Vegetable Pea Farming in Hindi: सब्जी मटर एक महत्वपूर्ण शीत-ऋतु, ठंढ-प्रतिरोधी, पौष्टिक फलीदार सब्जी है, जिसकी दुनिया भर में इसकी हरी फलियों के लिए व्यापक रूप से खेती की जाती है। शीत-ऋतु की फसल के रूप में, इसे समशीतोष्ण क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर उगाया जाता है। इसे गार्डन मटर और फील्ड मटर भी कहा जाता है। यह प्रोटीन (25%), अमीनो एसिड, शर्करा (12%), कार्बोहाइड्रेट, विटामिन ए और सी, कैल्शियम और फास्फोरस का एक समृद्ध स्रोत है।
इसके अलावा इसमें थोड़ी मात्रा में आयरन भी होता है। मटर प्रोटीन से भरपूर होने के कारण सब्जी बनाने के लिए बहुत उपयोगी है। इसे सूप, डिब्बाबंद फ्रोजन या डिहाइड्रेट के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। सब्जी मटर (Vegetable Pea) का भूसा पशुओं के लिए एक पौष्टिक चारा है। दुनिया में चीन के बाद भारत मटर का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।
भारत में मटर उगाने वाले प्रमुख राज्य बिहार, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उड़ीसा और कर्नाटक हैं। सब्जी मटर में मिठास की मात्रा अधिक होने से इसके ताजे बीज को सब्जी, छोला, चाट, अचार तथा विभिन्न प्रकार के सलाद में प्रयोग किया जाता है। इस लेख में सब्जी मटर (Vegetable Pea) की वैज्ञानिक तकनीक से खेती कैसे करें का उल्लेख किया गया है।
सब्जी मटर के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for vegetable peas)
वह क्षेत्र जहाँ चार महीने तक ठंड का मौसम हो तथा साथ ही साथ धीमी गति से मौसम गर्मी की ओर अग्रसर होता हो, मटर उत्पादन के लिए अच्छा माना जाता है। बीज जमाव के लिए आदर्श तापमान 13-18 डिग्री सेंटीग्रेड होता है। किन्तु इसका अधिकतम 22 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान तक भी बीज जमाव हो सकता है। यदि बीज का जमाव कम तापमान पर होता है, तो पौधा शाखायुक्त और धीमी बढ़वार वाला होता है।
लेकिन अधिक तापमान होने पर पौधा लम्बी बढ़वार वाला हो जाता है। छोटे पौधों में पाला सहन करने की विशेष क्षमता होती है, परंतु फूल और फलियों के बनने के समय शुष्क तथा थोड़ा गर्म मौसम उसके गुणों तथा उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। तापमान जब 30 डीग्री सेन्टीग्रेड से ऊपर हो जाता है, तो सब्जी मटर (Vegetable Pea) फलियों की गुणवत्ता पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
सब्जी मटर के लिए भूमि का चयन (Selection of land for vegetable peas)
सब्जी मटर (Vegetable Pea) की खेती सभी प्रकार की मृदाओं में की जा सकती है। परन्तु उत्तम जल निकास वाली वलुई दोमट मिट्टी जिसमें कार्बनिक पदार्थ प्रचुर मात्रा में हो सबसे अच्छी मानी जाती है। वह मिट्टी जिसमें पानी न ठहरता हो तथा पानी सोखने की क्षमता अधिक हो, हरे फल और बीजों के उत्पादन को बढ़ा देता है। आदर्श पीएच मान 6 – 7.5 माना जाता है। अत्यधिक अम्लीय तथा क्षारीय मिट्टी इसके उत्पादन को प्रभावित करती है।
सब्जी मटर के लिए खेत की तैयारी (Field preparation for vegetable pea)
