गेहूं (Wheat) भारत की एक महत्वपूर्ण खाद्यान्न फसल है। भारत के 13 प्रतिशत फसली क्षेत्र में गेहूँ उगाया जाता है। धान के बाद गेहूं देश की सबसे महत्त्वपूर्ण अनाज वाली फसल है और भारत के उत्तर और उत्तरी पश्चिमी प्रदेशों के लोगों का मुख्य भोजन है। भारत की खाद्य सुरक्षा और संप्रभुता की दृष्टि से गेहूँ उत्पादन में अहम् स्थान है।
गेहूं (Wheat) प्रोटीन, विटामिन और कार्बोहाइड्रेटस का अच्छा स्त्रोत है जो कि संतुलित भोजन प्रदान करता है। इस प्रदेश में गेहूं Wheat की उत्पादकता एवं उपज को और अधिक बढ़ाने की अपार संभावनाएं है। अतः किसानों को अधिक उपज और आय में वृद्धि के लिए गेहूं (Wheat) की वैज्ञानिक विधि से खेती करने की आवश्यकता है।
गेहूं के लिए जलवायु और भूमि (Climate and land for Wheat)
गेहूं की फसल (Wheat Crop) के लिए समशीतोषण जलवायु की आवश्यकता होती है। इसकी खेती के लिए अनुकूल तापमान बुवाई के समय 20-25 डिग्री सेंटीग्रेड उपयुक्त होता है। गेहूँ की खेती मुख्यतः सिंचाई पर आधारित होती है और दोमट मिट्टी सर्वोत्तम मानी जाती है, लेकिन इसकी खेती बलुई दोमट, भारी दोमट मिट्टी में की जा सकती है।
गेहूं के लिए खेत की तैयारी (Field Preparation for Wheat)
गेहूं की खेती (Wheat Farming) हेतु खेत को तैयार करने के लिए पहली जुताई मिटटी पलटने वाले हल से तथा बाद में डिस्क हैरो या कल्टीवेटर से 2-3 जुताईयां करके खेत को समतल करते हुए भुरभुरा बना लेना चाहिए।
गेहूं बुवाई का समय और बीज की मात्रा (Sowing Time and Seed Quantity)
गेहूं की बुवाई सही समय पर करनी जरूरी है। पछेती बुवाई में पैदावार कम होती है। गेहूं (Wheat) की सामान्य बुवाई 10 से 25 नवम्बर तक कर देनी चाहिए। गेहूँ की अच्छी पैदावार के लिए कतार से कतार की दूरी 17.5-20 सेमी तथा बीज की गहराई 4-5 सेमी होनी चाहिए। असिंचित क्षेत्र में पंक्ति की दूरी 25-30 सेमी तक रखी जानी चाहिए। सामान्य बुवाई हेतू 100 किलोग्राम तथा देरी से बुवाई हेतु 120 किलोग्राम बीज प्रति हैक्टेयर की दर से उपयोग में लेना चाहिए।
गेहूं की किस्मों का चयन (Selection of Wheat Varieties)
गेहूं (Wheat) की अच्छी पैदावार लेने के लिए अच्छी किस्मों का चुनाव करना बहुत जरूरी है। किसानों को अनुमोदित किस्मों को बुवाई के समय और उत्पादन स्थिति के हिसाब से लगाना चाहिए। समय से बुवाई वाली किस्मों को देरी की अवस्था में या देरी से बुवाई वाली किस्मों को समय से बोने पर उपज में कमी हो सकती है। परिस्थितियों अनुसार गेहूं (Wheat) की कुछ किस्में इस प्रकार है, जैसे-
सिंचित क्षेत्र (समय पर बुवाई)
एच डी 2967, यू पी 2382, एच यू डब्ल्यू 468, एच डी 2888, एच डी 2733, के 307 (शताब्दी), डब्ल्यू एच 542, डब्ल्यू एच 1105, एच डी 2964, डी पी डब्ल्यू 621-50, पी बी डब्ल्यू 550, पी बी डब्ल्यू 17, पी बी डब्ल्यू 502, एच डी 2687, पी डी डब्ल्यू 314 (कठिया), पी डी डब्ल्यू 291 (कठिया), पी डी डब्ल्यू 233 (कठिया) और डब्ल्यू एच 896 (कठिया) आदि।
