Zero tillage wheat farming in Hindi: अधिकतर धान फसल की कटाई के उपरान्त उसी खेत में गेहूं की बिना जुताई सीड ड्रिल द्वारा बुआई करने की विधि को गेहूं की जीरो टिलेज तकनीक कहते हैं। जिससे उर्वरक और बीज एक साथ प्रयोग किये जा सकते है। जिन क्षेत्रों की मिट्टी भारी होने के कारण निम्न जलनिकास, उच्च जलधारण क्षमता और अधिक नमी की वजह से जुताई में कठिनाई और देलों के निर्माण आदि के कारण खेत तैयारी में 15 से 45 दिनों की देरी होती है।
जिससे बिलम्ब से बुआई (10 दिसम्बर के बाद) के कारण अच्छी लागत के बावजूद उपज 30-35 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर प्रतिदिन की कमी दर्ज की गई है। बिलम्ब से बुआई के कारण फसल कटनी के समय तापमान अधिक हो जाता जिससे उत्पादकता में कमी आती है। खेत की तैयारी और बुआई की परम्परागत पद्धति के विपरित जीरो टिलेज (Zero Tillage) तकनीक अपनाने से न केवल बुआई के समय में 15-20 दिनों की बचत सम्भव है। बल्कि उत्पादकता का उच्च स्तर बरकरार रखते हुए खेत की तैयारी पर आने वाली लागत पूर्णतः बचायी जा सकती है।
शून्य जुताई से गेहूं की खेती के लिए जलवायु (Climate for Zero Tillage Wheat Cultivation)
गेहूं के अंकुरण के लिये साधारणतया निम्नतम तापक्रम 3.5 से 5.5 डिग्री सेल्सियस, इष्टतम तापमान 20-25 डिग्री सेल्सियस तथा अधिकतम तापमान 35 डिग्री सेल्सियस है और पौधे की बढ़वार के लिये इष्टतम तापमान 25 डिग्री सेल्सियस और अधिकतम तापमान 30-32 डिग्री सेल्सियस उपयुक्त होता है।
शून्य जुताई से गेहूं की खेती के लिए भूमि का चुनाव (Selection of Land for Wheat Cultivation with Zero Tillage)
गेहूं की खेती विभिन्न प्रकार की मिट्टीयों में की जा सकती है परंतु दोमट मिट्टी गेहूं की खेती के लिये सर्वोत्तम होती है। रेतीली मिट्टी जिसमें जल धारण क्षमता तथा जीवाष्म की मात्रा कम होती है, गेहूं की खेती के लिये उपयुक्त नही होती। गेहूं की अच्छी फसल के लिये मिट्टी अम्लीय और क्षारीय नहीं होनी चाहिये।
गेहूं खेती की जीरो टिलेज विधि क्या है? (What is Zero Tillage Method of Wheat Farming?)
जीरो टिलेज विधि से गेहूं लगाने वाली भूमि की जुताई नहीं की जाती है। गेहूं की बुआई के लिए एक मशीन जिसे जीरो टील (Zero Tillage) ड्रील मशीन करते हैं, प्रयुक्त होती है जिससे गेहूं की बुआई 2-3 सेमी गहराई पर करना बहुत आसान होता है। इस मशीन में मिट्टी चीरने वाले 9 या 11 भालानुमा फार 22 सेमी की दूरी पर लगे होते हैं और इसे ट्रैक्टर के पीछे मोड़कर चलाया जाता है।
जीरो टील (Zero Tillage) विधि में उपयोग होने वाली मशीन में रोटावेटर सह सीडड्रिल या रोटावेटर सह फसीडड्रिल का प्रयोग किया जाता है। जिसमें घूमने वाला जुताई का फार लगा रहता है। साथ ही इस मशीन में बीज डालने और खाद डालने के लिये सीडड्रिल या फर्टीलाईजर का बॉक्स तथा पाटा भी लगा रहता है। मशीन अपने घूमने वाले फार से खेत की मिट्टी में चीरा बनाते हुये बीज को उचित गहराई पर डालकर पाटा भी एक साथ ही लगाते हुये आगे बढ़ता है और एक ही बार में तीन कार्य सम्पन्न होता है।
जीरो टिलेज गेहूं की संरक्षित खेती क्या है? (What is Protected Cultivation of Zero Tillage Wheat?)