सब्जी मटर (Vegetable Pea) के लिए भूमि को अच्छी तरह तैयार करना चाहिए। खरीफ की फसल की कटाई के बाद भूमि की जुताई मिट्टी पलटने वाले हल करके 2 से 3 बार हैरो चलाकर अथवा जुताई करके पाटा लगाकर भूमि तैयार करनी चाहिए। धान के खेतों में मिट्टी के ढेलों को तोड़ने का प्रयास करना चाहिए। अच्छे अंकुरण के लिए मिट्टी में नमी होना जरुरी है। अतिरिक्त पानी निकासी की व्यवस्था अवश्य होनी चाहिए।
सब्जी मटर की उन्नत किस्में (Improved varieties of vegetable peas)
मटर की किस्मों को दो भागों में बांटा गया है, जिससे से एक फील्ड मटर और दूसरा गार्डेन मटर या सब्जी मटर (Vegetable Pea) है। जिनकी किस्में इस प्रकार है, जैसे-
फील्ड मटर: इस वर्ग की किस्मों का उपयोग साबुत मटर दाल के लिए और चारे के लिए किया जाता है। इन किस्मों में प्रमुख रचना, स्वर्णरेखा, अपर्णा, हंस, जेपी – 885 विकास, श्रुचार पारस आदि है।
गार्डन मटर: इस वर्ग की किस्मों का उपयोग सब्जी के लिए किया जाता है, इसकी प्रमुख उन्नत किस्में हैं, जैसे-
अगेती किस्में (जल्दी तैयार होने वाली): ये किस्में बुवाई के लगभग 64-65 दिनों बाद पहली तुड़ाई योग्य हो जाती हैं। जैसे: आर्केल, अलास्का, लिकोलन, काषी नंदनी, पंजाब- 88, अग्रेती मटर- 3, हरभजन पंत सब्जी मटर 3-5, पूसा प्रगति, उदय आदि।
मध्यम किस्में: ये किस्में बुवाई के लगभग 85-90 दिनों बाद पहली तुड़ाई योग्य हो जाती हैं जैसे: बोनविले, काशी शक्ति, जवाहर मटर 1-4 जवाहर मटर- 83 पंत उपहार, विवके आजाद – 1-4, वीएल मटर- 3-7, नरेन्द्र सब्जी मटर- 4-5-6 आदि।
पछेती किस्मे (देरी से तैयार होने वाली): ये किस्मे बुवाई के लगभग 100-110 दिनो बाद पहली तुड़ाई योग्य हो जाती हैं। जैसे: आजाद मटर, जवाहर मटर- 2 आदि।
सब्जी मटर बुवाई का समय और बीज दर (Vegetable Pea Sowing Time and Seed Rate)
बुवाई का समय: मैदानी भागों में सब्जी मटर (Vegetable Pea) की बुवाई अक्टूबर के प्रथम सप्ताह से लेकर नवम्बर के अन्त तक करते हैं। जबकि पहाड़ी भागों में मध्य फरवरी से लेकर अप्रैल के अन्त तक करते हैं। समय से पहले तथा समय के बाद बुवाई करने पर उत्पादन और गुणवत्ता दोनो पर प्रभाव पड़ता है। अत: मुख्य मौसम में अच्छे उत्पादन हेतु बुवाई लाभप्रद होती है।
बीज दर: अगेती प्रजातियाँ के लिए 125-150 किग्रा तथा मध्यम पकने प्रजातियों के 100-120 किग्रा बीजों की प्रति हेक्टेयर बुवाई की जरूरत पड़ती है। अगेती बुवाई में बीज की मात्रा बढ़ाकर प्रयोग करना चाहिए क्योंकि पौधे की बढ़वार कम होती है।
सब्जी मटर का बीज उपचार और बुवाई (Seed treatment and sowing of vegetable pea)
बीज उपचार: बुवाई से पहले बीज शोधन केवल जमाव प्रतिशत ही नहीं बल्कि उत्पादन में भी लाभ पहुँचाता है। राइजोविजम कल्चर को 10% गुड़ के जलीय घोल से बीज को अच्छी तरह उपचारित कर छाया में सुखा लेना चाहिए। उकठा रोग से बचने के लिए बीज को कार्बेन्डाजिम 2.5 ग्राम प्रति किग्रा से उपचारित कर लेना।
बुवाई की विधि: उपचारित सब्जी मटर (Vegetable Pea) बीज की 5-8 सेमी गहराई पर बुवाई करते हैं। अगेती किस्मों में बीज से बीज की दूरी 4-5 सेमी तथा पंक्ति से पंक्ति की दूरी 25-30 सेमी और मध्य पकने वाली प्रजातियों के बीज से बीज की दूरी 5-8 सेमी तथा पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30-40 सेमी रखते हैं।
