Watermelon Farming in Hindi: गर्मी के दिनों में तरबूज एक अत्यन्त लोकप्रिय सब्जी मानी जाती है। इसके फल पकने पर काफी मीठे और स्वादिष्ट होते हैं। इसकी खेती हिमालय के तराई क्षेत्रों से लेकर दक्षिण भारत के राज्यों तक विस्तृत रूप में की जाती है। इसके फलों के सेवन से लू नहीं लगती है तथा गर्मी से राहत मिलती है।
इसके रस को नमक के साथ प्रयोग करने पर मुत्राशय में होने वाले रंगों से आराम मिलता है। इसकी खेती मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, आन्ध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, कर्नाटक एवं राजस्थान में की जाती है। इस लेख में तरबूज की खेती (Watermelon Cultivation) वैज्ञानिक तकनीक से कैसे करें का उल्लेख किया गया है।
तरबूज की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for cultivation of watermelon)
गर्म और औसत आर्द्रता वाले क्षेत्र तरबूज की खेती (Watermelon Cultivation) के लिए सर्वोत्तम होते हैं। बीज के जमाव व पौधों के बढ़वार के लिए 25-32° सेल्सियस तापक्रम उपयुक्त पाया गया है।
तरबूज की खेती के लिए भूमि का चयन (Selection of land for watermelon cultivation)
तरबूजे की खेती (Watermelon Cultivation) विभिन्न प्रकार की भूमि में की जाती है। लेकिन बलुई दोमट मिट्टी इसकी खेती के लिए उपयुक्त होती है। तरबूजा, कद्दूकुल की सब्जियों में एक ऐसी सब्जी है, जिसकी खेती 5.00 पीएच मान मृदा अम्लता पर भी सफलतापूर्वक की जाती है। गुणवत्तायुक्त अच्छी उपज के लिए भूमि का पीएच मान 5.5 से 7.0 तक होना चाहिए।
तरबूज की खेती के लिए खेत की तैयारी (Field Preparation for Watermelon Cultivation)
तरबूज की खेती (Watermelon Cultivation) के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा बाद की जुताई देशी हल या कल्टीवेटर से करते हैं। पानी कम या ज्यादा न लगे इसके लिए खेत को समतल कर लेते हैं। नदियों के किनारे बलुई मिट्टी में पानी की उपलब्धता के आधार पर नालियों और थालों को बनाया जाता है, जिसे सड़ी हुई गोबर की खाद और मिट्टी के मिश्रण से भर देते हैं।
तरबूज की खेती के लिए किस्में (Varieties for cultivation of water melon)
तरबूजे की फसल से अच्छी पैदावार प्राप्त करने की लिए किसानों को तरबूज की स्थानीय किस्मों की अपेक्षा इसकी उन्नत किस्मों को महत्व देना चाहिए और साथ में विकार रोधी तथा अधिक उपज देने वाली किस्म का चयन करना चाहिए। तरबूज (Watermelon) की कुछ उन्नत किस्में इस प्रकार है, जैसे: सुगर बेबी, दुर्गापुर केसर, अर्को मानिक, दुर्गापुर मीठा, काशी पीताम्बर, पूसा वेदना, अर्का ज्योति, डब्ल्यू – 19, न्यू हेम्पशायर मिडगट और आशायी यामातो इत्यादि प्रमुख है।
तरबूज बुवाई का समय और बीज की मात्रा (Watermelon sowing time and quantity of seeds)
उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों में तरबूज की बुआई 10-20 फरवरी के बीच में की जाती है, जबकि नदियों के किनारे इसकी बुआई नवम्बर – जनवरी के बीच में की जाती है। दक्षिणी-पश्चिमी राजस्थान में मतीरा जाति के तरबूज की बुवाई जुलाई महीने में की जाती है। जबकि दक्षिण भारत में इसकी बुआई अगस्त से लेकर जनवरी तक करते हैं। एक हेक्टेयर क्षेत्रफल के लिए 3.5-4 किलोग्राम तरबूज (Watermelon) का बीज पर्याप्त होता है।
