Turnip Cultivation: शलजम भारत के अधिकतर हिस्सों की फसल है। यह एक जड़ का फल या सब्जी है, जिसका उपयोग सलाद या सब्जी के रूप में किया जाता है। शलगम विटामिन और खनिज का स्रोत है, इसका वनस्पति भाग पशुओं के लिए पौष्टिक आहर है। यह शीत ऋतू की फसल है, हालाँकि पर्वतीय क्षेत्रों में इससे ग्रीष्म ऋतू में भी उगाया जाता है।
किसान भाई आधुनिक तकनीकी से इसकी खेती कर के अच्छा मुनाफा प्राप्त कर सकते है। इस लेख में हम शलजम की वैज्ञानिक खेती से सम्बंधित कुछ सुझाव से आपको अवगत कराना चाहते है। जिनको उपयोग में लाकर आप शलगम की फसल (Turnip Crop) से अच्छी पैदावार प्राप्त कर सकते है।
शलजम की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for turnip cultivation)
शलजम की खेती (Turnip Cultivation) के लिए ठंडी जलवायु की आवश्यकता होती है। ठंडी जलवायु में इसकी उपज अच्छी मिलती है, इसके लिए तापमान 20 से 25 डिग्री सेल्शियस तक उपयुक्त रहता है। अधिक गर्म जलवायु में इसकी जड़ें पूर्णतया विकसित नही हो पाती है।
शलजम की खेती के लिए भूमि का चयन (Selection of land for turnip cultivation)
शलजम की खेती (Turnip Cultivation) विभिन्न प्रकार की मृदाओं में की जा सकती है। लेकिन अच्छी उपज के लिए भुरभुरी और जीवांशयुक्त उपजाऊ दोमट और हल्की रेतीली मिट्टी सबसे उपयुक्त रहती है। इसकी जड़े जमीन के अंदर होती है, इसलिए उस खेत का नर्म होना बेहद जरूरी है।
शलजम की खेती के लिए खेत की तैयारी (Preparation of field for turnip cultivation)
शलजम की खेती (Turnip Cultivation) के लिए खेत को भुरभुरा बना लेना चाहिए। इसके लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए। इसके बाद 3 से 4 जुताई देशी हल या कल्टीवेटर से करनी चाहिए और पाटा लगा देना चाहिए। इसकी खेती के लिए 250 से 300 क्विंटल कम्पोस्ट या गोबर की गली सड़ी खाद पहली या दूसरी जुताई में डालनी चाहिए, ताकि वह मिट्टी में अच्छे से मिल जाए।
इसके बाद 100 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फास्फोरस और 50 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर देनी चाहिए| आखरी जुताई में फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा नाइट्रोजन की आधी मात्रा देनी चाहिए। नाइट्रोजन की आधी मात्रा दो बार में शलजम की खड़ी फसल में देनी चाहिए। पहली आधी जब पौधों के 4 से 5 पत्ती निकल आए तब और बची हुई मात्रा फलों के विकास के समय देनी चाहिए।
शलजम की खेती के लिए उन्नत किस्में (Advanced varieties for turnip cultivation)
शलजम की एशियन या उष्णकटिबंधीय किस्में: पूसा स्वेती, पूसा कंचन, व्हाईट 4, रेड 4, शलजम एल- 1 और पंजाब सफेद इत्यादि प्रचलित है।
यूरोपियन शीतोष्ण किस्में: गोल्डन, पर्पिल टाइप व्हाईट ग्लोब, स्नोबल, पूसा चन्द्रमा और पूसा स्वर्णिम इत्यादि प्रचलित है।
शलजम के लिए बीज की मात्रा और बुवाई (Seed quantity and sowing for turnip)
बीज और उपचार: शलजम की खेती के लिए 3 से 4 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त रहता है। इसके उपचार के लिए 3 ग्राम बाविस्टिन या कैप्टान से प्रति किलोग्राम बीज को उपचारित करना चाहिए।
बुवाई का समय: शलजम (Turnip) की बुवाई का समय सितंबर से अक्तूबर और पहाड़ी क्षेत्रों के लिए जुलाई से अक्तूबर उपयुक्त रहता है।
बुवाई की विधि: शलजम की बुवाई के लिए लाइन से लाइन की दुरी 30 से 40 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दुरी 10 से 15 सेंटीमीटर और गहराई 2 से 3 सेंटीमीटर रखनी चाहिए।
शलजम की सिंचाई और खरपतवार नियंत्रण (Irrigation and weed control of turnip)
सिंचाई प्रबंधन: शलजम (Turnip) की बुवाई के 8 से 10 दिन बाद हल्की सिंचाई करनी चाहिए। बाद में आवश्यकतानुसार 10 से 15 दिन के बाद सिंचाई करते रहना चाहिए।
खरपतवार नियंत्रण: इस फसल में 2 से 3 निराई गुड़ाई की आवश्यकता होती है। यदि खेत में ज्यादा खरपतवार होती है, तो बुवाई के बाद 2 दिन तक पेंडीमेथलिन 3 लीटर को 800 से 900 लिटर पानी मे मिलाकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना चाहिए।