सब्जी मटर में खाद और उर्वरक प्रबंधन (Manure and fertilizer management in vegetable pea)
मटर की जड़ों में राइजोबियम नामक जीवाणु रहता जो वायुमण्डल की नेत्रजन को पौधों की जड़ों तक पहुँचाता है। अत: नेत्रजन की आवश्यकता को लगभग जीवाणु ही पूर्ण करने में सक्षम होते हैं। परंतु यह जीवाणु अपना कार्य पौधे के एक निश्चित आयु में आरंभ करते हैं। जिससे बुवाई करने से पहले नाइट्रोजन की थोड़ी मात्रा मिट्टी में मिलाई जाती है। बुवाई से पहले 100-150 कुन्तल प्रति हेक्टेयर गोबर की पूर्णरूप से सड़ी हुई खाद 8 सप्ताह पहले मिट्टी में अच्छी तरह मिला देना चाहिए।
सब्जी मटर (Vegetable Pea) से अधिक उपज प्राप्त करने के लिए 50-70 किग्रा नेत्रजन, 40-50 किग्रा फास्फोरस और 40-60 किग्रा पोटाश की प्रति हेक्टेयर मटर के लिए प्रयोग की जाती है। फास्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन की आधी मात्रा बुवाई के समय देते हैं एवं आधी बची नेत्रजन की मात्रा बुवाई के 30-40 दिनों बाद प्रथम सिंचाई के बाद प्रयोग की जाती है।
सब्जी मटर शस्य क्रियायें और खरपतवार नियंत्रण (Vegetable Pea Crop Practices and Weed Control)
मटर सब्जी (Vegetable Pea) की फसल से अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए खरपतवार नियंत्रण आवश्यक होता है, जो बुवाई के सामान्यतः 25-30 दिन तक खुर्पी की सहायता से निराई की जा सकती है। रसायनिक खरपतवार नियंत्रण के लिए बुवाई के दो दिनो के अन्दर एलाक्लोर अथवा पेन्डीमेथिलीन का छिड़काव खरपतवार को उगने नहीं देता है। जिससे फसल खरपतवार मुक्त रहती है।
मटर सब्जी फसल में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management in Pea Vegetable Crop)
बुवाई के समय खेत की नमी के आधार पर सिंचाई निश्चित करनी चाहिए। यदि खेत में नमी बिल्कुल ही नहीं हो तब खेत को पलेवा करना जरूरी हो जाता है तथा खेत जुताई योग्य तैयार हो जाए, तो उसे अच्छी प्रकार से जुताई करके ही बीज बोने का कार्य करना चाहिए। मिट्टी यदि काफी हल्की हो तो कम नमी होने पर बुवाई के तुरंत बाद सिंचाई की जा सकती है।
जिसके लिए फुहारे वाली विधि सबसे अच्छी होती है। इस विधि में पानी आवश्यकतानुसार ही पौधों को दिया जाता है। जिससे पौधे अच्छी बढ़वार प्राप्त कर लेते हैं, जो उसके उपज पर काफी अच्छा प्रभाव डालता है। सब्जी मटर (Vegetable Pea) की फूल आने के पहले तथा बाद में सिंचाई आवश्यकतानुसार करनी चाहिए।
सब्जी मटर की फसल में रोग नियंत्रण (Disease control in vegetable pea crop)
चूर्णिल आसिता: यह फफूंद जनित रोग है। यह रोग हवा के द्वारा एक पौधे से दूसरे पौधे तक पहुँच जाता है। पौधे के पत्ती और फलों एवं सफेद रंग के चूर्ण वाले धब्बे दिखाई देते है। सुखा मौसम इस रोग को बढ़ाने में सहायक होता है। रोग का असर अगर प्रारंभिक अवस्था में हो जाय तो पुष्पन तथा फलन दोनो प्रभावित होते है। बुवाई निश्चित समय से करनी चाहिए। संक्रमण होने पर सल्फर की 2.5 किग्रा प्रति हेक्टेयर या कैराथेन अथवा डिनोकाप का 0.2% घोल दस दिनों के अन्तराल पर तीन बार छिड़काव करना चाहिए। रोगरोधी किस्मों का उपयोग करना चाहिए।