सिंचित क्षेत्र (देर से बुवाई)
पी बी डब्ल्यू 590, डब्ल्यू एच 1021, पी बी डब्ल्यू 16, पी बी डब्ल्यू 373,एच यू डब्ल्यू 510, के 9423, के 9423, (उन्नत हालना), के 424 (गोल्डन हालना), इत्यादि।
वर्षा आधारित (समय से बुवाई)
पी बी डब्ल्यू 396, के 8962, के 9465, के 9351, एच डी 2888, मालवीय 533 आदि।
ऊसर (लवणीय एवं क्षारीय) क्षेत्र हेतु (सिंचित क्षेत्र, समय पर बुवाई)
के आर एल 213, के आर एल 210, के आर एल 19 और के 8434 इत्यादि प्रमुख है।
गेहूं बुवाई की विधियाँ (Wheat Sowing Methods)
सामान्यतः किसान पारम्परिक विधि से बीज को छिटककर गेहूं (Wheat) की बुवाई करते हैं, जो कि गैर वैज्ञानिक तरीका है। इसी कारण निराई, गुडाई, खरपतवार नियंत्रण और अन्य सस्य क्रियाओं में बाधा आती है तथा पैदावार भी कम होती है। इसके अतिरिक्त विशेष परिस्थितियों में तथा आवश्यकतानुसार निम्न वैज्ञानिक तकनीक का उपयोग कर किसान फसल लागत में कमी ला सकते हैं, जैसे-
सीड ड्रिल विधि
सीड ड्रिल या सीड कम फर्टीड्रिल द्वारा बुवाई करना एक सर्वोत्तम तरीका है। इसमें बीज को बीज पेटी में और उर्वरक को उर्वरक पेटी में डालकर दोनों कार्य (बीज बुवाई और उर्वरक प्रयोग) एक साथ कर सकते हैं। पंक्ति में बुवाई होती है जिससे पौधों की संख्या उचित एवं एक समान रहती है, जिससे लागत में कमी एवं पैदावार में वृद्धि होती है।
शून्य कर्षण (जीरो टिलेज)
गेहूं (Wheat) की शून्य कर्षण बुवाई एक लाभदायक तकनीक है, जिसमें विशेष रूप से तैयार की गई बीज संग उर्वरक डालने वाली मशीन यानि जीरो टिल कम फर्टीड्रिल का प्रयोग किया जाता है। इस पद्धति से गेहूँ की बुवाई धान की कटाई के बाद खेत की बिना जुताई किए ही की जाती है। इस विधि से गेहूं (Wheat) की बुवाई लगभग 10 दिन पहले की जा सकती है तथा लगभग तीन से चार हजार रुपये प्रति हैक्टर की बचत होती है।
इस विधि के अंगीकरण से किसान अनेक संसाधनों जैसे – समय, धन, श्रम, ईधन, पोषक तत्व, पानी आदि की बचत कर सकते हैं। जीरो टिलेज से बोई गई गेहूं (Wheat) में मंडूसी / गेहूँ का मामा / गेहूँसा, पाउडरी मिल्ड्यू (चूर्णिला आसिता) करनाल बंट और दीमक आदि का प्रकोप भी कम होता है।
बेड प्लांटर
इस विधि में मल्टी क्रॉप बेड प्लांटर द्वारा बुवाई उठी हुई शैय्या पर की जाती है। इस विधि में बीज और उर्वरक का प्रयोग एक साथ किया जाता है। पानी की 25% तक बचत की जा सकती है।
टर्बो / हैप्पी सीडर
