Turmeric Farming in Hindi: हल्दी का वैज्ञानिक नाम कुरकुमा लोंगा है, इसे संस्कृत में हरिद्रा कहते हैं तथा अंग्रेजी में यह टरमेरिक के नाम से जानी जाती है। हल्दी सभी की चहेती मसाला फसल है, जिसे मनुष्य के जीवन में जन्म से मृत्यु तक अनेक अवसरों पर प्रयुक्त किया जाता है। इन परम्पराओं की उपयोगिता जो भी हो, हमारे पूर्वजों ने हल्दी को शुभ तथा मंगलदायक वस्तु माना है।
प्राचीन समय से ही भारतवासी हल्दी का इस्तेमाल दाल, सब्जी, चटनी, आचार तथा अन्य भोज्य सामग्रियों को लुभावना तथा सुनहरा रंग प्रदान करने के साथ-साथ इनमें एक विशेष प्रकार की सुगंध भरने के लिए करते रहे हैं। वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध कर दिया है कि हल्दी में कैंसररोधी गुण विद्यमान है। संक्षेप में यह भी कहा जा सकता है कि हल्दी केवल एक मसाला मात्र ही नहीं बल्कि यह एक बहुमूल्य जड़ी-बूटी है, जो मनुष्य को स्वस्थ शरीर, खूबसूरती तथा लम्बी उम्र प्रदान करती है।
हल्दी (Turmeric) की अच्छी फसल के लिए उत्तम किस्म का चुनाव, बीजाई का समय, बोने का तरीका, बीज की मात्रा, बीजोपचार की विधि, लगाने का अंतर, उर्वरक देने की विधि, समय एवं मात्रा के साथ – साथ फसल की देख-रेख एवं फसल सुरक्षा हेतु मुख्य बिन्दुओं की जानकारी उत्पादकों को होना अत्यन्त आवश्यक है, जो निम्नानुसार है।
हल्दी की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for cultivation of turmeric)
हल्दी एक मसाला फसल है, जिस क्षेत्र में 1200 से 1400 मिमी वर्षा, 100 से 120 वर्षा दिनों में प्राप्त होती है, वहां पर इसकी अति उत्तम खेती होती है। समुद्र सतह से 1200 मीटर ऊंचाई तक के क्षेत्रों में यह पैदा की जाती है। परंतु हल्दी की खेती के लिए 450 से 900 मीटर ऊंचाई वाले क्षेत्र उत्तम होते हैं।
हल्दी एक उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र की फसल हैं। हल्दी के लिए 30 से 35 डिग्री सेंटीग्रेट अंकुरण के समय, 25 से 30 डिग्री सेंटीग्रेट कल्ले निकलने, 20 से 30 डिग्री सेंटीग्रेट प्रकंद बनने और 18 से 20 डिग्री सेंटीग्रेट हल्दी (Turmeric) की मोटाई के लिए जलवायु उत्तम है।
हल्दी की खेती के लिए भूमि का चयन (Selection of land for turmeric cultivation)
हल्दी की फसल को भिन्न-भिन्न प्रकार की मिट्टियों में उगाया जाता है। इसकी खेती के लिए रेतीली अथवा बलुई दोमट और मटियार दोमट मिट्टी सबसे अधिक उपयुक्त रहती है, यह उपजाऊ और अच्छे जल निकास वाली होनी चाहिए। हल्दी की खेती हल्की मिट्टी में अच्छी होती है, चिकनी व भारी मिट्टी में कन्दों का विकास अच्छा नहीं होता। हल्दी की खेती (Turmeric Cultivation) के लिए पीएच 5 से 7.5 होना चाहिए।
हल्दी की खेती के लिए खेत की तैयारी (Preparation of field for turmeric cultivation)
हल्दी की फसल (Turmeric Crop) के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करने के उपरान्त 2 से 3 जुताइयाँ कल्टी वेटर या देशी हल से करके पाटा लगाकर मिट्टी भुरभुरी कर लेना चाहिए। जीवांश कार्बन का स्तर बनाये रखने के लिए अन्तिम जुताई के समय 30 से 35 टन भलीभाँति सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में मिला देना चाहिए। जीवांश कार्बन युक्त और भुरभुरी मिट्टी में गाँठों की संख्या एवं आकार दोनों में वृद्धि होती है।
