघ्र पकते हैं, यह किस्म 210 से 220 दिन में खुदाई योग्य हो जाती हैं। इसकी औसत पैदावार 22 से 33 टन प्रति हेक्टेयर हैं।
श्रीरश्मि: इसका पौधा लम्बा, सीधा और पत्तियाँ झुकी हुई, हरे रंग की बैंगनी किनरा लिये होती है। तना (पर्णवृन्त) का ऊपरी भाग हरा, मध्य तथा निचला भाग बैंगनी हरा होता हैं। इसका मातृ कंद बडा और बेलनाकार होता हैं। पुत्री धनकंद मध्यम आकार के व नुकीले होते हैं। इस किस्म के कंद कंदिकाएँ, पत्तियां और पर्णवृन्त सभी तीक्ष्णता (खुजलाहट) रहित होते हैं तथा उबालने पर शीघ्र पकते हैं। यह किस्म 200 से 201 दिन में खुदाई के लिये तैयार हो जाती हैं और इससे औसत 15 से 20 टन प्रति हेक्टेयर पैदावार प्राप्त होती हैं।
पंचमुखी: इस घुइयां (Taro) किस्म में सामान्यत: पॉच मुख्य पुत्री कंदिकाये पायी जाती हैं, कंदिकायें खाने योग्य होती है और पकने पर शीघ्र पक जाती हैं। रोपण के 180 से 200 दिन बाद इसके कंद खुदाई योग्य हो जाते हैं। इस किस्म से 18 से 25 टन प्रति हेक्टेयर औसत कंद पैदावार प्राप्त होती हैं।
व्हाइट गौरेइया: अरबी (Taro) की यह किस्म रोपण के 180 से 190 दिन में खुदाई योग्य हो जाती हैं। इसके मातृ तथा पुत्री कंद व पत्तियां खाने योग्य होती हैं। इसकी पत्तियां डंठल और कंद खुजलाहट मुक्त होते हैं। उबालने या पकाने पर कंद शीघ्र पकते है। इस किस्म की औसत पैदावार 17 से 19 टन प्रति हेक्टेयर हैं।
नरेन्द्र अरबी: इस किस्म के पत्ते मध्यम आकार के तथा हरे रंग के होते हैं। पर्णवृन्त का ऊपरी और मध्य भाग हरा निचला भाग हरा होता हैं। यह 170 से 180 दिनों में तैयार हो जाती हैं। इसकी औसत पैदावार 12 से 15 टन प्रति हेक्टेयर हैं। इस किस्म की पत्तियॉ, पर्णवृन्त एवं कंद सभी पकाकर खाने योग्य होते हैं।
पंजाब अरबी – 1: यह घुइयां (Taro) किस्म 2009 में विकसित की गयी है, इसके पौधे लम्बे, हरे पत्तों वाले जो तिरछे आकार में होते है, घनकंद भूरे, गूदा क्रीम रंग का होता है। यह 175-180 दिनों में तैयार हो जाती है, इसकी औसत उपज लगभग 22.0 -22.5 टन प्रति हेक्टेयर होती है।
अन्य किस्में: अरबी की अन्य किस्में श्री पल्लवी, श्री किरण, सतमुखी, आजाद अरबी, मुक्ताकेशी और बिलासपुर अरूम प्रचलित है। ये अरबी (Taro) की किस्में 135 से 200 दिन में तैयार हो जाती है और इनकी औसत पैदावार 17 से 30 टन प्रति हेक्टेयर है।
अरबी की खेती के लिए बुवाई का समय (Sowing time for taro cultivation)
अरबी की बुवाई साल में दो बार की जाती है। इसकी बुवाई बारिश और गर्मियों के दोनों मौसम में कि जाती है। यह खरीफ और जायद दोनों मौसम की फसल है और इसकी खेती खरीफ मौसम (जून-जुलाई) एवं जायद (फरवरी – मार्च) में सफलतापूर्वक की जा सकती है। सामान्यतः जायद (फरवरी- मार्च) मौसम की फसल की खेती उत्तर भारत में अधिक की जाती है। अरबी (Taro) के पौधे बरसात और गर्मी में काफी तेजी से विकसित होते हैं।