यह मशीन धान के खेतों में फसल अवशेषों के प्रबंधन के लिए विकसित की गई है। यह मशीन भी रोटरी टिलेज प्रणाली पर आधारित है। इस मशीन के आगे लगे फलेल 1500 आर पी एम पर घूमते हैं तथा धान के पुआल / पराली के अवशेषों को काटकर मिट्टी में मिलाते हैं तथा पीछे लगी ड्रिल के माध्यम से बीज व खाद डाली जाती है। उत्तर पश्चिमी मैदानी क्षेत्र में किसान धान के फसल अवशेषों को जलाते हैं जिससे वायुमंडल प्रदूषित तो होता है, साथ ही ऊपरी सतह की नमी भी खत्म हो जाती है।
फसल अवशेषों के जलाने से भूमि संरक्षण में बहुत ही उपयोगी काबर्निक (ऑर्गेनिक) स्रोत भी नष्ट हो जाते हैं। अतः पराली या फसल अवशेष को जलाएं नहीं अपितु इसे खाद के रूप में प्रयोग करके मृदा स्वास्थ्य में सुधार करें। यह मशीन एक घंटे में लगभग एक एकड़ खेत की बुवाई कर देती है।
रोटरी ड्रिल
इस तकनीक द्वारा गेहूं (Wheat) की बुवाई रोटरी टिल ड्रिल से की जाती है। यह मशीन एक बार में ही खेत की तैयारी, खाद व बीज डालना तथा पाटा लगाना जैसी सस्य क्रियाएं करती है। इस तकनीक के अंगीकरण से समय, श्रम व डीजल की बचत होती है साथ ही किसान अधिक उपज के साथ-साथ लगभग ढाई हजार रुपये प्रति हैक्टर तक की बचत कर सकते हैं। इस मशीन को चलाने के लिए कम से कम 45 अश्व शक्ति (हार्स पावर) के ट्रैक्टर की आवश्यकता होती है।
गेहूं में खाद और उर्वरक प्रबंधन (Manure and Fertilizer Management)
सिंचित क्षेत्र, समय पर बुवाई
उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर करना उचित है। संस्तुत मात्रा 150:60:40:30 किग्रा नत्रजन, फास्फोरस, पोटाश और सल्फर प्रति हैक्टर है। एक तिहाई नत्रजन तथा सम्पूर्ण फास्फोरस, पोटाश एवं सल्फर बुवाई के समय पर प्रयोग करें। एक तिहाई नत्रजन पहली सिंचाई पर तथा शेष एक तिहाई नत्रजन दूसरी सिंचाई पर डालनी चाहिए।
सिंचित क्षेत्र, देर से बुवाई
नत्रजन, फास्फोरस, पोटाश और सल्फर की संस्तुत मात्रा 120:60:40:20 किग्रा प्रति हैक्टर दें। एक तिहाई नत्रजन तथा सम्पूर्ण फॉस्फोरस, पोटाश एवं सल्फर बुवाई के समय प्रयोग करें। एक तिहाई नत्रजन पहली सिंचाई पर तथा शेष एक तिहाई नत्रजन दूसरी सिंचाई पर डालनी चाहिए।
वर्षा आधारित बुवाई
नत्रजन, फास्फोरस, पोटाश और सल्फर की संस्तुत मात्रा 80:40:30:20 किग्रा प्रति हैक्टर की दर से बुवाई के समय ही डाल देनी चाहिए। अन्य पोषक तत्व मिट्टी की जांच के आधार पर प्रयोग करना चाहिए।
गेहूं फसल में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management)
सामान्यतः गेहूं की फसल (Wheat Crop) के लिए 3-6 सिंचाई की आवश्यकता होती है। पानी की उपलब्धता और पौधों की आवश्यकतानुसार सिंचाई करनी चाहिए। शीर्ष जड़ें निकलने (क्राउन रूट इनिशियेशन) एवं बाली बनते समय (हेडिंग) ऐसी क्रॉंन्तिक अवस्थाएं हैं, जहां नमी की कमी का प्रतिकूल प्रभाव उत्पादन पर अधिक पड़ता है। अतः इन अवस्थाओं पर सिंचाई करना अनिवार्य होता है।
अगर मार्च के शुरूआत में तापमान सामान्य से अधिक बढ़ने लगे तो हल्की सिंचाई देना लाभदायक है। फव्वारा विधि द्वारा सिंचाई करने पर पानी की बचत होती है, अतः किसानों को फव्वारा विधि अपनानी चाहिए।