शलजम की फसल में कीट और रोग नियंत्रण (Pest and disease control in turnipcrop)
रोग नियंत्रण: इस फसल में पिला रोग, अंगमारी और फफूंदी जैसे रोग लगते है। इनकी रोकथाम के लिए रोगरोधी किस्मों का चुनाव करना चाहिए और बीज को उपचारित कर कर बोना चाहिए। रोगी पौधों को उखाड़ कर मिट्टी में दबा देना चाहिए। इसके साथ साथ डाइथेन एम – 45 या जेड – 78 के 0.2 प्रतिशत घोल का छिड़काव करना चाहिए|
कीट नियंत्रण: शलजम (Turnip) की फसल में माहू, मुंगी, बालदार कीड़ा, सुंडी और मक्खी जैसे किट लगते है। इनकी रोकथाम के लिए मैलाथियान 1 लीटर का 700 से 800 लिटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए। इसके साथ साथ एंडोसल्फान 1.5 लीटर इतने ही पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना चाहिए।
शलजम फसल की कटाई और पैदावार (Harvesting and Yield of TurnipCrop)
खुदाई: शलगम की अगेती किस्में 60 से 90 दिनों और पछेती 90 से 120 दिनों में तैयार हो जाती है। शलजम की खुदाई जब इसकी जड़े खाने योग्य हो जाए तभी से शुरू कर देनी चाहिए।
उपज: उपरोक्त विधि से शलजम की खेती (Turnip Cultivation) करने के पश्चात इसकी पैदावार 300 से 375 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होनी चाहिए।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
शलजम (Turnip) को सीधे उस स्थान पर बोना आसान है, जहां उन्हें उगाना है, तैयार जमीन में यदि मिट्टी सूखी हो तो 1 सेमी (½ इंच) गहरा उथला ड्रिल करें और आधार पर पानी डालें बीजों को ड्रिल के साथ-साथ पतला-पतला फैला दें, फिर मिट्टी से ढक दें, धीरे से दबाएँ और हल्का पानी दें।
शलजम (Turnip) एक ठंडे मौसम की जड़ वाली सब्जी है जो 50-65 डिग्री फ़ारेनहाइट के बीच सबसे अच्छी तरह से उगती है। उच्च तापमान में मजबूत स्वाद वाली जड़ें पैदा हो सकती हैं। पत्ते भी खाने योग्य होते हैं और उन्हें “शलजम का साग” कहा जाता है।
शलजम की फसल (Turnip Crop) को धूप वाली जगह पसंद होती है और ठंडी परिस्थितियों में, उपजाऊ, नमी बनाए रखने वाली मिट्टी में सबसे अच्छी तरह से उगती है। शलजम पीएच स्तर 6 से 7.5 के साथ थोड़ा अम्लीय से थोड़ा क्षारीय मिट्टी में अच्छा पनपता है।
शुरुआती शलजम – मार्च से जून तक बोएं, गर्मियों में कटाई के लिए। कुछ शुरुआती किस्में, जैसे ‘अटलांटिक’ और ‘पर्पल टॉप मिलान’, फरवरी में क्लोच के नीचे भी बोई जा सकती हैं। मुख्य फसल शलजम – शरद ऋतु में कटाई के लिए जुलाई से मध्य अगस्त तक बोएं।
पूसा स्वेती, पूसा कंचन, व्हाईट 4, रेड 4, शलजम एल- 1 और पंजाब सफेद आदि और यूरोपियन शीतोष्ण किस्में- गोल्डन, पर्पिल टाइप व्हाईट ग्लोब, स्नोबल, पूसा चन्द्रमा, पूसा स्वर्णिम, आदि शलजम (Turnip) की प्रमुख किस्में है।
आमतौर पर शलगम (Turnip) की अगेती किस्में फल के लिए 45-60 दिनों में तैयार हो जाती है। कटाई में देरी होने के कारण इसकी पुटाई में मुश्किल और फल रेशेदार हो जाती हैं।
बुवाई के तुरंत बाद, पहली सिंचाई करें, इससे अच्छे अंकुरण में मदद मिलेगी। मिट्टी के प्रकार और जलवायु के आधार पर, गर्मियों में 6-7 दिनों के अंतराल पर और सर्दियों के महीने में 10-12 दिनों के अंतराल पर शेष सिंचाई लागू करें। ऑवरल शलजम (Turnip) के लिए 5-6 सिंचाई की आवश्यकता होती है।
शलजम (Turnip) को उपजाऊ, अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी पसंद होती है, इसलिए बुवाई से पहले शरद ऋतु में, पर्याप्त मात्रा में अच्छी तरह सड़ी हुई खाद या बगीचे की खाद डालें। क्षेत्र को अच्छी तरह से निराई करें और बारीक भुरभुरा बना कर रखें।
शलजम की फसल (Turnip Crop) से औसतन 200-375 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त की जा सकती है। कटाई के बाद, हरे रंग के टॉप के साथ जड़ों को पानी से धोया जाता है।
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