हल्दी की खेती के लिए उन्नत किस्में (Improved Varieties for Turmeric Cultivation)
गांठों के रंग और आकार के अनुसार हल्दी की कई किस्में पाई जाती है। मालाबार की हल्दी औषधीय महत्व की होती है तथा यह जुकाम और कफ के उपचार के लिए उपयुक्त है। पूना और बंगलौर की हल्दी रंग के लिए अच्छी है। जंगली हल्दी अपनी सुगंधित गांठों के कारण भिन्न है तथा इसे ‘कुरकुमा एरोमेटिका’ (सुगंधित हल्दी) कहते हैं। हिमाचल प्रदेश में आमतौर पर स्थानीय किस्में ही प्रचलन में है। हल्दी (Turmeric) की कुछ उत्कृष्ट किस्मों का विवरण निम्नानुसार है, जैसे-
पालम पिताम्बर: यह किस्म हरे पत्तों के साथ मध्यम ऊंचाई वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है। यह अधिक आय देती है और औसतन वार्षिक उपज 332 क्विंटल प्रति हैक्टेयर (25-26 क्विंटल प्रति बीघा) तक प्राप्त हो सकती है। इस किस्म में स्थानीय किस्मों से अधिक उपज देने की क्षमता है और इसकी गठियां उंगलियों की तरह लम्बी व रंग गहरा पीला होता है।
पालम लालिमा: इसकी गठियों का रंग नारंगी होती है और स्थानीय किस्मों की अपेक्षा इसकी औसत वार्षिक उपज अधिक होती है। इस किस्म की औसतन वार्षिक उपज 250-300 क्विंटल प्रति हैक्टेयर (20-24 किवंटल प्रति बीघा) तक ली जा सकती है।
कोयम्बटूर: यह बारानी क्षेत्रों में उगाने के लिए हल्दी (Turmeric) की उपयुक्त किस्म है। इसके कंद बड़े, चमकीले और नारंगी रंग के होते हैं। यह 285 दिन में खुदाई के लिए तैयार हो जाती है।
कृष्णा: यह लम्बे प्रकंदों तथा अधिक उपज देने वाली किस्म है। यह कंद गलन के प्रति रोगरोधी है और 255 दिन में पककर तैयार हो जाती है।
बीएसआर – 1: जिन क्षेत्रों में पानी खड़ा रहता हो वहाँ के लिए अधिक उपज देने वाली उपयुक्त किस्म है। इसके कंद लम्बे तथा चमकीले पीले रंग के होते हैं। यह किस्म 285 दिनों में तैयार हो जाती है।
सवर्णा: यह अधिक उपज देने वाली, गहरे नारंगी रंग कंद युक्त अधिक उपज देने वाली हल्दी (Turmeric) की किस्म है।
सुगुना: छोटे कंद और 190 दिनों में तैयार होने वाली, यह हल्दी (Turmeric) की किस्म कंद गलन रोग के लिए प्रतिरोधी है।
सुदर्शन: इसके कन्द घने, छोटे आकार के तथा देखने में काफी खूबसूरत होते हैं। यह किस्म 190 दिन में खुदाई के लिए तैयार हो जाती है।
अन्य किस्में: नरेंद्र हल्दी – 1, नरेंद्र हल्दी – 2, नरेंद्र हल्दी – 3, नरेंद्र हल्दी – 98, नरेंद्र सरयू, अमला पुरम, सी – 73, दुग्गिरेला सीएलएल – 325, आर्मुर सीएलएल – 324, पीटीसी – 8, कस्तूरी, रोमा, सूरमा, सोनाली इत्यादि हल्दी (Turmeric) किस्में भी प्रचलित है।
हल्दी की खेती के लिए बुवाई का समय (Sowing time for turmeric cultivation)