अरबी के बीज की मात्रा और बीज उपचार (Quantity of taro seeds and seed treatment)
बीज की मात्रा: अरबी (Taro) के बीज (घनकन्द ) की मात्रा उसके किस्म आकार और वजन पर निर्भर करती है। सामान्यत: एक हेक्टेयर की बुवाई हेतु 180-200 किग्रा घनकंद की आवश्यकता पड़ती है। प्रत्येक धनकंद का वजन 20-25 ग्राम तक होना चाहिए।
बीज उपचार: अरबी के घनकंदों को खेत में बुवाई से पूर्व उपचारित करना आवश्यक होता है। बीज उपचार के लिए मैंकोजेब + मेटालैक्सिल 3 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर घनकन्दों को 25-30 मिनट तक डुबोकर रखना चाहिए। इसके अतिरिक्त स्ट्रप्टोसाइक्लिन 5 ग्राम मात्रा प्रति 20 लीटर पानी की दर से मिलाकर उपचारित करते हैं। जिससे जीवाणु जनित रोगों का नियंत्रण किया जा सके, साथ ही 3-4 घंटे छाया में सुखाने के पश्चात् बुवाई करनी चाहिए।
अरबी के लिए घनकंद रोपड़ की विधियाँ (Methods of planting corm for taro)
मेड़ नाली विधियों: मेड़ नाली विधि में खेत अच्छी प्रकार से तैयार करने के पश्चात् 60 सेंमी (कतार से कतार) की दूरी पर मेड़ व नाली बना ली जाती है, जिसकी ऊचाई लगभग 10 सेंमी तक होनी चाहिए, तत्पश्चात् 45 सेंमी की दूरी पर अरबी (Taro) घनकंद बीज की 5 सेंमी गहराई में बुवाई करनी चाहिये।
नाली मेड़ विधि: नाली मेड विधि अन्तर्गत अरबी (Taro) का रोपण 8-10 सेंमी गहरी नाली में 60-70 सेंमी के अन्तराल पर करना चाहिए। रोपड़ से पूर्व बनी हुई नालियों में मृदा परीक्षण के पश्चात् फसल हेतु अनुसंशित मात्रा में खाद एवं उर्वरक देना चाहिए। रोपड़ के दो माह पश्चात् शेष उर्वरक मात्रा को देने के साथ ही गुड़ाई कर पौधों पर मिट्टी चढ़ाना चाहिए। यह विधि रेतीली दोमट और नदी किनारे भूमि के लिए सर्वोत्तम माना गया है।
ऊँची समतल क्यारी मेड़ नाली विधि: इस विधि में पूर्ण रूप से खेत तैयार होने के पश्चात् 10-12 सेंमी ऊँची समतल क्यारियाँ बना लेते है, जिसके चारों तरफ जल निकास नाली 50 सेंमी की होती है। इन क्यारियों में 60 सेंमी की दूरी रखते हुए 45 सेंमी के अन्तराल पर धनकंद बीजों का रोपण 5 सेंमी की गहराई पर किया जाता है। इस विधि में निराई-गुड़ाई के साथ उर्वरक की रोपण के दो माह बाद शेष मात्रा देने के बाद पौधों पर मिट्टी चढ़ा कर बेड को मेड़ नाली में परिवर्तित करते हैं। यह विधि अरबी की खरीफ फसल हेतु सर्वोत्तम मानी जाती है।
अरबी की फसल में खाद और उर्वरक (Manure and fertilizer in taro crop)
अरबी की खेती (Taro Cultivation) के लिए भूमि तैयार करते समय 20-25 टन सड़ी गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद और 80:60:80 किग्रा नत्रजन, फास्फोरस और पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए। रसायनिक उर्वरकों (नत्रजन, फास्फोरस एवं पोटाश) को तीन भागों में विभाजित कर लिया लिया जाता है।