तरबूज की खेती के लिए बुआई की विधि (Sowing method for watermelon cultivation)
तरबूज (Watermelon) की बुआई मेड़ों पर 2.5 से 3.0 मीटर की दूरी पर 40 से 50 सेमी चौड़ी नाली बनाकर करते हैं। इन नालियों के दोनों किनारों पर 60 सेमी की दूरी पर बीज बोते हैं। यह दूरी मृदा की उर्वरता और प्रजाति के अनुसार घट बढ़ सकती है। नदियों के किनारे 60 X 60 X 60 सेमी क्षेत्रफल वाले गड्डे बनाकर उसमें 1:1:1 के अनुपात में मिट्टी, गोबर की खाद तथा बालू का मिश्रण भरकर थालें को भर देवें तत्पश्चात् प्रत्येक थालें में दो बीज लगाते हैं।
तरबूज की फसल में खाद और उर्वरक (Manure and fertilizers in watermelon crop)
तरबूज की खेती (Watermelon Cultivation) के लिए 65 किग्रा नत्रजन, 56 किग्रा फास्फोरस तथा 40 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से अवश्य दी जानी चाहिए। नत्रजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा खेत में नालियाँ या थाले बनाते समय देते हैं। नत्रजन की आधी मात्रा दो बराबर भागों में बाँटकर खड़ी फसल में जड़ों के पास गुड़ाई के समय तथा पुन: 45 दिन बाद छिड़ककर देना चाहिए।
तरबूज की फसल में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management in Watermelon Crop)
यदि तरबूज की खेती (Watermelon Cultivation) नदियों के कछारों में की जाती है, तब सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती क्योंकि पौधों की जड़ें बालू के नीचे उपलब्ध पानी को शोषित करती रहती हैं। जब मैदानी भागों में इसकी खेती की जाती है, तो सिंचाई 7-10 दिन के अन्तराल पर करते हैं। जब तरबूज आकार में पूरी तरह से बढ़ जाते हैं, सिंचाई बन्द कर देते हैं, क्योंकि फल पकते समय खेत में पानी अधिक होने से फल में मिठास कम हो जाती है और फल फटने लगते हैं।
तरबूज की फसल में खरपतवार नियंत्रण (Weed control in watermelon crop)
तरबूज (Watermelon) के जमाव से लेकर प्रथम 25 दिनों तक खरपतवार फसल को ज्यादा नुकसान पहुँचाते हैं। इससे फसल की वृद्धि पर प्रतिकूल असर पड़ता है तथा पौधे की बढ़वार रूक जाती है। अत: खेत से कम से कम दो बार खरपतवार निकालना चाहिए। रासायनिक खरपतवारनाशी के रूप में बूटाक्लोर रसायन 2 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से बीज बुआई के तुरन्त बाद छिड़काव करते हैं। खरपतवार निकालने के बाद खेत की गुड़ाई करके जड़ों के पास मिट्टी चढ़ाते हैं, जिससे पौधों का विकास तेजी से होता है।
तरबूज की फसल में कीट नियंत्रण (Pest control in water melon crop)
कद्दू का लाल कीट (रेड पम्पकिन बिटिल): इस कीट का वयस्क चमकीली नारंगी रंग का होता हैं तथा सिर, वक्ष और उदर का निचला भाग काला होता है। सूण्डी जमीन के अन्दर पायी जाती है। इसकी सूण्डी व वयस्क दोनों क्षति पहुँचाते हैं। पौधों की छोटी पत्तियों पर ज्यादा क्षति पहुँचाते हैं। ग्रब ( इल्ली) जमीन में रहती है, जो पौधों की जड़ पर आक्रमण कर हानि पहुँचाती है।