गेरूई रोग: यह रोग फफूँद द्वारा फैलता है। यह रोग खरपतवार में संरक्षित रहता है, जो हवा से फसल में पहुँचता है। यह रोग पत्तियों तथा तना पर प्रभाव डालता है। अधिक नमी होने पर अधिक नुकसान पहुँचाता है। इसके नियंत्रण के लिए रोगी पौधे, खरपतवार और रोगी भाग को नष्ट कर देना चाहिए । उचित फसलचक्र अपनाना चाहिए। डाइथेन एम- 45 अथवा कैलिक्सिन का 0.2% के घोल का तीन से चार बार 10-15 दिनों के अन्तराल पर छिड़काव लाभकारी होता है।
जड़ गलन: यह रोग फफूँद से होता है। जिसमें सब्जी मटर (Vegetable Pea) की पत्तियाँ पीली पड़ जाती है। यह फफूँद मिट्टी में रहता है, जो जड़ो को संक्रमित कर पूरे पौधे को सुखा देता है। तना नीचे से पिले होकर सूख जाता है। इसके नियंत्रण के लिए ट्राइकोडर्मा पाउडर 5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से मिला देना चाहिए। फसलचक्र अपनाना और बुवाई से पूर्व कार्बेन्डाजिम 2.5 ग्राम प्रति किग्रा बीज की दर से उपचारित करना चाहिए।
सब्जी मटर की फसल में कीट नियंत्रण (Pest control in vegetable pea crop)
तना मक्खी: इस कीट की प्यूपा और लार्वा तनें को नुकासान पहुँचाते हैं। जिससे पौधा टुटकर सूख जाता है। इसका प्रकोप बुवाई के 20 दिनों बाद दिखता है। इसके नियंत्रण के लिए बीजो को थायोमेथोक्जाम से शोधन करना तथा बुवाई के 30 दिन बाद मिथायाल आक्सीडेनेटोन का 300 ग्राम सक्रिय तत्त्व प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना चाहिए।
मटर का फली बेधक कीट: यह सब्जी मटर (Vegetable Pea) का सबसे प्रमुख कीट है। जिसकी सूड़ी फली में छेदकर अन्दर पहुँचकर हरे दानों को खाने लगती है। इस कीट के नियंत्रण के लिए कार्वारिल का 1.0 किग्रा या इन्डोसल्फान का 750 ग्राम सक्रिय तत्त्व प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए।
माहूँ: यह कीट छोटा, काला और मुलायम शरीर वाला होता है। इसका आक्रमण जनवरी माह से प्रारम्भ हो जाता है। यह पौधे के ऊपरी भाग, पत्तियों और तनों का रस चूस लेता है। जिससे पौधा छोटा तथा पत्तियाँ एवं तने अनियमित ढंग से मुड़ जाते हैं। इसके नियंत्रण के लिए थायोमेथाक्जोन दवा 1 ग्राम प्रति 5 लीटर पानी की दर से या इण्डोसल्फान 750 ग्राम सक्रिय तत्त्व प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए।
पर्ण सुरंगक कीट: इस कीट का प्यूपा काफी नुकसान पहुँचाता है, जो पत्ति में सफेद धागे जैसे बारीक सुरंग बना देता है। जो पौधे को भोजन बनाने में बाधा उत्पन्न करता है, जिससे पौधे सुख जाते हैं। इसके नियंत्रण के लिए नीम गिरी अर्क 4% घोल 15 दिन के अन्तराल पर चार बार और डाइक्लोरोवास (0.03%) का छिड़काव करना चाहिए।
बीटिल: यह कीट सिर्फ बीजों को खाता है। मादा कीट सुखे बीज के अन्दर छिद्र करके अण्डे देती है, जहाँ सूड़ी विकसित होती है, जो बीज का खाकर खोखला कर देती है। इसके नियंत्रण के लिए बीज भंडारगृह में धुआँ करके और बीजों की छटाई करके रखना चाहिए। यह कीट खेत में नुकसान न पहुँचाए, इसके लिए मैलाथियान 2 मिली प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए। बीज के भण्डारण के समय क्लोरोपाइरीफास (10 मिली प्रति लीटर पानी) से उपचारित करके भंडारण करना चाहिए।