हल्दी की फसल (Turmeric Crop) की बीजाई वैसे तो अप्रैल से जुलाई तक की जा सकती है, परन्तु जहाँ पर सिंचाई के साधन हों वहाँ बीजाई अप्रैल-मई में ही कर देनी चाहिए। सामान्यत: जलवायु, किस्म और बीजू सामग्री के अनुसार हल्दी की बुआई 15 अप्रैल से 15 जुलाई तक की जा सकती है। अगेती किस्मों की बुआई 15 अप्रैल से 15 मई तक तथा मध्यम किस्मों की बुआई 15 अप्रैल से 30 जून तक और पछेती किस्मों की बुआई 15 जून से 15 जुलाई तक अवश्य कर देनी चाहिए।
हल्दी की खेती के लिए बीज की मात्रा (Quantity of seeds for turmeric cultivation)
हल्दी की खेती (Turmeric Cultivation) के लिए प्रति ईकाई क्षेत्र आवश्यक बीज की मात्रा कन्दों के आकार पर निर्भर करती है। मुख्य रूप से स्वस्थ और रोगमुक्त मातृ कन्द एवं प्राथमिक प्रकन्दों को ही बीज के रूप में प्रयोग करना चाहिए। बुवाई के समय प्रत्येक प्रकन्द में 2 से 3 सुविकसित आंख अवश्य होनी चाहिए। सामान्यत: कन्द के आकार और वजन के अनुसार 17 से 23 क्विंटल कंद प्रति हेक्टेयर की दर से आवश्यकता होती है।
हल्दी की बुआई के लिए बीज उपचार (Seed treatment for sowing of turmeric)
बुआई से पहले हल्दी (Turmeric) बीज कंदों का उपचार करना आवश्यक है। इसके लिए बुवाई के पूर्व कंदों को फंफूदीनाशक इंडोफिल एम- 45 की 2.5 ग्राम अथवा कारबेन्डाजिम 1 ग्राम प्रति लीटर की दर से पानी में घोलकर उपचारित करते है। घोल में कन्दों को 60 मिनट डुबोकर रखने के बाद छाया में सुखाकर 24 घण्टे के बाद बुआई करते है।
हल्दी की खेती के लिए बुवाई की विधि (Sowing method for haldi cultivation)
हल्दी को तीन प्रकार से लगाया जा सकता है। समतल भूमि में, मेढ़ों पर और ऊँची उठी हुई क्यारियों में। बलुई दोमट मिट्टी में हल्दी समतल भूमि में लगा सकते हैं, लेकिन मध्यम और भारी भूमि में बीजाई सदैव मेढ़ों पर एवं उठी हुई क्यारियों में ही करनी चाहिए। बीजाई सदैव पंक्तियों में करें, पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 से 40 सैंटीमीटर एवं पंक्तियों में कंद से कंद की दूरी 20 से 25 सैंटीमीटर रखनी चाहिए।
बीजाई के लिए सदैव स्वस्थ और रोग रहित कंद छांटना चाहिए। हल्दी (Turmeric) कंद लगाते समय विशेष ध्यान रखने की बात है कि कंद की आँखें ऊपर की तरफ हों तथा कंद को 4-5 सैंटीमीटर की गहराई पर लगाकर मिट्टी से ढक देना चाहिए।
हल्दी की फसल में खाद और उर्वरक (Manure and Fertilizer in Turmeric Crop)
अन्य फसलों की तरह हल्दी की अधिक उपज पाने के लिए उर्वरक समुचित मात्रा में डालना आवश्यक है। हल्दी की फसल अन्य फसलों की अपेक्षा भूमि से अधिक पोषक तत्वो को ग्रहण करती है। अच्छी उपज में जीवांश कार्बन के महत्व को देखते हुए 30 से 35 टन प्रति हेक्टेयर गोबर या कम्पोस्ट की सड़ी हुई खाद अन्तिम जुताई के समय मिला देनी चाहिए। रासायनिक खाद के रूप में प्रति हेक्टेयर 120 से 150 किलोग्राम नत्रजन 80 किलोग्राम फास्फोरस तथा 80 किलोग्राम पोटाश की आवश्यकता होती है।