गेहूं फसल में खरपतवार प्रबंधन (Weed Management)
गेहूं (Wheat) में प्रमुख रूप से संकरी पत्ती वाले खरपतवार जैसे – मंडूसी / कनकी / गुल्ली डंडा, जंगली जई, पोआ घास, लोमड़ घास एवं चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार जैसे – बथुआ, खरथुआ, जंगली पालक, मैना, मैथा, सोंचल / मालवा, मकोय, हिरनखुरी, कंडाई, कृष्णनील, प्याजी, चटरी-मटरी इत्यादि पाये जाते हैं। इनकी रोकथाम के लिए निम्नलिखित खरपतवार नाशियों की संस्तुति की जाती है, जैसे-
खरपतवारनाशी | खरपतवार नियंत्रण | मात्रा /प्रति एकड |
क्लोडिनाफॉप* (टोपिक/पॉइंट/ झटका) | संकरी पत्ती | 160 ग्राम |
पिनोक्साडेन* (एक्सिल 5 ई.सी.) | संकरी पत्ती | 400 मि.ली. |
फिनोक्साप्रॉप (प्युमा पॉवर) | संकरी पत्ती | 400 मि.ली. |
मैटसल्फ्यूरॉन* (एलग्रीप) | संकरी पत्ती | 8 ग्राम |
कारफेन्ट्राजोन* (एफीनीटि) | संकरी पत्ती | 20 ग्राम |
2,4-डी * (वीडमार) | संकरी पत्ती | 500 मि.ली. |
आईसोप्रोट्यूरॉन* (आईसोगार्ड 75 डब्ल्यू.पी.) | संकरी व चौड़ी पत्ती | 500 ग्राम |
सल्फोसल्फ्यूरॉन** (लीडर / एस.एफ. 10 / सफल | संकरी व चौड़ी पत्ती | 13 ग्राम |
सल्फोसल्फ्यूरॉन+मैटसल्फ्यूरॉन (टोटल** / वेस्टा**) | संकरी व चौड़ी पत्ती | 16 ग्राम |
मिसोसल्फ्यूरॉन+आइडोसल्फ्यूरॉन (अटलांटिस*) | संकरी व चौड़ी पत्ती | 160 ग्राम |
फिनोक्साप्रॉप+मेट्रीब्यूजीन (एकार्ड प्लस*) | संकरी व चौड़ी पत्ती | 500–600 मि.ली. |
पेन्डीमैथालीन** (स्टॉम्प ) | संकरी व चौड़ी पत्ती | 1250-1500 मि.ली. |
** बुवाई के 20-25 दिन के बाद ( पहली सिंचाई से पहले) या बुवाई के 30-35 दिन बाद (सिंचाई के बाद) प्रयोग करें।
*** बुवाई के 3 दिन तक 120-150 लीटर प्रति एकड़ पानी में घोलकर छिड़काव करें।
गेहूं में फसल सुरक्षा (Crop Protection in Wheat)
बीजोपचार: किसान अधिकतर अपना ही बीज उगाते हैं या अपने साथी किसानों से लेते है। अतः बीज का उपचार अवश्य करना चाहिए। इसके लिए एक किलोग्राम बीज को कार्बोक्सिन (Carboxin) (विटावेक्स 75 डब्ल्यू. पी. 2.5 ग्राम) या टेबुकोनाजोल (Tebuconazole) (रैक्सिल 2 डी. एस. 1.0 ग्राम) या कार्बेन्डाजीम (Carbendazim) ( बाविस्टीन 50 डब्ल्यू. पी 2.5 ग्राम) या विटावेक्स (Vitavax) (75 डब्ल्यू. पी. 1.25 ग्राम) और बायोएजेन्ट कवक (ट्राइकोडरमा विरीडी 4 ग्राम) मिलाकर उपयोग करें।
फफूंदी नाशकों द्वारा बुवाई से एक या दो दिन पहले बीजोपचार करना चाहिए। समन्वित प्रबंधन के अर्न्तगत बीज का उपचार ट्राइकोडरमा विरीडी (Trichoderma viride) द्वारा बुवाई के 72 घंटे पहले करने के साथ ही उसी बीज को फफूंदनाशक से बुवाई के 24 घंटे पहले उपचारित करें। ट्राइकोडरमा विरीडी से बीजोपचार करने से बीज अंकुरण भी अच्छा होता है तथा बाद की अवस्थाओं में रोगों से बचने की क्षमता भी बढ़ जाती है।