रोपड़ से पूर्व फास्फोरस की सम्पूर्ण मात्रा नत्रजन एवं पोटाश की एक तिहाई मात्रा आधार उर्वरक के रूप में खेत की अन्तिम जुताई के समय प्रयोग करना चाहिए और रोपड़ के 35 दिनों के बाद नत्रजन की शेष आधी मात्रा का प्रयोग निराई-गुडाई के समय करना चाहिए। दो माह पश्चात् नत्रजन की तीसरी तथा पोटाश की शेष बची मात्रा देने के पश्चात् पौधों पर मिट्टी चढ़ा देना चाहिए।
अरबी की फसल में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management in taro Crop)
वर्षा आधारित अरबी फसल (Taro Crop) वर्षा पर निर्भर करती है, यदि वर्षा आवश्यकतानुसार हो रही है तो सिंचाई की आवश्यकता नही पड़ती है। यदि वर्षा कम हो रही है, तो 15-20 दिनों के अन्तराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए। साथ ही सिंचित अवस्था में रोपी गयी फसल में 5-6 दिनों के अन्तराल पर 5 माह तक सिंचाई आवश्यक है।
परिपक्व होने पर भी अरबी की पत्तियाँ हरी दिखती है, उनकी पत्तियाँ का फैलाव अधिक होने के कारण वाष्पोत्सर्जन अधिक होता है। इसलिए अरबी की फसल को अन्य सब्जी फसलों की अपेक्षा अत्यधिक पानी की आवश्यकता पड़ती है। खुदाई के एक माह पूर्व सिंचाई बंद कर देना चाहिए, जिससे नये पत्ते नही निकलते हैं तथा फसल पूर्ण रूप से परिपक्व हो जाती है।
अरबी की फसल में खरपतवार नियंत्रण (Weed control in arbi crop)
अरबी (Taro) की अच्छी पैदावार के लिए यह आवश्यक है, कि खेत खरपतवार से मुक्त तथा मिट्टी भुरभुरी बनी रहे। जिसके लिए अन्त: सस्य क्रियायें अति आवश्यक है। अरबी फसल की प्रथम निराई-गुड़ाई 40-45 दिनों के पश्चात् करने के बाद मेड़ पर मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए। यदि धनकंद बीज रोपड़ के बाद पलवार (मल्चिंग ) का प्रयोग किया गया है, तो खर-पतवारों का नियंत्रण स्वत: हो जाता है और कन्दों का अंकुरण भी अच्छा होता है। अरबी की फसल में कुल तीन निराई-गुडाई (30, 60, 90 दिनों) की आवश्यकता होती है।
फसल के 60 दिनों बाद वाली गुडाई के साथ मिट्टी चढ़ाना आवश्यक रहता है साथ ही यह ध्यान रखना चाहिए कि अरबी का घनकंद हमेशा ढका रहे। खरपतवार नियंत्रण हेतु एट्राजिन 1.5-2.0 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से रोपड़ पूर्व दिया जा सकता है। अरबी की फसल में प्रति पौध अधिकतम तीन पर्णवृन्तों को छोड़कर अन्य निकलने वाली पर्णवृन्तों की कटाई कर देनी चाहिए, जिससे कन्दों के आकार में वृद्धि निरन्तर होती रहे।
अरबी की फसल में रोग नियंत्रण (Disease control in arbi crop)
पत्ती धब्बा रोग (सर्कोस्पोरा पर्ण चित्ती): इस रोग से प्रभावित अरबी (Taro) पत्तियों पर छोटे वृत्ताकार धब्बे बन जाते हैं, जिनके किनारे पर गहरा बैगनी और मध्यम भाग राख के समान हो जाता है। अन्त में रोग के अधिक प्रकोप के कारण पत्तियाँ झुलस कर गिर जाती हैं। इस रोग के नियंत्रण हेतु रोग के प्रारम्भिक अवस्था में मैन्कोजेब का 0.3 प्रतिशत घोल बनाकर छिड़काव करें।