नत्रजन की आधी मात्रा और फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा पंक्ति के दोनों तरफ बीज (कंद) से 5 सेंटीमीटर दूर तथा 10 सेंटीमीटर गहराई में डालनी चाहिए। नत्रजन की शेष आधी मात्रा दो बार भाग में हल्दी की (Turmeric) खड़ी फसल में प्रथम बार बुवाई से 35 से 45 दिन और द्वितीय बार 75 से 90 दिन पर पंक्ति के बीच बुरकाव के रूप में डालनी चाहिए। नाइट्रोजन उर्वरक के बुरकाव के समय ध्यान रखें कि खेत में पर्याप्त नमी होनी चाहिए।
हल्दी में खरपतवार नियंत्रण व मल्चिंग (Weed control and mulching in turmeric)
खरपतवारों को नष्ट करने के लिए कम से कम दो-तीन निराई-गुड़ाई अवश्य करें। अगर बीजाई कतारों में या मेंढ़ों पर की गई है तो एक बार गुड़ाई देशी हल से की जा सकती है। रासायनिक विधि से नियंत्रिण करने के लिए फ्लुक्लोरालिन 1.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के छिड़काव से एक वर्षीय घास व चौड़ी पत्तियों वाले खरपतवारों का सफलतापूर्वक नियन्त्रण किया जा सकता है।
हल्दी (Turmeric) कंदों बीजाई के तुरन्त बाद हरे पत्तों या घास की मल्चिंग कर दें ताकि मिटटी पर पत्तियों की 5 से 8 सैंटीमीटर मोटी तह बिछ जाए। इससे कन्दों का जमाव अच्छा होता है और मिट्टी में नमी रोकने की क्षमता बढ़ती है। यदि सम्भव हो तो बीजाई के 50 दिन बाद एवं 100 दिन बाद पुनः मल्चिंग करें।
हल्दी की फसल में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management in haldi Crop)
हल्दी की फसल लम्बे अंतराल (लगभग 9-10 माह ) में तैयार होने वाली फसल है। अत: इसे समयानुसार समुचित सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। हल्दी की अगेती फसल लगाने हेतु बीजाई से पहले खेत की सिंचाई कर बत्तर आते ही बीजाई करना उचित रहता है, क्योंकि हल्दी की बीजाई अप्रैल-मई माह में प्रारम्भ कर दी जाती है।
अत: फसल में वर्षा के पूर्व आवश्यकतानुसार 6-7 दिनों के अन्तराल से सिंचाई करें। शीत ऋतु में सिंचाई 10-12 दिन के अन्तराल पर करें। वर्षा ऋतु की समाप्ति के बाद 15-20 दिन के अन्तर से हल्दी फसल (Turmeric Crop) की सिंचाई करनी चाहिए।
हल्दी की फसल में रोग नियंत्रण (Disease control in turmeric crop)
पत्ती चित्ती: इस बीमारी से ग्रसित पत्तियों के भीतरी व बाहरी दोनों ही पटलों पर ललाई युक्त भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं तथा हल्दी (Turmeric) की पत्तियाँ शीघ्र पीली पड़ जाती हैं।
नियंत्रण: यह रोग बोर्डो मिश्रण ओरियोफीन्जन (2.5 मिलीलीटर) जीनेब (0.1 प्रतिशत) या डाइथेन- जेड- 78 (0.2 से 0.3 प्रतिशत) के घोल के छिड़काव से नियन्त्रित किया जा सकता है।
पत्ती धब्बे: इस बीमारी से ग्रसित पौधों की पत्तियों व कभी-कभी पर्ण पर भी धब्बे बन जाते हैं। इस रोग की उग्र अवस्था में सभी पत्तियाँ सूख जाती हैं और पूरी हल्दी फसल (Turmeric Crop) जली हुई सी दिखाई देने लगती हैं।
नियंत्रण: इस बीमारी के लक्षण दिखाई देने से पहले अगस्त माह में 1.0 प्रतिशत बोर्डो मिश्रण या 2 प्रतिशत केप्टान या डाइथेन जेड-78 (0.2 से 0.3 प्रतिशत) के छिड़काव से नियन्त्रण किया जा सकता है।
प्रकंद गलन: यह रोग मिट्टी एवं प्रकंद जनित हैं। पत्तियों का सूखना पहले किनारों पर शुरू होता है, जो बाद में पूरी पत्ती को घेर लेता है, रोग बढ़कर प्रकंदो पर आक्रमण करता है, जिससे उनका रंग पहले चमकीला हल्के संतरे से बदलकर भूरा हो जाता है, तत्पश्चात् प्रकंद नरम होकर गलना शुरू हो जाता है।