चेपा: यह रस चूसने वाला कीट है। यदि यह बहुत ज्यादा मात्रा में हो तो यह पत्तों के पीलेपन या उनको समय से पहले सुखा देता है। इसकी रोकथाम के लिए 2 मिली डाईमेथोएट 30 ई.सी. प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
दीमक: दीमक का प्रकोप फसल में किसी भी अवस्था में हो सकता है। ग्रसित पौधों की जडों को आसानी से उखाड़ा जा सकता है। इसकी रोकथाम के लिए हल्की मृदाओं में क्लोरपाइरीफॉस 20 ई.सी. को 2400 मिली तथा भारी मृदाओं में 4 किलो ग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से सिंचाई के साथ प्रयोंग करना चाहिए।
चूहे: चूहों के नियंत्रण के लिए 3-4 ग्राम जिंक फॉस्फाईड ( Zinc phosphide) को एक किग्रा आटा, थोडा सा गुड़ व तेल मिलाकर छोटी-छोटी गोली बना लें एवं इन गोलियों को उनको चूहों के बिलों के पास रखें। यदि चूहे आकर्षित नहीं हों तो जिंक फास्फाईड रखने से पहले दिन चूहे के बिलों के पास कटे हुए केले या अमरूद के टुकड़े रख दें ताकि दूसरे दिन भी चूहे आकर्षित होकर जिंक फास्फाईड को खाएं।
तना छेदक मक्खी एवं थ्रिप्स: इनके नियंत्रण के लिए गेहूं (Wheat) की बुवाई मध्य नवम्बर से मध्य दिसम्बर तक करनी चाहिए। खड़ी फसल में प्रकोप होने पर मोनोक्रोटोफॉस 36 प्रतिशत एस एल 1.5 मिली प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।
अनावृत कण्डवा: यह बीज से होने वाली बीमारी है। बालियां बनने के समय कम तापमान और अधिक नमी इसके लिए अनुकूल होते हैं। इस बीमारी की रोकथाम के लिए 2 ग्राम वीटावैक्स 75 डब्लयू पी प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचार कर बुवाई करनी चाहिए ।
रोली रोग: रोली रोग के नियंत्रण के लिए रोली रोधक किस्मों जैसें राज 4083, राज 1482, राज 4120 आदि की बुवाई करनी चाहिए | यदि फसल में रोली रोग का प्रकोप दिखाई दे तो मैन्कोजेब 3 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर फसल में 10 से 15 के अन्तराल में छिड़काव करना चाहिए ।
करनाल बंट: यह बीज और मिट्टी दोनो से होने वाली बीमारी है। इसकी शुरुआत बालियां बनने के समय होती है। यदि उत्तरी भारत के समतल क्षेत्रों में फरवरी महीने के दौरान बारिश होती है, तो इस बीमारी के कारण बहुत ज्यादा नुकसान होता है। इस बीमारी की रोकथाम के लिए करनाल बंट की रोधक किस्मों का प्रयोग करें और बालियां निकलने के समय 2 ग्राम प्रोपीकोनाजोल 25 ई सी प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
मोल्या रोग: यह सूत्रकृमिजनित रोग है। इस रोग से ग्रस्त गेहूं (Wheat) के पौधे छोटे रहकर पीले पड़ जाते है और जड़ों में गांठ बन जाती है। रोग की रोकथाम के लिए 1 या 2 साल तक गेहूँ की फसल उस खेत में न लें। इनके स्थान पर जौ की मोल्या रोग रौधी आर.डी. 2052 किस्म काम में लें या फसल चक्र में चना, सरसों, प्याज,सूरजूमुखी, मैथी, आलू या गाजर की फसल बोयें।