पत्ती अंगमारी रोग ( फाइटोफ्थोरा झुलसा): अरबी (Taro) फसल का यह मुख्य रोग है, जो फाइटोफ्थोरा कोलाकेसी नामक फफूँद के कारण होता है। इस रोग का प्रकोप पत्तियों, घनकंदों और पुष्पपुंजो सभी पर दिखाई देता है। पत्तियों पर छोटे-छोटे गोल या अण्डाकार भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं, जो धीरे-धीरे फैल कर डंठल को भी प्रभावित करते हैं, साथ ही प्रभावित पत्तियाँ सड़कर गिरने लगती है तथा कंद सिकुड़ कर छोटा हो जाता है। अरबी के कंद रोपड़ से पूर्व उपचारित करें। साथ ही रोग के प्रारम्भिक अवस्था में रिडोमिल एम जेड- 72 का 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बना कर छिड़काव करें।
कंद सड़न रोग: घुइयां (Taro) में यह रोग भण्डारण के समय अत्यधिक क्षति पहुँचाता है, प्रभावित कंद भूरे, काले, सूखे तथा कम भार वाले होते है और कंद के उपरी सतह पर सुखा फफूँद चूर्ण बिखरा रहता है। लगभग 60 दिनों में प्रभावित कंद पूर्ण रूप से सड़ जाता है। बीज हेतु उपयोग होने वाले अरबी के कंद को 0.5 प्रतिशत फार्मेलिन से उपचारित कर भण्डारित करना चाहिए।
अरबी की फसल में कीट नियंत्रण (Pest control in taro crop)
तम्बाकू की इल्ली: तम्बाकू की इल्ली अरबी (Taro) फसल की पत्तियों के हरे भाग को खा जाती है और पत्तियों में केवल सिराऐ ही दिखाई देती हैं तथा धीरे-धीरे पूरी पत्तियाँ सूख जाती हैं। इल्ली की कम संख्या होने पर पत्तियों सहित निकाल कर नष्ट कर देना चाहिए। अधिक प्रकोप होने पर प्रोफेनोफॉस 2 मिली प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।
माहूँ एवं थ्रिप्स: माहूँ एवं थ्रिप्स रस चूसने वाले कीट होते हैं। यह फसल की पत्तियों का रस चूस कर क्षति पहुँचाते हैं, जिससे पत्तियाँ पीली, छोटी एवं सिकुड़ जाती हैं। इसके नियंत्रण हेतु इमिडाक्लोरोपिड 0.5 मिली प्रति लीटर की दर से घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए। साथ ही नीम के तेल का 5 मिली प्रति लीटर पानी के साथ घोल बनाकर 7 दिवस के अन्तराल पर छिड़काव करते रहना चाहिए।
अरबी फसल के कंदों की खुदाई (Digging of tubers of arvi crop)
खरीफ ऋतु में अरबी (Taro) की फसल 160-175 दिनों की होती है तथा सिंचित अवस्था की फसल 175-225 दिन में तैयार हो जाती है। अरबी की खुदाई आमतौर पर, जब पत्तियाँ छोटी व पीली पड़कर सूखने लगे, तब किया जाना चाहिए। खुदाई उपरान्त अरबी के मातृ कंद एवं पुत्री धनकंदिकाओं को अलग कर देना चाहिए।
अरबी की फसल से उपज (Yield from taro crop)
अरबी (Taro) की उपज सामान्यत: किस्मों पर निर्भर करती है। वर्षा आधारित फसल का उत्पादन औसतन 20-25 टन प्रति हेक्टेयर तथा सिंचित फसल का उत्पादन औसतन 27.5-32.0 टन प्रति हेक्टेयर तक होता है। इसके अतिरिक्त जब लगातार अरबी के पत्तियों की कटाई की जाती है, तो उपज में वृद्धि हो जाती है तथा हरी पत्तियों की उपज औसतन 8-10 टन प्रति हेक्टेयर होती है।
अरबी फसल के कंदों भंडारण (Storage of taro crop tubers)