गेहूं की जीरो टिलेज (Zero tillage of wheat) संरक्षित कृषि का तात्पर्य प्राकृतिक संसाधनों के ऐसे तकनीकी प्रबंधन से है जिसके द्वारा अधिकतम् फसल उत्पादन के स्तर को बनाये रखते हुये प्राकृतिक संसाधनों जैसे मृदा स्वास्थ्य, मृदा जल और पर्यावरणीय संतुलन भी बना रहे ताकि वर्तमान पीढ़ी की आवश्यकताओं को पूरा करने के साथ-साथ भावी पीढ़ी के लिये भी अपने से बेहतर वातावरणीय परिस्थिति की सुनिश्चित की जा सके।
प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण से क्या तात्पर्य है? (What is Meant by Conservation of Natural Resources?)
यदि खेत को समतल न रखा जाये तो फसलों के द्वारा इनपुट का उपयोग ठीक से नहीं हो पाता है। अतः खेत का समतलीकरण बहुत आवश्यक है। इस हेतु लेजर लैण्ड लेवलर का प्रयोग किया जा सकता है। इसमें खेत को +2 सेमी की औसत ऊंचाई के साथ ऊंची स्थान को खरोचकर तथा निचली भूमि की इसमें भराई कर समतल किया जाता है।
इससे फसलों की उचित पौध संख्या, एक समान खाद और पानी का वितरण एवं एक समान फसलों की बढ़वार होती है। इससे खेतों की मेड़ की आकार तथा संख्या को कम कर फसल हेतु 3-6% तक अधिक स्थान प्राप्त किया जा सकता है।
गेहूं की शून्य जुताई क्या है (What is Zero Tillage of Wheat)
इस तकनीक में गेहूं के बीज और उर्वरक को उचित गहराई पर बिना जुते खेतों में बुआई की जाती है। इसमें जीरो सीड ड्रील के द्वारा धान की कटाई के पश्चात एक पतला चीरा लगाया जाता है, जिसमें नाईफ टाईप फरो ओपनर लगे होते हैं। इससे खेत तैयारी का समय तथा इसमें आने वाले खर्च को बचाया जा सकता है। इसमें समय पर तथा देरी से बुवाई की जाने वाली किस्मों का उपयोग किया जा सकता है।
गेहूं की फसल अवशेषों के साथ बुआई (Sowing with Wheat Crop Residues)
सामान्यत: धान-गेहूं फसल चक्र में गेहूं की बुआई के पहले धान के अवशेषों को जला दिया जाता है। जिसमें वायु प्रदूषण, मृदा की जैव विविधता में कमी, उपजाऊपन में कमी, तथा महत्वपूर्ण जैविक कार्बन तथा पोषक तत्वों में कमी पाई जाती है। अतः फसल अवशेषों को न जला कर मृदा की सतह पर ही छोड़ना चाहिए, जिससे खरपतवारों की संख्या में कमी, नमी को संचित, तापमान की विविधता में कमी तथा मृदा स्वास्थ्य में वृद्धि की जा सकती है।
गेहूं की शून्य जुताई के लिए किस्में (Varieties of Wheat for Zero Tillage)
सिंचित समय पर बुवाई: एचआई 1544, जीडब्ल्यू 366, जीडब्ल्यू 273, कंचन, एचडी 2733 आदि।
सिंचित पछेती बुवाई: एचडी 2932, एचडी 2868, एमपी 4010, डीएल 788-2, एमपीओ 1203 आदि।
असिंचित समय पर बुवाई: एचआई 1531, एचआई 1500, एचडब्ल्यू 2004 आदि।
गेहूं की खेती के लिए बीज उपचार (Seed Treatment for Wheat Cultivation)
जीरो टिलेज (Zero Tillage) गेहूं की खेती के लिए बुवाई के पूर्व बीज की अंकुरण क्षमता की जांच अवश्य कर लेनी चाहिये। बीज यदि उपचारित नही है, तो बुवाई के पूर्व बीज को फफूंदी नाशक दवा थीरम 3 ग्राम प्रति किलो बीज से अवश्य उपचारित कर लें।
गेहूं की शून्य जुताई के लिए बीज दर और बुवाई (Seed Rates and Sowing for Zero Tillage of Wheat)