रोग की रोकथाम हेतु मई-जून की कड़ी गर्मी में एक पखवाड़े के अन्तर से खेतों में दो बार गहरी जुताई करें। जिन खेतों में रोग का अधिक प्रकोप हो बुवाई से पहले 30 किग्रा कार्बोफ्यूरोन 3 प्रतिशत कण प्रति हैक्टेयर की दर से 20 किग्रा यूरिया के साथ भूमि में डालें।
गेहूं कटाई, मड़ाई और भंडारण (Harvesting, Threshing and Storage)
जब दानों में लगभग 20% नमी रह जाए तब फसल हाथ से कटाई के लिए उपयुक्त मानी जाती है। शीघ्र कटाई के लिए कम्बाइन हार्वेस्टर का प्रयोग करना चाहिए और दाने में नमी 14% से कम होनी चाहिए। फसल को पूरी तरह से पकने पर ही काटें तथा गेहूं (Wheat) का बंडल सावधानीपूर्वक बनाऐं। अधिक सूखने पर दाने बिखरने का खतरा रहता है। फसल पकते ही सुबह कटाई करें।
अनाज को भण्डारण से पहले अच्छी तरह सुखा लें। इसके लिए अनाज को त्रिपाल अथवा प्लास्टिक की चादरों पर फैलाकर तेज धूप में अच्छी तरह सुखा लें ताकि दानों की नमी की मात्रा 12% से कम हो जाए। भंडारण के लिए जी.आई. शीट की बनी बिन्स (कोठियां एवं साईलों) का प्रयोग करना चाहिए। अनाज की कीडों से रक्षा के लिए एल्यूमीनियम फॉस्फाईड की एक टिकिया लगभग 10 कुंतल गेहूं (Wheat) में रखनी चाहिए। जिससे गेंहूँ खराब नहीं होगा एवं भण्डारण में कीट नहीं लगेंगे।
गेहूं की फसल से उपज (Yield From Wheat Crop)
गेहूं की फसल (Wheat Crop) से उपज किस्म के चयन, खाद और उर्वरक के उचित प्रयोग और फसल की देखभाल पर निर्भर करती है| लेकिन सामान्यत: उपरोक्त वैज्ञानिक तकनीक से खेती करने पर सिंचित क्षेत्रों में समय से बुवाई करने पर 55-70 क्विंटल तथा देर से बुवाई करने पर 40-65 क्विंटल प्रति हैक्टर पैदावार प्राप्त होती है।
गेहूं की खेती के लिए ध्यान देने योग्य बिंदु (Points to Be Noted for Wheat Cultivation)
- हमेशा खरपतवार रहित गेहूं (Wheat) के बीज का उपयोग करें।
- खरपतवारनाशी की सही मात्रा, सही समय व उपयुक्त तकनीक द्वारा छिड़काव करें।
- गेहूं (Wheat) में खरपतवारनाशी को अदल-बदल कर उपयोग में लाएं।
- फसल-चक्र में चारे वाली फसलें जैसे बरसीम, जई आदि का समायोजन अवश्य करें।
- उपयुक्त छिड़काव करने के लिए फ्लैट फेन नोजल का प्रयोग करें।
- मंडूसी का प्रभाव कम करने के लिए शून्य कृषण (जीरो टिलेज) द्वारा अगेती बुवाई करें।
- शाकनाशी प्रतिरोधकता नियंत्रण के लिए ग्लाइफोसेट + पेन्डीमैथालीन का प्रयोग शून्य कृषण द्वारा बुवाई से पूर्व करें।
- अधिक असर के लिए सल्फोसल्फ्यूरॉन या सल्फोसल्फ्यूरॉन + मैटसल्फ्यूरॉन को पहली सिंचाई से पहले उपयोग करें।
- जहाँ भी क्लोडिनाफॉप व सल्फोसल्फ्यूरॉन से प्रतिरोधकता आ गई है, वहाँ पेन्डीमैथालीन, एकार्ड प्लस और पिनोक्साडेन का उपयोग करें।
- एकार्ड प्लस का प्रयोग पी बी डब्ल्यू 550 एवं डब्ल्यू एच 542 किस्मों में नहीं करें।