नियंत्रण: इस रोग के लिए नियन्त्रण स्वस्थ प्रकंद और उपयुक्त कवकनाशी से उपचारित करते हैं और डाइथेन एम- 45 (0.2 प्रतिशत) का घोल बनाकर मिट्टी में डालते हैं।
हल्दी की फसल में कीट नियंत्रण (Pest control in turmeric crop)
बालदार सूड़ी: यह बहुभक्षीय कीट है, जो कि प्रारम्भिक अवस्था में समूह के रूप में पत्तियों को खाकर नुकसान पहुंचाते है। पूर्ण विकसित सुंडी पत्तियों को खाकर लालीनुमा आकृति शेष छोड़ देती है।
नियंत्रण: प्रभावित पत्तियां तोड़कर नष्ट कर देते है और रासायनिक विधि से नियंत्रित करने के लिए एन्डोसल्फान 35 ईसी की 1.5 लीटर या मैलाथियान 50 ईसी की 2 लीटर मात्रा को 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करते है।
उत्तक बेधक: उत्तक बेधक हल्दी फसल (Turmeric Crop) के तने को खाकर मृत केन्द्र बना देता है। इस तने के मरने पर जो दूसरे तने विकसित होते है, उनको भी यह कीट खा लेता है।
नियंत्रण: जिन पौधों या तनों पर कीट का आक्रमण नजर आता है। उसको नष्ट कर देना चाहिए। प्रभावी नियंत्रण के लिए विशेषज्ञों की सलाह लेवें।
हल्दी की फसल के कंदों की खुदाई (Digging out the tubers of haldi crop)
अगेती फसल सात माह मध्यम आठ माह पछेती 9 से 10 माह में पक कर तैयार हो जाती है। फसल के पकने पर पत्तियाँ पीली पड़ जाती हैं तथा सूख जाती हैं। इस समय धनकंद पूर्ण विकसित हो जाते हैं। धनकंद की खुदाई से 4 से 5 दिन पहले हल्की सिंचाई कर देते हैं, जिससे प्रकंद पुंजों को आसानी से खोद कर निकाला जा सके प्रकंद पुंजों को भूमि से निकालने से पूर्व ऊपर की पत्तियाँ काटकर अलग कर देते हैं।
तत्पश्चात् प्रकंद भूमि से कुदाली या फावड़ों की सहायता से आराम से निकाल लेते हैं, फिर हल्दी (Turmeric) के प्रकंदों को अच्छी तरह से पानी से धो लेते हैं। तत्पश्चात् प्राथमिक (मातृ प्रकंद) व द्वितीयक (फिन्गर्स) प्रकंद अलग कर लेते हैं और विधिपूर्वक उबलने के उपरांत हल्दी बनाकर विपणन कर देना चाहिए।
हल्दी की फसल से पैदावार (Yield from Turmeric Crop)
उपरोक्त वैज्ञानिक विधि से हल्दी की खेती (Turmeric Cultivation) करने पर सिंचित क्षेत्रों में शुद्ध फसल से 300 से 550 क्विंटल और असिंचित क्षेत्रों में 100 से 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर कच्ची हल्दी प्राप्त हो जाती है। सुखाने के बाद कच्ची हल्दी की यह उपज 15 से 25 प्रतिशत तक होती है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
हल्दी की खेती उसके छोटे-छोटे अंकुरित प्रकंद बीजों से की जाती है। हल्दी की खेती लाइनों में की जाती है और थोड़ी बड़ी होने पर उस पर दोनों तरफ से थोड़ी-थोड़ी मिट्टी चढ़ा दी जाती है। इससे फायदा ये होता है कि हल्दी को फैलने और अच्छे से बैठने के लिए ढेर सारी मिट्टी और जगह मिल जाती है। हल्दी की फसल (Turmeric Crop) करीब 8 महीने में तैयार हो जाती है।