शून्य जुताई (Zero Tillage) गेहूं की खेती के लिए सिंचित अवस्था में बीज दर 100 किग्रा प्रति हेक्टेयर और विलम्ब सिंचित अवस्था में 125 किग्रा प्रति हेक्टेयर उपयुक्त रहता है।
गेहूं की शून्य जुताई में उर्वरक की मात्रा और प्रयोग (Quantity and Use of Fertilizer in Zero Tillage of Wheat)
गेहूं की शून्य जुताई (Zero Tillage) फसल से अच्छी उपज के लिये संतुलित मात्रा में उर्वरकों का व्यवहार जैविक खाद के साथ करना लाभप्रद होता है, जैसे-
असिंचित अवस्था: 40:30:20 किग्रा प्रति हेक्टेयर नत्रजन, स्फूर और पोटाश उर्वरक की मात्रा का प्रयोग करें।
प्रयोग की विधि और समय: नत्रजन, स्फूर और पोटाश की पूरी मात्रा अर्थात् 65 किग्रा यूरिया, 65 किग्रा डीएपी एवं 33 किग्रा म्यूरेट ऑफ पोटाश का उपयोग प्रति हेक्टेयर के दर से बुआई के पूर्व करें। वर्षा होने पर खड़ी फसल में 20 किग्रा नत्रजन अर्थात् 45 किग्रा यूरिया प्रति हेक्टेयर की दर से उपरिवेशन करें।
सिंचित अवस्था (सामान्य समय से): 120:60:40 किग्रा प्रति हेक्टेयर नत्रजन, स्फूर और पोटाश उर्वरक की मात्रा का प्रयोग करें।
प्रयोग की विधि और समय: नत्रजन की आधी तथा स्फूर और पोटाश की पूरी मात्रा अर्थात् 130 किग्रा डीएपी 80 किग्रा यूरिया एवं 67 किग्रा नत्रजन अर्थात् 130 किग्रा यूरिया को दो बराबर भागों में प्रथम सिंचाई के बाद और गामा के समय प्रति हेक्टेयर के दर से व्यवहार करें।
सिंचित अवस्था (विलम्ब से): 80:40:20 किग्रा प्रति हेक्टेयर नत्रजन, स्फूर और पोटाश उर्वरक की मात्रा का प्रयोग करें।
प्रयोग की विधि और समय: नत्रजन की आधी मात्रा तथा स्फूर और पोटाश की पूरी मात्रा अर्थात् 87 किग्रा यूरिया एवं 33 किग्रा म्यूरेट ऑफ पोटाश का व्यवहार बुआई के समय तथा 40 किग्रा नत्रजन अर्थात 87 किग्रा यूरिया का व्यवहार गाभा के समय करें।
गेहूं की शून्य जुताई में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management in Zero Tillage of Wheat)
गेहूं की शून्य जुताई (Zero Tillage) की फसल में पानी एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है, इसका उपयुक्त उपयोग बहुत आवश्यक है। अन्यथा प्रति इकाई जल की कार्यक्षमता कम होगी। सामान्यत: 280-420 मिमी प्रति हेक्टेयर जल गेहूं की फसल के लिए पर्याप्त होता है। इसके बावजूद पानी की उपलब्धता के आधार पर सिंचाई की संख्या का निर्धारण करने से अधिकतम लाभ प्राप्त होता है। जल उपलब्धता के आधार पर आप सिंचाई कलेन्डर आप इस प्रकार रख सकते है, जैसे-
प्रथम सिंचाई: बुवाई के 21 दिन बाद शीर्ष जड़ निकलने के समय।
द्वितीय सिंचाई: बुवाई के 45 दिन बाद कल्ले निकलते के समय।
तृतीय सिंचाई: बुवाई के 65 दिन बाद वृद्धि के समय।
चतुर्थ सिंचाई: बुवाई के 85 दिन बाद गामा के समय।
पंचम सिंचाई: बुवाई के 105 दिन बाद दानें में दूध बनते समय।
छठीं सिंचाई: बुवाई के 120 दिन बाद दाने की पकने की अवस्था में।
सूक्ष्म सिंचाई से सिंचाई करने पर सिंचाई की अवधि तथा सिंचाई की संख्या को कम किया जा सकता है। संरक्षित खेती में निश्चित ही अवधि तथा संख्या में कमी आती है और पानी की बचत होती है।
गेहूं की शून्य जुताई फसल में खरपतवार प्रबंधन (Weed Management in Zero Tillage Wheat Crop)
खरपतवारनाशी | मात्रा प्रति हेक्टेयर | उपयोग का समय | टिप्पणी/नियंत्रण |