- क्लोडिनाफॉप / फिनोक्साप्रॉप / पिनोक्साडेन को 2, 4-डी के साथ नहीं मिलाएं, 2, 4-डी का छिड़काव पहले छिड़काव के एक सप्ताह के पश्चात करें।
- छिड़काव बुवाई के 30-35 दिन तक ही कर दें।
- खरपतवारनाशी की संस्तुत मात्रा से कम या अधिक मात्रा का प्रयोग नहीं करें।
- खरपतवार के बीज गेहूं (Wheat) की फसल में नहीं पनपने दें।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
चीन गेहूं (Wheat) का सबसे बड़ा उत्पादक है, उसके बाद भारत, रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका हैं।
उत्तर प्रदेश भारत का सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक राज्य है।
गेहूं उत्पादन में भारत का दूसरा स्थान है। भारत में प्रमुख गेहूं (Wheat) उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार और गुजरात हैं।
पंजाब को भारत का गेहूं (Wheat) का कटोरा कहा जाता है। उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा भारत के प्रमुख गेहूं उत्पादक राज्य हैं। भारत के गेहूं उत्पादन में इनका योगदान 70 प्रतिशत से अधिक है।
गेहूं रबी की फसल है, जो सर्दी के मौसम में उगाई जाती है। गेहूं की बुआई अक्टूबर से दिसंबर में होती है और कटाई फरवरी से मई के दौरान होती है। भारत में गंगा के मैदान गेहूं उगाने के लिए सबसे अनुकूल क्षेत्र हैं। ठंडी सर्दियाँ और तेज़ गर्मी गेहूं (Wheat) की अच्छी फसल के लिए उत्तम परिस्थितियाँ हैं।
वसंत गेहूं को उगाने में लगभग 100-130 दिन लगते हैं, जबकि शीतकालीन गेहूं उगाने में लगभग 180-250 दिन लगते हैं। शीतकालीन गेहूं (Wheat) की वृद्धि के समय में ठंड के महीनों के दौरान 90 दिन तक का समय शामिल है जब यह सुप्त अवस्था में होता है।
एक अच्छे वर्ष में एक एकड़ भूमि से लगभग 20-25 क्विंटल गेहूं (Wheat) की पैदावार होती है। यह फसल के प्रकार, मिट्टी की उर्वरता, जलवायु और अन्य कारकों पर निर्भर करता है।
गेहूं की फसल (Wheat Crop) के लिए इष्टतम पीएच 5.5 और 7.5 (थोड़ी अम्लीय और तटस्थ मिट्टी) के बीच है। कम मिट्टी की उर्वरता और उच्च लवणता गेहूं उगाने के लिए हानिकारक मिट्टी की स्थितियाँ हैं।
गेहूं (Wheat) की सभी किस्में अच्छे जल निकास वाली दोमट मिट्टी में सबसे अच्छी तरह उगती हैं। दोमट मिट्टी वह होती है जो अधिकतर रेत, गाद और थोड़ी मात्रा में मिट्टी से बनी होती है।
गेहूं की खेती के लिए 14 डिग्री से 18 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान की आवश्यकता होती है। इससे अधिक तापमान फसल की खेती के लिए हानिकारक है। गेहूं (Wheat) की खेती के प्रारंभिक चरण में ठंडी और नमी युक्त जलवायु की आवश्यकता होती है, जबकि कटाई के समय गर्म और उज्ज्वल जलवायु की आवश्यकता होती है।
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