हल्दी (Turmeric) को समुद्र तल से लेकर समुद्र तल से 1500 मीटर ऊपर तक की विविध उष्णकटिबंधीय परिस्थितियों में, 20-35 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर, 1500 मिमी या उससे अधिक वार्षिक वर्षा के साथ, वर्षा आधारित या सिंचित परिस्थितियों में उगाया जा सकता है।
हालाँकि हल्दी (Turmeric) को विभिन्न प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है, लेकिन यह अच्छी जल निकासी वाली लाल या चिकनी दोमट मिट्टी में सबसे अच्छी तरह पनपती है, जिसका पीएच मान 4.5-7.5 हो और जिसमें अच्छी जैविक स्थिति हो, और साथ ही अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी आवश्यक है।
मानसून की पहली बर्षा होते ही हल्दी की खेती (Turmeric Cultivation) के लिए भूमि को तैयार किया जाता है, बर्षा के अनुसार अप्रैल से लेकर जुलाई के प्रथम सप्ताह तक बुवाई की जा सकती है। हालाँकि हल्दी की बुवाई का उचित समय दो मौसम फरवरी से मई और अगस्त से अक्टूबर है।
मेघालय के सुदूर क्षेत्रों में उगाई जाने वाली लाकाडोंग किस्म को दुनिया की सबसे बेहतरीन हल्दी (Turmeric) के रूप में जाना जाता है, जिसमें सबसे ज़्यादा कर्क्यूमिन होता है।
रोपण के 80 दिन बाद 24 किलोग्राम नाइट्रोजन और 16 किलोग्राम पोटाश प्रति एकड़ डालें। 20 किलोग्राम नाइट्रोजन और 14 किलोग्राम पोटाश प्रति एकड़ की अंतिम खुराक रोपण के 120 दिन बाद डाली जानी चाहिए। उर्वरक का प्रयोग हल्दी (Turmeric) रोपण के समय से 120 दिनों के भीतर पूरा किया जाना चाहिए।
हल्दी (Turmeric) के पौधों को प्रारंभिक चरण में अधिक सिंचाई की जरूरत नहीं होती है। गर्मियों में रोपण के समय, मानसून के आगमन से पहले पौधों को पानी देना आवश्यक होता है। इस समय अवधि में लगभग चार से पांच बार सिंचाई करनी चाहिए। सिंचाई के बाद यह सुनिश्चित करें कि पानी खेत में न ठहरे, इसके लिए उचित जल निकासी प्रणाली का होना जरूरी है।
हल्दी की खेती (Turmeric Cultivation) के साथ प्याज, धनिया और मेथी को अंतर-फसल के रूप में मेड़ों के किनारों पर 10 सेमी की दूरी पर लगाया जा सकता है।
हल्दी की फसल कितने दिन में तैयार होती है?
अच्छी तरह से प्रबंधित हल्दी की फसल (Turmeric Crop) किस्म और बुवाई के समय के आधार पर सात से नौ महीने में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। फसल की कटाई आम तौर पर जनवरी से मार्च के दौरान की जाती है। पकने पर, पत्तियाँ सूख जाती हैं और हल्के भूरे से पीले रंग की हो जाती हैं।
हल्दी (Turmeric) के लिए गर्म और नम जलवायु, दोमट या जलोढ़, ढीली, भुरभुरी और उपजाऊ मिट्टी की आवश्यकता होती है। हल्दी को अधिक पैदावार के लिए गहरी जुताई वाली मिट्टी और भारी खाद की आवश्यकता होती है। भूमि की स्थलाकृति के आधार पर सुविधाजनक लंबाई और चौड़ाई के बेड तैयार किए जाते हैं। रोपण या तो उभरे हुए बेड या मेड़ों पर किया जाता है।
हल्दी की फसल 7 से 8 महीने में तैयार हो जाती है। एक बीघा में कम से कम 70 से 80 क्विंटल हल्दी (Turmeric) की पैदावार किसानों को मिल जाती है।
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