पेण्डीमिथिलीन (30 ईसी) पेण्डीमिथिलीन (38.7 ईसी) | 1 कि.ग्रा. 10.68 कि.ग्रा. | बुवाई के 0-3 दिनों के भीतर | सकरी और कुछ चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार |
मेटसल्फ्युरान | 4 ग्राम | 25-30 दिन बाद | चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार |
कारफेन्ट्रा जोन | 20 ग्राम | 25-30 दिन बाद | चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार |
सल्फोसल्फ्युरान | 25 ग्राम | 25-30 दिन बाद | सकरी एवं कुछ चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार |
क्लोडिनोफॉप | 60 ग्राम | 25-30 दिन बाद | सकरी पत्ती वाले खरपतवार |
पिनाक्साडेन | 50 ग्राम | 25-30 दिन बाद | सकरी पत्ती वाले खरपतवार |
क्लोडिनोफाप+ मेटसल्फ्युरान | 60+4 ग्राम | 25-30 दिन बाद | सकरी एवं कुछ चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार |
मिजोसल्फ्युरान+आइडोसल्फ्युरान | 12+2.4 ग्राम | 25-30 दिन बाद | सकरी एवं कुछ चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार |
सल्फोसल्फ्युरान+मेटसल्फ्युरान | 30+2 ग्राम | 25-30 दिन बाद | सकरी एवं कुछ चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार |
मेट्रीबुजिन + क्लोडिनोफाप | 210+60 ग्राम | 25-30 दिन बाद | सकरी एवं कुछ चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार |
गेहूं की शून्य जुताई फसल की सुरक्षा (Zero Tillage Crop Protection of Wheat)
गेहूं की शून्य जुताई (Zero Tillage) फसल में मौसम, किस्म तथा जलवायु के हिसाब से कुछ विशेष प्रकार के कीट और बीमारियों का प्रकाप होता है। अतः उपयुक्त किस्म के चुनाव के साथ ही साथ कीटनाशी एवं फफूंद नाशी का चयन आवश्यक है, क्योंकि जुताई की अनुपस्थिति के कारण खेती में खरपतवार, कीट और रोगों की समस्या चुनौतीपूर्ण हो सकती है। इन मुद्दों को कम करने के लिए उचित फसलचक्र और एकीकृत कीट प्रबंधन प्रथाओं का पालन किया जाना चाहिए।
गेहूं फसल की कटाई, सफाई और संग्रहण (Wheat Crop Harvesting, Cleaning and Storage)
जब गेहूं की फसल में दानों की नमी 25% तक रह जाती है, तो कटाई की जा सकती है। सामान्यत: दानों का नुकसान, मानव श्रम की अनुपलब्धता और समय की बचत हेतु कम्बाईन हार्वेस्टर के द्वारा फसल की कटाई की जा सकती है। सुबह का समय कटाई के लिए उपयुक्त होता है। यदि मानव श्रम के द्वारा कटाई की गई है, तो थ्रेसर का उपयोग कर सफाई करें और दानों में 12% तक नमी होने पर ही संग्रहण करें।
संग्रहण हेतु ईडीबी 5 ग्राम प्रति टन उपचारित करें एवं 24 घंटे संग्रहित क्षेत्र को सील करें, जिससे संग्रहण कीट से बचाया जा सकता है। एल्युमीनियम फास्फाइड 3 ग्राम प्रति टन का भी उपयोग किया जा सकता है।
गेहूं की शून्य जुताई खेती के लिए निर्देश (Instructions for Zero Tillage Cultivation of Wheat)
- जो किस्म क्षेत्र विशेष के लिए अनुसंशित है, का ही प्रयोग करना चाहिए।
- समय पर बुआई करना चाहिए। देरी से बुआई से बचना चाहिए, जिससे अंतिम समय में होने वाले विषम परिस्थितियों से बचा जा सकें।
- बिना अनुशंसा के अन्य क्षेत्र की अनुसंशित किस्म से बचना चाहिए. जिससे कीट तथा बीमारियों से बचा जा सकता है।