ये कीट तरबूज (Watermelon) फसल में जनवरी से मार्च के महीनों में सबसे अधिक सक्रिय होते है। अक्टूबर तक खेत में इनका प्रकोप रहता है। फसलों के बीज पत्र एवं 4-5 पत्ती अवस्था इन कीटों के आक्रमण के लिए सबसे अनुकूल है। प्रौढ़ कीट विशेषकर मुलायम पत्तियां अधिक पसन्द करते है। अधिक आक्रमण होने से पौधे पत्ती रहित हो जाते है।
नियंत्रण: सुबह ओस पड़ने के समय राख का बुरकाव करने से भी प्रौढ़ पौधा पर नहीं बैठता जिससे नुकसान कम होता है। जैविक विधि से नियंत्रण के लिए अजादीरैक्टिन 300 पीपीएम, 5-10 मिली प्रति लीटर या अजादीरैक्टिन 5 प्रतिशत, 0.5 मिली प्रति लीटर पानी की दर से दो या तीन छिड़काव करने से लाभ होता है।
इस कीट का तरबूज (Watermelon) फसल में अधिक प्रकोप होने पर कीटनाशी जैसे डाईक्लोरोवास 76 ईसी, 1.25 मिली प्रति लीटर या ट्राइक्लोफेरान 50 ईसी, 1 मिली प्रति लीटर पानी की दर से 10 दिनो के अन्तराल पर पर्णीय छिड़काव करें।
तरबूज की फसल में रोग नियंत्रण (Disease control in water melon crop)
मृदुरोमिल आसिता: जब तापमान 20-22 डिग्री सेंटीग्रेट हो, तब यह रोग तेजी से फैलता है। उत्तरी भारत में इस रोग का प्रकोप अधिक है। इस रोग का मुख्य लक्षण तरबूज फसल (Watermelon Crop) की पत्तियों पर कोणीय धब्बे जो शिराओं द्वारा होते हैं। अधिक आर्द्रता होने पर पत्ती के निचली सतह पर मृदुरोमिल कवक की वृद्धि दिखाई देती है।
नियंत्रण: इसकी रोकथाम के लिए मैंकोजेब 0.20 प्रतिशत (2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी) घोल से पहले सुरक्षा के रूप में छिड़काव बीमारी दिखने तुरन्त करना चाहिए। यदि पौधों पर बीमारी के लक्षण दिखाई दे रहे हो तो मेटल एक्सिल 8 प्रतिशत + मैन्कोजेब 64 प्रतिशत डब्लूवीपी ( 25 प्रतिशत) दवा का छिड़काव 7 दिन के अन्तराल पर 3-4 बार करना चाहिए। पूरी तरह रोगग्रस्त लताओं को निकाल कर जला देना चाहिए तथा बीज उत्पादन के लिए गर्मी की फसल से बीज उत्पादन करें।
तरबूज बड नेक्रोसिस: यह रोग रस द्रव्य और थ्रिप्स कीट द्वारा फैलता है। रोग ग्रस्त पौधों में क्राउन से अत्यधिक कल्ले निकलते हैं और तना सामान्य से कड़ा और ऊपर उठा हुआ दिखाई देता है, पत्तियाँ विकृत हो जाती हैं, उसमें असामान्य वृद्धि होती है तथा तरबूज (Watermelon) फसल के फूल भी टेढ़े-मेढ़े एवं हरे हो जाते हैं।
नियंत्रण: इस रोग से बचाव हेतु रोग रोधी किस्म की बुवाई करें तथा रोगी पौधों का उखाड़कर नष्ट कर देवें। बीज अथवा पौधों को इमिडाक्लोप्रिड 0.3 मिली दवा 1 लीटर पानी में घोलकर रोपाई अथवा बुआई से पहले 10 मिनट तक उपचारित करें। पौध जमाव के 10-15 दिन के बाद से नीम अथवा पुंगगामिया के रस का छिड़काव 3 प्रतिशत की दर से 15 दिन के अन्तराल पर करना चाहिए।
तरबूज फसल के फलों की तुड़ाई और उपज (Fruit Harvesting and Yield of Watermelon Crop)
फलों की तुड़ाई: तरबूज में तुड़ाई बहुत महत्वपूर्ण है। तरबूज के फल का आकार और डंठल के रंग को देखकर उसके पकने की स्थिति का पता लगाना बड़ा मुश्किल है। अच्छी प्रकार पके हुए फलों की पहचान निम्न प्रकार से की जाती है। जमीन से सटे हुए फल के भाग का रंग परिवर्तन देखकर (फल का रंग सफेद से मखनियाँ पीले रंग) किया जाता है।