अरबी (Taro) के धनकंदों को धुलाई के पश्चात् श्रेणीकरण करना आवश्यक हो जाता है। कंदों को छाया में सुखाकर बांस की टोकरी या जूट के बोरो में भरकर विक्रय हेतु भेजना चाहिए। जायद फसल में उपचारित अरबी के कंदों का भण्डारण अधिक समय तक नहीं किया जा सकता है। अत: खुदाई उपरान्त एक माह के अन्दर कंदों का उपयोग कर लेना चाहिए।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
अरबी की बुवाई जायद में फरवरी और खरीफ में जून में करना सही रहता है। अरबी (Taro) की बुवाई लाइन में लगाकर करनी चाहिए। अरबी की एक लाइन की दूसरी लाइन से दूरी 45 सेंटीमीटर रखें और एक पौधे को दूसरे पौधे से दूरी 30 सेंटीमीटर रखें। बुवाई के 5-6 दिन बाद इसकी सिंचाई करें।
अरबी की खेती (Taro Cultivation) के लिए गर्म और नम जलवायु सबसे उपयुक्त होती है। उचित जल प्रबंधन वाले क्षेत्रों में ही इसकी खेती की जा सकती है। फसल की अच्छी पैदावार हेतु 25 से 30° सेन्टीग्रेड तापमान होना चाहिए तथा फसल अवधि में 1000 से 1200 मिमी वर्षा फसल की बढ़वार तथा अच्छी उपज के लिए लाभप्रद पाई गई है।
अरबी (Taro Cultivation) की सर्वोत्तम विकास तथा अच्छी उपज हेतु जल निकास की अच्छी व्यवस्था, प्रचुर जीवांश पदार्थ युक्त उपजाऊ तथा हल्की बलुई दोमट मिट्टी सबसे अधिक उपयुक्त है।
अरबी (Taro) की बुवाई साल में दो बार की जाती है। इसकी बुवाई बारिश और गर्मियों के दोनों मौसम में कि जाती है। गर्मी के मौसम में इसकी बुवाई फरवरी से मार्च एवं बारिश के मौसम में जून से जुलाई के महीने में की जाती है।
अरबी (Taro) की किस्मों में पंचमुखी, सफेद गौरिया, सहस्रमुखी, सी – 9, सलेक्शन प्रमुख हैं। इसके अलावा इंदिरा अरबी – 1 और नरेंद्र अरबी – 1 भी अच्छे उत्पादन वाली किस्में है।
अरबी में बुआई के पूर्व 22 किलो नत्रजन, 25 किलो फास्फोरस तथा 25 किलो पोटाश प्रति एकड़ मान से कूड़ों में दें। नत्रजन तथा पोटाश की 10-10 किलो मात्रा दो बार में देना चाहिए। पहली मात्रा 7 से 10 स्प्राउट निकलने पर तथा दूसरी मात्रा उसके एक माह बाद देनी चाहिए। घुइयां (Taro) की खड़ी फसल में नत्रजन व पोटाश देने के बाद मिट्टी अवश्य चढ़ायें।
अरबी (Taro) की एक लाइन की दूसरी लाइन से दूरी 45 सेंटीमीटर रखें और एक पौधे को दूसरे पौधे से दूरी 30 सेंटीमीटर रखें। बुवाई के 5-6 दिन बाद इसकी सिंचाई करें, इसके बाद फिर 9-10 दिनों के बाद बीच-बीच में सिंचाई करते रहें। बुवाई के बाद 4-6 महीनों में ही फसल तैयार हो जाती है।
अरबी की फसल (Taro Crop) किस्म के अनुसार 130 से 200 दिन में पककर तैयार हो जाती है। कंदों को संपूर्ण पकने के बाद ही बाजार में भेजने और संग्रहित करने के लिए खोदना चाहिए।
अरबी की बुवाई के बाद 5-6 महीनों में ही फसल तैयार हो जाती है। अरबी की खेती (Taro Cultivation) एक हेक्टेयर में करीब 250 से 320 क्विंटल तक पैदावार देती है। जिससे किसानों को खूब मुनाफा होता है।
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