- उचित मात्रा में खाद, उर्वरक, पानी, खरपतवारनाशी तथा कीट एवं फफूंद नाशी का प्रयोग।
- उचित समय में फसल की कटाई जिससे बिखराव तथा अन्य नुकसान से बचा जा सके।
- उचित संग्रहण कर कटाई उपरांत होने वाले नुकसान से बचा जा सके।
शून्य जुताई से गेहूं की खेती के लाभ (Benefits of Wheat Cultivation with Zero Tillage)
अधिक पैदावार: शून्य जुताई (Zero Tillage) से फसल की समय पर बुआई, उर्वरकों का समुचित प्रबंधन और लाभकारी सूक्ष्मजीवों के विकास को बढ़ावा देकर गेहूं की पैदावार बढ़ाई जा सकती है। पारंपरिक जुताई की तुलना में शून्य जुताई से गेहूं की पैदावार लगभग 5-10 प्रतिशत तक बढ़ सकती है।
कम लागत: शून्य जुताई (Zero Tillage) से भूमि की तैयारी के लिए आदान की लागत काफी कम हो सकती है, जिसके परिणामस्वरूप लगभग 40 प्रतिशत की बचत होती है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि इसमें जुताई की कोई आवश्यकता नहीं होती है।
पानी का कुशल उपयोग: शून्य जुताई (Zero Tillage) से मृदा में बची हुई नमी का प्रभावी ढंग से उपयोग किया जा सकता है। इससे सिंचाई की आवश्यकता कम हो जाती है। आवश्यक सिंचाई जल की मात्रा को 40 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है।
मृदा स्वास्थ्य में सुधार: शून्य जुताई (Zero Tillage) मृदा में शुष्क पदार्थ और कार्बनिक पदार्थों के संचय को बढ़ावा देती है। इससे मृदा के स्वास्थ्य और उर्वरता में वृद्धि होती है तथा फसल की पैदावार बेहतर होती है। इससे पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ती है।
पर्यावरणीय लाभ: शून्य जुताई (Zero Tillage), पर्यावरण की दृष्टि से सुरक्षित है। यह कार्बन पृथक्करण के माध्यम से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करता है। इसके अतिरिक्त यह मृदा के संघनन और अपवाह द्वारा पानी की हानि को कम करता है तथा मिट्टी के कटाव को रोकता है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
भारत में जीरो टिलेज के जनक डॉ. सुभाष पालेकर हैं। वह एक भारतीय कृषक और समाज सुधारक हैं जिन्होंने शून्य बजट प्राकृतिक खेती (ZBNF) की प्रणाली विकसित की।
शून्य जुताई (Zero Tillage) सीधी बुआई वाले चावल, मक्का, सोयाबीन, कपास, अरहर, मूंग, ग्वारपाठा, बाजरा के लिए खरीफ मौसम में और गेहूं, जौ, चना, सरसों और मसूर के लिए रबी मौसम में बेहतर साबित होती है।
शून्य जुताई से तात्पर्य उस कृषि योग्य भूमि से है जिस पर फसल और बुआई के बीच कोई जुताई नहीं की जाती है। शून्य जुताई एक न्यूनतम जुताई की प्रथा है जिसमें फसल को सीधे उस मिट्टी में बोया जाता है जिसे पिछली फसल की कटाई के बाद से जुताई नहीं की गई है।
गेहूं की बुआई चार तरीकों से की जाती है: प्रसारण, स्थानीय हल के पीछे, ड्रिलिंग और डिबलिंग। जीरो टिलेज तकनीक गेहूं की खेती की एक नई विधि है जिसका उपयोग चावल-गेहूं फसल प्रणाली में किया जाता है।
जीरो टिल (Zero Tillage) में एक बीज बॉक्स, उर्वरक बॉक्स, बीज और उर्वरक मीटरिंग तंत्र, बीज ट्यूब, फ़रो ओपनर, बीज और उर्वरक दर समायोजन लीवर और परिवहन सह बिजली संचारण पहिये शामिल हैं।
Leave a Reply