सब्जी मटर की फली तुड़ाई और उपज (Vegetable Pea Pod Picking and Yield)
फल तुड़ाई: सब्जी मटर की फलियों की तुड़ाई किस्मों और फलियों के उपयोग पर निर्भर करती है। सामान्यत: अगेती किस्में बुवाई के 60-65 दिन बाद और मध्यम किस्में बुवाई के 85-90 दिनों बाद एवं पछेती किस्में बुवाई के 100-110 दिन बाद पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। फलियों की 7-10 दिन के अंतराल पर 3-4 बार तुड़ाई करनी चाहिये। इससे सब्जी मटर (Vegetable Pea) फसल से अधिक उत्पादन प्राप्त होता है।
उपज: सब्जी मटर (Vegetable Pea) की हरी फलियों की उपज अगेती किस्मों से 60-100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, मध्यम किस्मों से 100-120 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथा पछेती किस्मों से 120 से अधिक क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
सब्जी मटर (Vegetable Pea) को अपने विकास काल के दौरान 10-18 डिग्री सेल्सियस के औसत तापमान वाली ठंडी जलवायु पसंद होती है। जब रोपण के समय तापमान 5 डिग्री सेल्सियस से कम होता है तो बीज का अंकुरण बाधित होता है। मटर विकास के शुरुआती चरणों में पाले को सहन कर सकता है।
अगेती किस्म के सब्जी मटर (Vegetable Pea) की बुवाई अक्टूबर के महीने में की जाती है। वहीं, पछेती किस्मों के मटर की खेती नवंबर माह के अंत में होती है।
पंत मटर 155 : मटर की संकर किस्मों में, सब्जी मटर (Vegetable Pea) की ये किस्म बेहतरीन है। बुआई के 50 से 60 दिनों के बाद ही हरी फलियों की तुड़ाई कर सकते हैं। इस किस्म की खासियत यह है कि इसमें रोगों का प्रकोप कम होता है। फफूंद रोग, फली छेदक कीटों का प्रकोप इस किस्म पर ज्यादा नहीं होता।
अक्टूबर के दूसरे सप्ताह में बोई गई सब्जी मटर (Vegetable Pea) की फसल 60-70 दिन बाद पहली कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसत उपज 30-35 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
हालाँकि, सब्जी मटर (Vegetable Pea) आम तौर पर ठंडे मौसम को पसंद करते हैं और ठंडी वसंत ऋतु में अच्छी तरह से उगते हैं। हालाँकि, बहुत नम मिट्टी में बोने से बचें, क्योंकि बीज सड़ सकते हैं। लंबी किस्मों के लिए, बीजों को 7.5 सेमी (3 इंच) की दूरी पर या तो एक पंक्ति में या फिर 30 सेमी (1 फीट) की दूरी पर एक दोहरी पंक्ति में बोएँ।
सब्जी मटर (Vegetable Pea) के लिए भूमि को अच्छी तरह तैयार करना चाहिए। भूमि में जलनिकास की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। बीज को बुआई के पूर्व फफूंदीनाशक वीटावैक्स पॉवर 3 ग्राम दवा प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करें। इसके पश्चात एक किलो बीज में राइजोबियम कल्चर 4-5 मिली तथा ट्राइकोडर्मा विरडी 2 – 3 मिली मिलाकर उपचारित करें।
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