पके फल को थपथपाने से धबधब की आवाज आती है, तो फल पका होता है। इसके अलावा यदि फल से लगी हुई प्ररोह पूरी तरह सूख जाय तो फल पका होता है। पके हुए फल को दबाने पर कुरमुरा और फटने जैसा अनुभव हो तो भी फल पका माना जाता है। फलों को तोड़कर ठण्डे स्थान पर एकत्र करना चाहिए।
दूर के बाजारों में तरबूज (Watermelon) फल को भेजते समय कई सतहों ट्रक में रखते हैं और प्रत्येक सतह के बाद धान की पुआल रखते हैं। इससे फल आपस में रगड़कर नष्ट नहीं होते हैं और तरबूजों की ताजगी बनी रहती है। गर्मी के दिनों में सामान्य तापमान पर फल को 10 दिनों तक आसानी से रखा जा सकता है।
उपज: उपरोक्त वैज्ञानिक तकनीक से औसतन तरबूज (Watermelon) की उपज 400-550 कुन्तल प्रति हेक्टेयर होती है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
तरबूज (Watermelon) उष्णकटिबंधीय से समशीतोष्ण जलवायु में उगाए जाने वाले पौधे हैं, जिन्हें पनपने के लिए लगभग 25 °C (77 °F) से अधिक तापमान की आवश्यकता होती है।
तरबूज को अच्छी जल निकासी वाली रेतीली से लेकर रेतीली दोमट, मध्यम काली मिट्टी में उगाया जा सकता है, जिसमें कार्बनिक पदार्थ भरपूर मात्रा में हों। नदी के किनारे की जलोढ़ मिट्टी भी तरबूज (Watermelon) के उत्पादन के लिए अच्छी होती है। 6.0- 7.0 की पीएच रेंज को इष्टतम माना जाता है।
तरबूज (Watermelon) के लिए सबसे अच्छा रोपण समय बरसात के मौसम की शुरुआत और मौसम के अंत में होता है। “इसलिए हम मार्च में रोपण करते हैं जब बारिश शुरू होती है और नवंबर में जब बारिश खत्म हो जाती है।
तरबूज (Watermelon) के पौधों को प्रति सप्ताह लगभग 1 इंच पानी की ज़रूरत होती है, लेकिन चूँकि जड़ें मिट्टी के ऊपरी 12 इंच में होती हैं, इसलिए मिट्टी के प्रकार के आधार पर, इस सिंचाई को सप्ताह के दौरान दो या अधिक बार पानी देना सबसे अच्छा होता है।
तरबूज़ जल्दी पकने वाली फसल नहीं है। पौधों को रोपण के समय से लेकर फल पकने तक 65 से 100 दिनों के बीच की आवश्यकता होती है, जो कि किस्म पर निर्भर करता है। छोटे तरबूज़ (Watermelon) की किस्में अक्सर ज़्यादा जल्दी पकती हैं, लेकिन यह हमेशा सच नहीं होता है।
तरबूज (Watermelon) के लिए, फॉस्फोरस युक्त उर्वरक, जैसे कि 10-10-10, 4 पाउंड प्रति 1,000 वर्ग फ़ीट (60 से 90 फ़ीट पंक्ति) की दर से डालें। रोपण बिस्तर पर 4 से 6 इंच गहरी और पंक्ति के किनारे से 2 इंच की दूरी पर एक खाई बनाएँ। उर्वरक को ढँक दें और पौधे लगाएँ ताकि बीज उर्वरक को न छुएँ।
तरबूज (Watermelon) की अच्छी फसल लेने के लिए लगभग वही आवश्यकताएं रहती हैं, जो कद्दूवर्गीय सब्जियों के लिए होती हैं। इसके लिए 250 क्विंटल अच्छी सड़ी गोबर खाद के साथ 80 किलोग्राम फास्फोरस तथा पोटाश 40 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर देना चाहिए। इससे पैदावार अच्छी होगी और किसानों को भरपूर मुनाफा मिलेगा।
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